Success Story Of IAS Topper Geetanjali Sharma: गीतांजलि शर्मा ने साल 2019 की यूपीएससी सीएसई परीक्षा 32वीं रैंक के साथ पास की है. यह उनका तीसरा अटेम्पट था. हिंदू कॉलेज, दिल्ली से ग्रेजुएशन करने के बाद गीतांजलि ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी का मन बनाया. साल 2016 में उन्होंने अपना पहला अटेमप्ट दिया जिसमें प्री भी पास नहीं कर पाईं. इसके बाद उन्होंने एक साल का ब्रेक लिया और कोचिंग ज्वॉइन की. अपने पहले अटेम्पट में गीतांजलि की तैयारी ठीक नहीं थी यह बात वे खुद कहती हैं. इसके बाद उन्होंने दूसरा अटेम्पट दिया साल 2018 में जिसमें साक्षात्कार तक पहुंची पर फाइनल लिस्ट में नाम नहीं आया. इस अटेम्पट के लिए गीतांजलि कहती हैं कि उनके लगभग हर परीक्षा में बस ठीक-ठाक ही अंक थे, प्री भी मात्र पांच नंबर से पास हुआ था और मेन्स में भी कुछ खास अंक नहीं थे. वे खुद अपने इस अटेम्पट के नंबरों से संतुष्ट नहीं थी क्योंकि उनके दिमाग में हमेशा से आईएएस पद ही था. वे इससे नीचे की रैंक पर समझौता नहीं करना चाहती थी.


एक साक्षात्कार में गीतांजलि कहती भी हैं कि बड़ा ड्रीम देखो, जब बड़े सपने देखते हैं तो कहीं न कहीं हमारा सबकांशस भी उसे पाने में लग जाता है. नतीजा यह होता है कि आपकी इच्छा पूरी होती जरूर है साथ ही आप डबल मेहनत करते हो. जैसे गीतांजलि उदारहण देती हैं कि अगर किसी परीक्षा को पास करने के लिए 105 अंक चाहिए तो वे हमेशा 120 का लक्ष्य रखती थी ताकि प्रयास भी उसी हिसाब से बढ़ जाएं, इससे असफलता का खतरा काफी कम हो जाता है. इसके अलावा उन्होंने अपने 2018 के अटेम्पट में की गलतियों से सीख भी ली ताकि दोबारा उन्हें न दोहराएं.


यूपीएससी ही जीवन नहीं –


एक इंटरव्यू में बात करते हुए गीतांजलि आगे कहती हैं कि उन्होंने कई बार ऐसे टॉपर्स को पढ़ा और सुना है कि जिन सालों में उन्होंने तैयारी की उसमें उनके जीवन में केवल यही परीक्षा थी और कुछ नहीं. न कोई हॉबी, न मस्ती, न दोस्त और न ही फ्री टाइम. गीतांजली कहती हैं उनकी सोच इससे अलग है, उन्हें लगता है कि परीक्षा जरूरी है इसमें कोई शक नहीं पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि केवल परीक्षा ही आपका जीवन बन जाए. इसके इतर भी सोचिए और कार्य करिए. जहां कुछ कैंडिडेट कहते हैं कि अगर दो या तीन साल बाहर की दुनिया से कट भी गए तो क्या हुआ या हॉबीज को टाइम नहीं दिया तो ठीक है इससे आप डिस्ट्रेक्ट होते हो और आखिरकार यह सफलता इतनी बड़ी है कि एक बार मिल जाए तो बाकी सब पीछे रह जाता है. वहीं गीतांजलि मानती हैं कि तैयारी के दौरान भी ब्रेक लेना, अपनी चीजों को समय देना जरूरी होता है. वे हर दस दिन में मूवी देखती थी, हर पंद्रह दिन में अपने दोस्तों से मिलती थी या कुछ न कुछ ऐसा करती थी जिससे अपनी सैनिटी को मेंटेन कर सकें. वे मानती हैं कि इस गोल को पाने के लिए खुद को खो देना समझदारी नहीं. हालांकि वे यह भी कहती हैं कि इस बारे में सबकी अपनी राय है और हर किसी को अपने हिसाब से फैसला लेना चाहिए.


