जम्मू के कटरा में स्थित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस (SVDIME) इस समय सुर्खियों में है. कारण है इसकी एमबीबीएस कोर्स की पहली एडमिशन लिस्ट, जिसने पूरे जम्मू-कश्मीर में विवाद खड़ा कर दिया है. कॉलेज की इस लिस्ट में कुल 50 सीटों में से 42 सीटें मुस्लिम छात्रों को और सिर्फ 8 सीटें हिंदू छात्रों को मिली हैं.

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यह मेडिकल कॉलेज माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित है, जो पूरी तरह एक हिंदू धार्मिक संस्था है और माता वैष्णो देवी के चढ़ावे से मिलने वाले फंड से चलता है. ऐसे में जब एडमिशन लिस्ट सामने आई तो सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया. लोगों ने सवाल उठाया कि “जब कॉलेज हिंदू ट्रस्ट से चलता है, तो हिंदू छात्रों को इतनी कम सीटें क्यों मिलीं?”

कई स्थानीय संगठनों और नेटिजन्स ने इसे “असंतुलित और अनुचित” बताया है. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि मेडिकल एडमिशन पूरी तरह मेरिट यानी योग्यता पर आधारित होता है, इसलिए इसमें धर्म का कोई महत्व नहीं होना चाहिए.

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विवाद की जड़ क्या है?

मामले की शुरुआत तब हुई जब कॉलेज की एडमिशन लिस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. आंकड़ों के अनुसार 50 में से 42 मुस्लिम छात्र चुने गए, जबकि हिंदू छात्रों को सिर्फ 8 सीटें मिलीं. इस पर जम्मू राष्ट्रीय बजरंग दल के अध्यक्ष राकेश बजरंगी ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि यह फैसला भेदभावपूर्ण है और उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से हस्तक्षेप की मांग की.

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाया कि एक हिंदू धार्मिक बोर्ड द्वारा फंडेड कॉलेज में हिंदू छात्रों का प्रतिनिधित्व इतना कम क्यों है. कुछ लोगों ने इसे श्राइन बोर्ड के मकसद के खिलाफ बताया जबकि कुछ ने इसे नीट काउंसलिंग सिस्टम की खामी कहा.

एडमिशन प्रक्रिया में धर्म की कोई भूमिका नहीं

नीट यूजी (NEET UG) के तहत मेडिकल कॉलेजों में दाखिले का नियम बहुत स्पष्ट है. प्रवेश केवल मेरिट और परीक्षा में प्राप्त रैंक के आधार पर होता है, धर्म या किसी अन्य मानदंड का इसमें कोई स्थान नहीं है. हर मेडिकल कॉलेज को नीट के तहत तय प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है. निजी कॉलेजों में आधी सीटें “ऑल इंडिया कोटा” से और बाकी आधी “स्टेट कोटा” से भरी जाती हैं. जम्मू-कश्मीर में इस प्रक्रिया में कुछ स्थानीय बदलाव होते हैं, लेकिन योग्यता ही सबसे बड़ा आधार रहती है. आरक्षण नीति केवल जातिगत श्रेणियों जैसे SC, ST, OBC और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) पर लागू होती है. धार्मिक आधार पर कोई आरक्षण नहीं होता.


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