Bihar Election Results 2025: बिहार चुनाव के अब तक के रुझानों से साफ हो गया है कि राज्य में एनडीए को ऐतिहासिक जनादेश मिला है, जबकि महागठबंधन हाशिए पर सिमट गया है. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर मैदान में उतरे महागठबंधन ने कई ऐसी रणनीतिक गलतियाँ कीं, जिनकी भरपाई करने में उसे लंबे समय का इंतजार करना पड़ सकता है. जिस वापसी की उम्मीद महागठबंधन को इस चुनाव में थी, वह पूरी तरह टूट गई. ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर किस स्तर पर यह गठबंधन चूक गया.
महागठबंधन की बड़ी गलतियां
1. कांग्रेस द्वारा “वोट चोरी” का मुद्दा बनाना
कांग्रेस ने बिहार चुनाव में वोट चोरी को बड़ा मुद्दा बनाया. पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एनडीए पर वोट चोरी का आरोप लगाया. दरभंगा में “वोट यात्रा” के दौरान उनके मंच से प्रधानमंत्री की मां के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी भी की गई, जिसे भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस से माफी की मांग की. इस प्रकरण ने कांग्रेस और महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया.
2. वोटर लिस्ट संशोधन (SIR) पर बेअसर विवाद
महागठबंधन ने वोटर लिस्ट में संशोधन (SIR) को भी चुनावी मुद्दा बनाकर बड़ा शोर मचाया, लेकिन मामला कोर्ट जाने के बाद यह विरोध धीमा पड़ गया. जनता इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले पाई. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी SIR को “महागठबंधन को हराने की साजिश” बताया, लेकिन यह रणनीति असरहीन रही.
3. अवास्तविक और बढ़ा-चढ़ाकर किए गए वादे
एक तरफ नीतीश कुमार की 20 साल पुरानी योजनाओं की गारंटी थी, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव के अव्यावहारिक वादे. तेजस्वी ने हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने, जीविका दीदी को 3,000 की जगह 10,000 रुपये देने जैसे कई वादे किए, जिन्हें पूरा करना संभव नहीं था. जनता ने इन वादों को अविश्वसनीय माना और स्थिरता व भरोसे के नाम पर एनडीए को प्राथमिकता दी.
4. नकारात्मक चुनावी अभियान
विपक्ष ने पूरे चुनाव अभियान में एनडीए के खिलाफ नकारात्मक कैंपेन चलाया. प्रधानमंत्री मोदी को “भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह” तक कहा गया. जनता ने इसे अत्यधिक नकारात्मक राजनीति मानकर पसंद नहीं किया, खासकर तब जब नीतीश कुमार पिछले दो दशकों से राज्य की सत्ता में स्थिर चेहरा रहे हैं. इस रणनीति ने महागठबंधन को लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान ही किया.
5. तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाना
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन लालू यादव के “जंगल राज” वाले पुराने दौर को सत्ताधारी दल ने बार-बार जनता के सामने रखा. तेजस्वी की छवि पर लालू का यह पुराना बोझ भारी पड़ गया और जनता ने जोखिम लेने के बजाय एनडीए को सुरक्षित विकल्प माना.