नेपाल के न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय तब जुड़ा, जब सुशीला कार्की, जो देश की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश रह चुकी हैं​. उन्होंने आज नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री ​के रूप में शपथ ली. यह पद अब न सिर्फ उनके न्यायिक अनुभव की स्वीकृति है, बल्कि एक महिला के नेतृत्व में राष्ट्र संचालन की दिशा में बढ़ता हुआ कदम भी है. सुशीला कार्की की यात्रा एक न्यायाधीश से प्रधानमंत्री तक, राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में भी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभरी है. आपको हम बताएंगे कि पहले उनका वेतन कितना था और अब उन्हें कितनी सैलरी मिलेगी.

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रिटायरमेंट से पहले कितनी थी सैलरी?

सुशीला कार्की ने 2016 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के रूप में कार्यभार संभाला था और न्यायपालिका में ईमानदारी, पारदर्शिता और निर्भीकता का प्रतीक बन गई थीं. 2023 में रिटायरमेंट से ठीक पहले नेपाल सरकार ने जो गजट प्रकाशित किया था उसके अनुसार, मुख्य न्यायाधीश का मासिक वेतन 102,293 रुपये तय किया गया था. इसमें मूल वेतन के अलावा कुछ सीमित भत्ते शामिल थे, लेकिन यह सैलरी उस जिम्मेदारी और दबाव के मुकाबले काफी सीमित मानी जाती थी, जो सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख पद से जुड़ी होती है. 

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अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में कितना वेतन?

नेपाल की मौजूदा वेतन संरचना के अनुसार, प्रधानमंत्री का मासिक वेतन लगभग 94,280 रुपये है. इसमें 77,280 का मूल वेतन, 2,000 का महंगाई भत्ता, 5,000 रुपये का संचार भत्ता और 10,000 रुपये का आतिथ्य भत्ता शामिल होता है. इसके अलावा, प्रधानमंत्री को कई विशेष सुविधाएं भी मिलती हैं, जैसे 306 लीटर मासिक पेट्रोल, यात्रा भत्ता 3,000 प्रतिदिन और 34 स्टाफ सदस्यों की टीम (सलाहकारों, सचिवों व अन्य सहयोगियों सहित).

हालांकि, अगस्त 2025 में पारित एक नए कानून के तहत प्रधानमंत्री और मंत्रियों को अब अपने वेतन व भत्ते स्वयं तय करने का अधिकार प्राप्त हो गया है. यह फैसला नेपाल सरकार की कैबिनेट ने लिया था और इसे आधिकारिक बजट में प्रकाशित किया गया. लेकिन जब तक नई दरें निर्धारित नहीं की जातीं, तब तक पुरानी वेतन संरचना ही लागू रहेगी.

न्यायपालिका से कार्यपालिका तक

सुशीला कार्की की छवि एक कठोर, लेकिन न्यायप्रिय महिला की रही है. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील फैसले सुनाए. वे भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी होने वाली चुनिंदा जजों में से एक थीं, जिनके खिलाफ राजनीतिक ताकतों ने महाभियोग लाने की कोशिश की थी जो असफल रहा था. 

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