Uttar Pradesh Election 2022 Akhilesh Yadav: पिछले पंद्रह सालों से लगातार चुनाव लड़ रहे पश्चिमी यूपी के बड़े मुस्लिम नेता इमरान मसूद (Imran Masood) इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवारों को लड़ायेंगे. उनका ये ह्रदय परिवर्तन 20 जनवरी को लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद हुआ है. इमरान मसूद लगातार चार चुनाव हार चुके हैं. इस बार उनकी तैयारी साइकिल पर सवारी कर विधायक बनने की थी. इसलिए वे कांग्रेस छोड़ कर दो हफ्ते पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. वे अपने साथ सहारनपुर देहात से कांग्रेस एमएलए मसूद अख्तर को भी ले आए थे. पर जब समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की तो दोनों में से किसी का नाम लिस्ट में नहीं था.


इसके बाद से तो इमरान और उनके समर्थकों में खलबली मच गई. हफ्ते भर तक किस्म-किस्म की खबरें आती रहीं… कभी कहा गया इमरान बीएसपी में जा रहे हैं तो कभी कहा गया कि कांग्रेस में उनकी घर वापसी हो सकती है. हालांकि आखिरकार अखिलेश ने उन्हें मना लिया. इसके लिए एक फॉर्मूला बनाया गया है. इस फॉर्मूले के तहत इमरान के करीबी रागिब अंजुम को सहारनपुर से समाजवादी पार्टी का जिलाध्यक्ष बनाया गया है.


चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर इमरान एमएलसी बनाये जायेंगे. इमरान के करीबी विवेक कांत को रामपुर मनिहारन से आरएलडी का उम्मीदवार बनाया गया है. अखिलेश ने मसूद अख्तर को भी बुला कर, उन्हें समाजवादी पार्टी में बने रहने के लिए मना लिया है. समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खान जेल में हैं. जेल से छूटते ही उनके बेटे अब्दुल्ला आजम चुनाव प्रचार में जुट चुके हैं. इस बार वे अपने पिता के नाम पर खुल कर इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं. 




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कहते हैं कि अखिलेश यादव के दूत जब आज़म से मिलने सीतापुर जेल गए तो आज़म ने उन्हें बारह समर्थकों की लिस्ट पकड़ा दी, जिनके लिए वे टिकट चाहते थे. फिर आजम के बेटे अब्दुल्ला ने भी अखिलेश से मुलाकात की. आजम अपने करीबियों सरफराज, आबिद रजा और यूसुफ मलिक के लिए टिकट चाहते थे, जबकि आजम खान खुद रामपुर से लड़ेंगे, जबकि उनके बेटे अब्दुल्ला स्वार सीट से. आजम के जिगरी दोस्त नसीर खान चमरौआ सीट से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. खबर है कि अखिलेश ने सरकार बनने पर आजम के समर्थकों को मान सम्मान देने का भरोसा दिया है.


मुजफ्फरनगर के सबसे बड़े मुस्लिम नेता हैं कादिर राणा, जो  बीएसपी छोड़ कर समाजवादी पार्टी में आए थे. उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें मीरापुर से टिकट मिल जाएगा, लेकिन समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन ने मुजफ्फरनगर से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है. टिकट न मिलने से नाराज कादिर राणा की लखनऊ में अखिलेश से मुलाकात हुई और वे मान गए हैं. वे 2009 में मुजफ्फरनगर से बीएसपी के लोकसभा सांसद थे. उनके परिवार में कई लोग विधायक रह चुके हैं. कादिर राणा मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भी रहे हैं. अखिलेश ने इन सभी बड़े मुस्लिम नेताओं को टिकट नहीं दिया, लेकिन कैराना से नाहिद हसन को टिकट दे दिया. वे जेल में हैं और उनकी बहन इकरा हसन अब प्रचार कर रही हैं.


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अखिलेश यादव की पश्चिमी यूपी को लेकर अलग किस्म की रणनीति है, जहं 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों का असर आज भी है. उनका प्रयास मुस्लिम बहुल इलाकों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रोकने का है. वे नहीं चाहते हैं कि विवादित मुस्लिम नेताओं के कारण बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटर एकजुट हो जाये.