सीमित संसाधनों को नहीं मानती काफी –


जहां अभी तक हम कई बार यह कह चुके हैं कि सफलता के लिए सीमित संसाधन और बार-बार रिवीजन जरूरी है. वहीं गीतांजलि कहती हैं कि उन्हें मेन्स के लिए कतई ऐसा नहीं लगता कि आप एक किताब से पढ़कर पास हो सकते हैं. किसी टॉपिक की बेस्ट नॉलेज एक्वायर करने के लिए कई सोर्सेस देखने पड़ते हैं. हालांकि रिवीजन के महत्व को गीतांजलि भी कम नहीं आंकती और यह जरूर सलाह देती हैं कि जब किसी विषय पर विभिन्न सोर्सेस से मैटर इकट्ठा करें तो उसे कंसोलिडेट जरूर कर लें. यानी शॉर्ट फॉर्म में किसी एक जगह इकट्ठा कर लें ताकि रिवीजन के समय दिक्कत न आए. इसके साथ ही वे आंसर राइटिंग को भी लिमिटेड महत्व देती हैं. वे कहती हैं अगर आंसर ठीक से स्ट्रक्चर ही नहीं होगा तो लिखेंगे क्या इसलिए आंसर राइटिंग करें लेकिन तैयारी ठीक से हो जाने के बाद.


इसी प्रकार वे बहुत सी टेस्ट सीरीज ज्वॉइन करने को भी सही नहीं मानतीं. वे कहती हैं इससे आपका बहुत समय केवल इसी में चला जाता है. उन्होंने केवल एक टेस्ट सीरीज ज्वॉइन की थी जीएस की, जिससे उन्हें ऐस्से में भी मदद मिली. फैक्ट्स और फिगर्स को कलेक्ट करके रखने और आंसर्स में उन्हें डालना उनके हिसाब से अच्छा है लेकिन बहुत नोट्स बनाने में गीतांजली विश्वास नहीं करतीं. वे कहती हैं अगर हर विषय के नोट्स बनाएंगे तो केवल नोट्स ही बनाते रह जाएंगे, साथ ही कुछ किताबें ऐसी होती हैं जिनमें हर एक लाइन महत्वपूर्ण होती हैं, इनमें से कुछ भी कम करके लिखना संभव नहीं. वे किताब में ही अत्यंत जरूरी लाइनों को अंडरलाइन कर लेती थी. गीतांजलि ने एक साल कोचिंग जरूर ली पर वे मानती हैं कि बिना सेल्फ स्टडी के सिर्फ कोचिंग के दम पर आप पास नहीं हो सकते.


रोज के टाइम-टेबल में पढ़ाई के साथ फ्री टाइम भी –


अव्वल तो गीतांजलि सलाह देती हैं कि अपने लिए टारगेट सेट करें कितने दिन में क्या खत्म करना है, जिसमें महीने से लेकर हफ्ते और दिन का शेड्यूल होनी चाहिए. वे खुद एक्सेल पर अपना टाइमटेबल बनाती थी. हालांकि एक बात यहां वे जरूर कहती हैं जो दूसरों से अलग है कि वे दिन के शेड्यूल में कैसे खुद को फ्रेश रखेंगी यह भी जोड़ती थी. यानी पूरे दिन में पढ़ाई के बीच में भी वे प्रोडक्टिव ब्रेक्स लेती थी. गीतांजलि कहती हैं मैं आफ्टरनून नैप लेती ही थी, अपने डॉग्स को घुमाने जाती ही थी और डांस क्लास भी करती थी. वे आगे बताती हैं, मैं दिन में आठ से दस घंटे से ज्यादा नहीं पढ़ सकती इसलिए मैं ये सब भी करती थी. एग्जाम्स के समय घंटे बढ़ जाते थे पर दिन रात किताब में घुसे रहने गीतांजली को नहीं पसंद. दरअसल इस परीक्षा की तैयारी लंबी चलती है ऐसे में अपने लिए उतने ही कड़े नियम बनाएं जो लंबे समय तक चल सकें. समय बर्बाद न करें पर अपने लिए इस प्रिपरेशन को टॉरचरिंग भी न होने दें. अगर सही गाइडेंस, हार्डवर्क और परसिविरेंस होगा तो सफलता जरूर मिलेगी.


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