DK Shivakumar: कर्नाटक में सरकार गठन को लेकर पांच दिनों के मंथन के बाद कांग्रेस ने सिद्धारमैया को कर्नाटक के नए सीएम और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम का पदभार दिया. ये दोनों नेता 20 मई को बेंगलुरु के कांटीरवा स्टेडियम में शपथ लेंगे. वहीं, कांग्रेस की तरफ से सिद्धारमैया के सीएम बनने की घोषणा के कुछ घंटों बाद 'द इकोनॉमिक टाइम्स' की एक रिपोर्ट में दावा किया कि डीके शिवकुमार की 'कट्टर हिंदू' वाली छवि के लिए सीएम पद को लेकर उन्हें कांग्रेस आलाकमान का समर्थन नहीं मिला.


आरएसएस और बीजेपी के कट्टर विरोधी सिद्धारमैया 
इकोनॉमिक्स टाइम्स ने 'कांग्रेस आलाकमान ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया को चुनने के 5 कारण बताए' टाइटल से एक आर्टिकल प्रकाशित की है. रिपोर्ट में जिक्र किया गया कि सिद्धारमैया एक मजबूत वामपंथी पृष्ठभूमि से थे और शिवकुमार को 'कट्टर हिंदू' माना जाता था. इस आर्टिकल में कहा गया कि 'लेफ्ट बैकग्राउंड से आने वाले सिद्धारमैया को आरएसएस और बीजेपी के कट्टर वैचारिक विरोधी के तौर पर देखा जाता है. जबकि शिवकुमार का किसी भी दक्षिणपंथी समूह से कोई संबंध नहीं है. उन्हें एक कट्टर हिंदू के रूप में देखा जाता है, जो अक्सर धार्मिक स्थलों का दौरा करते हैं और अपने धार्मिक झुकाव को छिपाने का कोई प्रयास नहीं करते हैं'.


ध्रुवीकरण अधिक होने की संभावना
ईटी ने दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी के जरिये ऐसा निर्णय कर्नाटक के धार्मिक रूप से ध्रुवीकृत वातावरण के माहौल को देखते हुए बनाया गया है. रिपोर्ट में कहा गया कि 'अगर राजनीतिक माहौल उतना धार्मिक रूप से ध्रुवीकृत नहीं होता, जितना आज कर्नाटक में है, तो इससे ज्यादा समस्या नहीं होती. कई लोगों का मानना ​​है कि मुस्लिम वोट जेडीएस से कांग्रेस में स्थानांतरित हो गया है, जो राज्य में कांग्रेस को मजबूती से समर्थन देने के संकेत के रूप में है. अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ, ध्रुवीकरण और अधिक स्पष्ट होने की संभावना है'.


ईटी के मुताबिक, कांग्रेस ने अपने वैचारिक 'गैर-हिंदू' झुकाव को बरकरार रखने और मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की उम्मीद में सिद्धारमैया पर जोर दिया. इसने बताया कि ऐसी परिस्थितियों में पार्टी आलाकमान को उस उम्मीदवार का समर्थन करना पड़ा, जिसका वैचारिक झुकाव बीजेपी-आरएसएस का विरोध करने और मुस्लिम वोटों को हथियाने के पार्टी के एजेंडे के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ था.


पीएफआई और एसडीपीआई से कांग्रेस की डील
बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों के लिए पीएफआई और उसकी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई के साथ एक गुप्त समझौता किया, जिसके परिणामस्वरूप एसडीपीआई ने साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे. केरल और तमिलनाडु की तुलना में पीएफआई का प्रभाव कर्नाटक में तेजी से बढ़ रहा था और रिपोर्टों में दावा किया गया था कि उन्होंने आरएसएस नेताओं सहित हिंदू धर्म से जुड़े प्रमुख लोगों को निशाना बनाते हुए एक हिटलिस्ट तैयार की थी.


हाल में ही, पुत्तूर में एक पूरे सामुदायिक हॉल को कथित तौर पर एक हथियार डिपो में बदल दिया गया था, जिसे बाद में एनआईए ने अपने छापे के दौरान जब्त कर लिया था. जबकि चुनाव अभियान में ध्रुवीकरण का खतरनाक स्तर देखा गया. विपक्षी दलों ने हिजाब के मुद्दे को उठाया और साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी ने हिंदू कार्यकर्ता समूह बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया. यह विश्लेषण करने योग्य है कि कैसे ध्रुवीकरण ने कांग्रेस को मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने में मदद की और विधानसभा चुनावों में जीत के लिए हिंदू वोटों को विभाजित किया.


मुस्लिम डिप्टी सीएम पद की मांग
सुन्नी उलमा बोर्ड के मुस्लिम नेताओं ने मांग की कि मुस्लिम समुदाय के विजयी उम्मीदवारों में से एक मुस्लिम को कर्नाटक में डिप्टी सीएम का पद मिलना चाहिए. उन्होंने पांच मुस्लिम विधायकों के लिए गृह, राजस्व, स्वास्थ्य और अन्य विभाग जैसे विभाग भी मांगे. कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड के प्रमुख शफी सादी ने दावा किया कि 72 निर्वाचन क्षेत्र केवल मुसलमानों के कारण कांग्रेस के हाथों में गए.


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