Bihar Election Result 2025: बात 2015 विधानसभा चुनाव की है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “डीएनए” वाले बयान को नीतीश कुमार ने बड़ा मुद्दा बना दिया था. उन्होंने इसे बिहारियों का अपमान बताते हुए कहा था, “उन्होंने कहा कि मेरा डीएनए गड़बड़ है. लेकिन मैं कौन हूँ? मैं आपका प्रतिनिधि हूँ. जब वे मेरे डीएनए पर सवाल उठा रहे हैं, तो यह पूरे बिहार का अपमान है.” नीतीश ने जनता से अपील तक कर दी थी कि वे अपने बाल और नाखून काटकर डीएनए परीक्षण के लिए सैंपल इकट्ठा करें. उस चुनाव में बीजेपी की सीधी लड़ाई आरजेडी-जेडीयू महागठबंधन से थी और परिणाम में बीजेपी को करारी हार मिली थी.

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लेकिन 2025 के चुनाव में तस्वीर बदल चुकी है. इस बार नीतीश कुमार और बीजेपी साथ-साथ मैदान में थे. विपक्ष ने नीतीश की मानसिक स्थिति से लेकर उनकी छवि पर सवाल उठाने की पूरी कोशिश की. उन्हें “भ्रष्टाचारियों का भीष्म पितामह” तक कहा गया. इसके बावजूद रुझान और जनादेश यह साफ दिखाते हैं कि राज्य की जनता ने एनडीए पर ही भरोसा जताया है. हालांकि, इस जनादेश ने नीतीश को एक और बड़ा संदेश भी दिया है—जो उनके पुराने “डीएनए” वाले घमंड को तोड़ता है.

2015 का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि उस समय आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, सपा, एनसीपी, आईएनएलडी और अन्य दलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया था. आरजेडी और जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस 41 और बीजेपी 157 सीटों पर उतरी थी. नतीजे आए तो आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जेडीयू को 71 सीटें मिलीं और बीजेपी 53 पर सिमट गई. इस नतीजे के बाद नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2017 में उन्होंने अचानक महागठबंधन छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली.

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अब 2025 के चुनावी आंकड़े दिलचस्प तस्वीर पेश कर रहे हैं. 2015 में नीतीश ने अपने डीएनए को बिहार का डीएनए बताया था, लेकिन मौजूदा जनादेश बता रहा है कि बिहार के डीएनए में केवल नीतीश नहीं, बल्कि बीजेपी भी गहराई से मौजूद है. एनडीए की भारी जीत यह संकेत देती है कि नीतीश का वह पुराना डीएनए वाला “घमंड” अब पूरी तरह टूट चुका है.

101-101 सीटों पर लड़ रही जेडीयू और बीजेपी के प्रदर्शन को देखें तो बीजेपी इस बार जेडीयू पर भारी पड़ती दिख रही है. नतीजतन, इस चुनाव के परिणाम ने यह संदेश पूरे बिहार में दूर तक पहुंचा दिया है कि सत्ता का संतुलन अब पहले जैसा नहीं रहा और जनता की पसंद भी बदल चुकी है.