कई दशकों तक बिजनेस एजुकेशन का रास्ता लगभग साफ माना जाता था. ग्रेजुएशन के बाद एमबीए और फिर अच्छी सैलरी वाली लीडरशिप जॉब यही लोगों की आम सोच होती थी. लेकिन अब यह फार्मूला धीरे-धीरे बदल रहा है, दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में स्टूडेंट्स के चुनाव से साफ हो रहा है कि अब सिर्फ डिग्री ही नहीं बल्कि उसके रिजल्ट ज्यादा मायने रखते हैं. AACSB इंटरनेशनल की Enrollment Trends at AACSB Business Schools 2025 की रिपोर्ट बताती है कि मैनेजमेंट एजुकेशन की डिमांड मजबूत है. लेकिन छात्र पहले से ज्यादा सोच समझकर कोर्स चुन रहे हैं. खासकर भारतीय छात्रों के लिए यह बदलाव करियर से जुड़े कई जरूरी संकेत दे रहे हैं. आज हम आपको बताते हैं कि बिजनेस डिग्री का फार्मूला कैसे बदल रहा है और एमबीए से ज्यादा स्पेशलाइज्ड कोर्स की डिमांड कैसे बढ़ रही है.
बढ़ रही है एप्लीकेशन, लेकिन एडमिशन में जल्दबाजी नहीं
रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले कुछ सालों में अंडर ग्रेजुएट और मास्टर लेवल के बिजनेस कोर्सेज के लिए एप्लीकेशन तो तेजी से बड़ी है, लेकिन एनरोलमेंट की रफ्तार इतनी तेज नहीं है. इसका मतलब यह है की छात्रा अभी किसी भी ऑफर को तुरंत एक्सेप्ट नहीं कर रहे हैं. वह फीस, स्कॉलरशिप, प्लेसमेंट, इंटर्नशिप और फ्यूचर के जॉब ऑप्शन को अच्छे से परखने के बाद ही फैसला ले रहे हैं. इस बदलाव से बिजनेस स्कूलों के बीच कंपटीशन भी बढ़ी है, जिससे छात्रों को बेहतर अवसर मिल रहे हैं.
एमबीए हर किसी का नेक्स्ट ऑप्शन नहीं
AACSB की रिपोर्ट के अनुसार एमबीए अब पहले जैसा डिफॉल्ट ऑप्शन नहीं रहा. दुनिया भर में एमबीए प्रोग्राम्स में एनरोलमेंट घट रहा है, जबकि स्पेशलाइज्ड मास्टर डिग्री की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. बिजनेस एनालिटिक्स, फाइनेंस सप्लाई चैन मैनेजमेंट, मार्केटिंग और फिनटेक जैसे कोर्स उन छात्रों को अट्रैक्ट कर रहे हैं, जो जल्दी और सीधे किसी खास रोल में एंट्री चाहते हैं. रिपोर्ट साफ कहती है कि एमबीए खत्म नहीं हो रहा, लेकिन अब इसे ज्यादा वर्क एक्सपीरियंस वाले प्रोफेशनल्स के लिए अच्छे ऑप्शन माने जा रहे हैं. इसके अलावा आज की जॉब मार्केट में सिर्फ टाइटल नहीं बल्कि स्किल्स मायने रखती है. इस वजह से बिजनेस स्कूल अपने कोर्स में डाटा एनालिटिक्स, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, एआई, सस्टेनेबिलिटी और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं. भारतीय छात्रों के लिए यह संकेत भी साफ माना जा रहा है कि वहीं कोर्स ज्यादा फायदेमंद होंगे, जिनमें टेक्निकल नॉलेज, प्रैक्टिकल लर्निंग और इंडस्ट्री से जुड़ाव मजबूत हो.
इंटरनेशनल पढ़ाई में भी बदल रही सोच
मास्टर्स लेवल पर इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की संख्या फिर से बढ़ रही है, लेकिन अब फैसले ज्यादा प्रेक्टिकल हो गए हैं. छात्र वीजा नियम, पढ़ाई के बाद काम के मौके और प्लेसमेंट को ध्यान में रखकर ही देश और कॉलेज चुन रहे हैं. नाम और रैंकिंग से ज्यादा अब रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट जरूरी हो गया है. यही वजह है कि कम समय वाले स्किल, फोकस्ड और अच्छे प्लेसमेंट वाले प्रोग्राम ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं. AACSB रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पोस्ट ग्रेजुएट बिजनेस एजुकेशन में ऑनलाइन, हाइब्रिड और पार्ट टाइम कोर्स तेजी से बढ़ रहे हैं. अब ऐसे फॉर्मेट को भी कंपनियां स्वीकार कर रही है. खासकर तब जब छात्र पढ़ाई के साथ काम का एक्सपीरियंस भी दिखा पाते हैं.
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