Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले एक बड़ी खबर सामने आई है. यहां बहुजन समाज पार्टी (BSP) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) ने विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया है. दोनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर भी सहमति बन गई है. 230 सीटों में से 178 पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी, जबकि जीजीपी 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.


अभी तक माना जा रहा था कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच यहां कड़ा मुकाबला हो सकता है, जबकि आम आदमी पार्टी कुछ सीटों पर उलटफेर कर सकती है. पर अब बीएसपी और जीजीपी गठबंधन भी कुछ सीटों पर चौंका सकता है.


'लोगों के सामने पेश करेंगे मजबूत विकल्प'


बीएसपी-जीजीपी के चुनावी गठबंधन पर बीएसपी नेता और राज्यसभा सदस्य रामजी गौतम ने कहा, “पहली बार राज्य में एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) समुदाय एक साथ आएंगे. एसटी ने परंपरागत रूप से दो पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) को वोट दिया है और अब हम एक मजबूत विकल्प पेश करेंगे. हम एससी/एसटी समुदायों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलों को लेकर हर एक गांव और जंगल में जाएंगे. हम शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बेरोजगारी का मुद्दा भी उठाएंगे, जो दो समुदायों को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे हैं.”


'अन्य दलों से भी कर रहे हैं बातचीत'


वहीं, जीजीपी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम ने कहा, “हम हमेशा विभाजित थे और अब हम एक मंच पर एक साथ आए हैं. हम अपने गठबंधन में शामिल होने के लिए यूपी की सीमा से लगे अन्य दलों से सक्रिय रूप से बात कर रहे हैं. इन पार्टियों के पास ओबीसी नेतृत्व है और वे हमारी मदद करेंगे. हम आदिवासी समुदायों के पास जाएंगे और उनके क्षेत्रों में खनन परियोजनाओं के लिए 25 प्रतिशत रॉयल्टी प्रदान करने का मुद्दा उठाएंगे. हम आदिवासी समुदायों के लिए मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल का भी वादा करेंगे."


ऐसा रहा है अब तक जीजीपी का सफर


जीजीपी की स्थापना 1991 में हुई थी. यह संगठन मध्य प्रदेश के एक प्रमुख आदिवासी समूह गोंडी लोगों के अधिकारों के लिए काम करता है. यह एक अलग गोंडवाना राज्य की मांग का समर्थन करता है. जीजीपी ने 2003 के राज्य चुनावों में 61 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से तीन निर्वाचित हुए थे. हालांकि तब से यह विधानसभा चुनावों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही है. पार्टी गुटबाजी और अंदरूनी कलह से घिरी हुई है. 2018 के चुनाव में उसने समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ गठबंधन किया था, जिसमें एसपी 1 सीट जीतने में कामयाब रही थी.


इन जगहों पर हो सकता है इस गठबंधन को फायदा


मध्य प्रदेश की आबादी में लगभग 16 प्रतिशत दलित हैं. राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 18 सीटें जीती थीं, जबकि 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं. वहीं राज्य की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से अधिक है, जिसमें 47 विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं.


2018 के चुनावों में भाजपा एसटी सीटों में से केवल 16 सीटें जीत सकी, जबकि कांग्रेस ने 30 सीटें जीतीं. माना जाता है कि बसपा का समर्थन आधार उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों जैसे बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल बेल्ट में है, हां दलितों की संख्या अधिक है. वहीं, जीजीपी का पारंपरिक वोट आधार महाकौशल क्षेत्र में स्थित है, मुख्य रूप से बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में, जहां उल्लेखनीय गोंडी आबादी है.


मध्य प्रदेश में बसपा के पास हैं दो विधायक


1990 के दशक से मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ रही बसपा के पिछले कुछ वर्षों में चुनावी प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव रहा है. पार्टी ने 2008 के चुनावों में अपना अब तक का सबसे अच्छा परिणाम किया था, तब उसने 7 सीटें जीतीं थीं. 2013 के चुनावों में पार्टी की सीटें घटकर 4 रह गईं. 2018 के चुनावों में वह सिर्फ 2 सीटें जीतने में सफल रही.


बीजेपी और कांग्रेस ने किया गठबंधन को खारिज


वहीं इस गठबंधन को बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही खारिज कर दिया है. बीजेपी प्रवक्ता हितेश बाजपेयी ने कहा, ''मध्य प्रदेश में दो ही पार्टियां हैं. हम छोटी पार्टियों पर गंभीरता से विचार नहीं करते हैं,” वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा, “हम बसपा-जीजीपी गठबंधन को कोई चुनौती नहीं मानते हैं. हम केवल भाजपा को वास्तविक चुनौती के रूप में देख रहे हैं और उससे निपटने के लिए काम कर रहे हैं.”


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