CEC-EC Appointment Bill 2023: देश में इन दिनों चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर खूब चर्चा है. सरकार इसके नियुक्ति और चयन को लेकर एक बिल लोकसभा के विशेष सत्र में लाने जारी है. लोगों के मन में भी सवाल है कि आखिर निष्पक्ष और कदाचार मुक्त चुनाव के लिए सीईसी और इसी की नियुक्ति कैसे किया जाना चाहिए. क्या इसका पूरा कंट्रोल केंद्र सरकार के अधीन सही रहेगा या सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुरूप की जानी चाहिए? 


चुनाव आयोग का काम देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है संविधान में इसका जिक्र एक स्थायी और स्वतंत्र निकाय के तौर पर किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 324 के मुताबिक, चुनाव आयोग केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लिए एक सामान्य है. वर्तमान में केंद्र सरकार का चुनाव आयोग के आयुक्तों का चयन करने का विशेषाधिकार है. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मार्च में उनकी नियुक्ति को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर की जानी चाहिए. हालांकि अब तक केंद्र सरकार को इसके चयन को लेकर पूरी छूट मिली हुई थी. 


लोकसभा के विशेष सत्र में होना है इसपर चर्चा
केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद के विशेष सत्र बुलाने का फैसला किया है. इस सत्र के एजेंडे में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 भी शामिल है. हालांकि, इससे पहले यह विधेयक पिछले महीने 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हो चुका है. जबकि सोमवार (18 सितंबर) से चालु होने वाले विशेष सत्र में इस विधेयक के प्रस्ताव को पेश किया जाना है. 


किस लिए लाया गया है ये विधेयक?
केंद्र सरकार की ओर से लाया गया ईसी-सीईसी (नियुक्ति, सेवा शर्त विधेयक 2023) वाला विधेयक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विपरीत है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने की बात कही गई है. वही, केंद्र सरकार के इस विधेयक में कहा गया है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी होगी और इसका कमेटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे. जबकि विपक्ष के नेता दूसरे सदस्य और तीसरे सदस्य की नियुक्ति प्रधानमंत्री केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री में से करेंगे. इस विधेयक में चीफ जस्टिस को इस कमेटी से बारह किया गया है जिससे विपक्ष से लेकर कई राजनीतिक विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं. 


वहीं, इस विधेयक में एक और प्रावधान जोड़ा गया है. इसके मुताबिक, चुनाव आयुक्तों को कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया जाएगा. फिलहाल, उनकी रैंक सुप्रीम कोर्ट के जज के समकक्ष है और जज के मुताबिक ही उनको सैलरी और सुविधा प्रदान की जाती है. वहीं कई लोगों का मानना है कि चुनाव आयोग सरकार का एक विभाग नहीं है बल्कि एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है.  साथ ही सवाल है कि क्या इस विधेयक से देश में होने वाले चुनावों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?


सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी और ईसी की नियुक्ति पर फैसला दिया था
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 2 मार्च 2023 को सीईसी और ईसी की नियुक्ति पर बड़ा फैसला सुनाया था. जिसके मुताबिक इसके चयन को लेकर एक तीन सदस्य की कमेटी का गठन करना जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे.  सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला अनूप बरनवाल की ओर से 2015 में दायर की गई एक जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए किया. जिसमें पीएम की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा ईसीई सदस्यों की नियुक्ति की प्रचलित प्रणाली की वैधता को असंवैधानिक बताया गया था. 


संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग को लेकर क्या है
संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग के संबंध में कई प्रावधानों का जिक्र है. इसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा जिसे वह समय-समय पर तय बदल सकते हैं. चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्यालय राष्ट्रपति  निर्धारित करेंगे. संविधान में चुनाव आयोग को निष्पक्ष रखने के लिए अधिक नियम नहीं बनाते हुए इसे सर्वाधिक पावर दिया गया है. 


चुनावी लोकतंत्र और शासन में विश्वास को मजबूत करने के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने में एक महत्वपूर्ण रोल निभाता है. हालांकि, समय-समय पर इसके आयुक्त की संख्या में वृद्धि भी की गई है. 1950 में इसकी स्थापना के बाद से और 15 अक्टूबर 1989 तक, चुनाव आयोग केवल मुख्य चुनाव आयुक्त के सिंगल सदस्य के तौर पर होती थी लेकिन 16 अक्टूबर 1989 को राष्ट्रपति ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की. जिससे की कुल चुनाव आयुक्तों की संख्या तीन हो गई. जिसके बाद फिर से साल 1990 में चुनाव आयुक्तों के दो पद समाप्त कर दिए गए लेकिन उसके बाद फिर 1993 में दो पदों को फिर बहाल किया गया जो अभी तक वैसा ही है. 


चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल और निष्कासन
संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल छह साल की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक की होगी. हालांकि उसमें कहा गया है कि वे किसी भी समय इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें कार्यकाल समाप्त होने से पहले हटाया भी जा सकता है. 


संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग को लेकर कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जजों के समान ही पद से हटाया जा सकता है. जिसके मुताबिक, चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति की पहल पर संसद के दोनों सदनों से एक विशेष बहुमत पारित करके ही आधार पर हटाया जा सकता है, जैसा की सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. 


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