BJP Dalit Vote Bank Politics: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी सीटों के लिहाज से सबसे बड़े प्रदेश यूपी में फिर से 2019 वाली कामयाबी दोहराने के लिए नए फॉर्मूले पर चल निकली है. इस बार बीजेपी की नजर दलित वोट बैंक पर है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में दलितों से जुड़ने के लिए भाजपा के अभियान की शुरुआत मंगलवार (17 अक्टूबर) से की.

हापुड़ में अनुसूचित जाति सम्मेलन की शुरुआत करते हुए योगी आदित्यनाथ ने विश्वविद्यालयों से बसपा संस्थापक कांशी राम का नाम हटाने के लिए समाजवादी पार्टी सरकार की आलोचना की है. आदित्यनाथ ने अपने राजनीतिक विरोधियों को 'कालनेमि' कहा और दलित परिवारों को भूमि स्वामित्व अधिकार देने के सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डाला.

सीएम योगी ने अखिलेश यादव पर किया हमला

उन्होंने दलित दर्शकों को याद दिलाया कि कैसे समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार ने अपने कार्यकाल में राज्य के दो विश्वविद्यालयों से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम का नाम हटाकर तुष्टीकरण की राजनीति की थी. सीएम ने अपने राजनीतिक विरोधियों को 'कालनेमी' कहा. कालनेमी रामायण युग में जादुई राक्षस था. उन्होंने आगे कहा, “यह देखकर हंसी आती है कि कैसे कुछ लोग आज बाबासाहेब आंबेडकर और कांशीराम जी का नाम लेते हैं. हम तब सोचते हैं कि क्या सच में उनका यह मतलब है या फिर वे कालनेमी की तरह दलितों को धोखा देने पर तुले हैं.'' योगी ने इसके अलावा दलितों के लिए सरकार की कई योजनाओं का भी जिक्र किया.

क्यों बीजेपी कर रही है दलितों की तरफ रुख

अभी तक दलित वोट बैंक पर फोकस न करने वाली बीजेपी ने चुनाव से पहले इस वर्ग को टारगेट करना शुरू कर दिया है. इसके कई कारण हैं. यहां हम हर एक कारण पर करेंगे बात.

1. अखिलेश यादव को मिलती कामयाबी

इसी साल से अखिलेश यादव ने दलित वोट बैंक साधना शुरू किया. मार्च में अखिलेश ने रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया. इसके बाद एसपी ने पूर्वी यूपी में घोसी उपचुनाव जीता, जहां से बीएसपी ने दूरी बना रखी थी. ऐसा माना गया कि यहां दलित मतदाताओं ने भी सपा उम्मीदवार का समर्थन किया. ऐसे में दलित वोट बैंक का इस तरह सपा के खेमे में जाना बीजेपी के लिए बड़ा नुकसान हो सकता है. यही देखते हुए पार्टी ने इस फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है. अखिलेश को यूपी में पिछले डेढ़ साल में हुए उपचुनाव में इस फॉर्मूले से फायदा हुआ है.

2. बसपा की कम सक्रियता

यूपी में पिछले 5 साल में बहुजन समाज पार्टी की सक्रियता बिल्कुल कम हो गई है. उसकी गैरमौजूदगी में दलित वोट बैंक फिलहाल बिखर रहा है. बीजेपी इस मौके का फायदा उठाते हुए अब इन्हें अपने साथ लाना चाहती है. वह नहीं चाहती कि सपा या कांग्रेस की तरफ ये वोट जाए. इसलिए पार्टी यूपी में कई दलित नेताओं को आगे ला रही है और इस वर्ग के लिए अलग से सम्मेलन कर रही है.

3. उपचुनावों में मिली हार

घोसी की ही बात करें तो 2022 के चुनाव में यहां से सपा के दारा सिंह चौहान को जीत हासिल हुई. इन चुनाव में सपा को 42.21 फीसदी वोट, बीजेपी को 33.57 फीसदी और बीएसपी को 21.12 फीसदी वोट मिले थे. इसी साल जुलाई में दारा सिंह चौहान इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव कराए गए और बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को ही टिकट दे दिया. बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई, सीएम योगी भी चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे, दलितों को रिझाने के लिए चर्चित गेस्ट हाउस कांड तक जिक्र किया, जब मायावती पर हमला किया गया. तमाम कोशिशों के बावजदू सपा ने घोसी में शानदार जीत हासिल की और सुधाकर सिंह ने 42,759 वोटों से बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हरा दिया.

सपा का वोट प्रतिशत भी बढ़कर 57.2 फीसद हो गया. इसमें दलित वोटों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी रही. इस क्षेत्र में 19 फीसद दलित मतदाता हैं, जिनमें अधिकांश जाटव हैं. ऐसे में दलितों ने बीजेपी के बजाय सपा पर ज्यादा भरोसा जताया.

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