दिल्ली सरकार की नई रिपोर्ट ने महिलाओं की शिक्षा और रोजगार से जुड़ी एक दिलचस्प और चिंताजनक तस्वीर सामने रखी है. रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली की महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रही हैं, उच्च शिक्षा में दाखिले बढ़े हैं, स्कूलों में महिला शिक्षकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और कई स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी पहले से कहीं अधिक मजबूत दिखाई दे रही है. लेकिन इसके ठीक उलट शहर के कुल कार्यबल में उनकी उपस्थिति अब भी बेहद कम है, जिससे यह साफ होता है कि पढ़ने और आगे बढ़ने की इच्छा होने के बावजूद रोजगार पाने की राह अभी भी मुश्किल बनी हुई है.

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रिपोर्ट ‘वूमन एंड मेन इन दिल्ली – 2025’ के अनुसार, शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की पकड़ मजबूत होती जा रही है. प्राथमिक स्तर पर 2012-13 में हर 100 पुरुष शिक्षकों पर 363 महिला शिक्षक थीं, जो बढ़कर 2024-25 में 415 हो गई हैं. ऊपरी प्राथमिक स्तर पर भी यह संख्या 214 से बढ़कर 261 हो गई और सेकेंडरी स्तर पर भी महिला शिक्षकों की संख्या 152 से बढ़कर 168 तक पहुंच गई है. यह रुझान साफ दिखाता है कि महिलाएं शिक्षण को एक सुरक्षित, सम्मानित और लचीला पेशा मानते हुए बड़ी संख्या में इसमें आ रही हैं.

उच्च शिक्षा में भी महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है. 2021-22 में महिलाओं का दाखिला 49% था जो अब 2023-24 में बढ़कर पहली बार 50% से ऊपर, यानी 50.57% हो गया है. इससे पता चलता है कि दिल्ली की लड़कियां और महिलाएं अब स्कूल के बाद भी आगे पढ़ने, डिग्री और पेशेवर कोर्स करने और करियर बनाने के लिए पहले से ज्यादा उत्साहित हैं. बीए, एमए, एमबीए, पीजी डिप्लोमा, और यहां तक कि पीएचडी जैसे कोर्सों में भी महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है.

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यहां नजर नहीं आ रहीं महिलाएं

लेकिन शिक्षा में इतनी उल्लेखनीय बढ़त के बावजूद सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिलाएं रोजगार में क्यों नजर नहीं आ रहीं.  रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में वर्कर-पॉपुलेशन रेशियो, यानी कितने लोग काम में लगे हैं, इसमें महिलाओं का हिस्सा बेहद कम है. 2023-24 में जहां पुरुषों का WPR 52.8% था, वहीं महिलाओं का WPR सिर्फ 14.2% रहा. इसका मतलब यह हुआ कि 100 पुरुषों में 53 नौकरी कर रहे थे जबकि 100 महिलाओं में सिर्फ 14 ही काम कर रही थीं. राष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाओं की भागीदारी कम है, लेकिन दिल्ली की स्थिति उससे भी कमजोर दिखाई देती है.

क्या बताते हैं एक्सपर्ट

रोजगार में महिलाओं की कम भागीदारी के कई कारण हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक अभी भी समाज की उम्मीदें, सुरक्षित यात्रा की कमी, देर रात काम का डर, सीमित और महिला-हितकारी नौकरियों की कमी, घर और पढ़ाई के बीच संतुलन जैसे कारण करियर बनाने की राह में बड़ी बाधाएं हैं. महिलाएं स्थिर और सुरक्षित नौकरी को ज्यादा पसंद करती हैं, यही कारण है कि जो महिलाएं नौकरी करती भी हैं, उनमें से 70% से ज्यादा रेगुलर वेतन वाली नौकरी में हैं. कैज़ुअल लेबर जैसी अस्थायी नौकरियों में महिलाएं बहुत कम दिखाई देती हैं. इसके उलट पुरुषों में 53% लोग रेगुलर नौकरी में हैं और 6.7% कैज़ुअल काम में लगे हैं.

ये भी है कारण

महिलाओं के रोजगार में कम शामिल होने का एक और कारण यह है कि नौकरी की तलाश करने वाली महिलाओं की संख्या भी बहुत कम है. दिल्ली में महिला श्रम भागीदारी दर केवल 14.5% है, जो राष्ट्रीय औसत 31.7% से लगभग आधी है. ग्रामीण दिल्ली की स्थिति तो और भी खराब है, जहां यह दर सिर्फ 3% से भी कम तक गिर गई थी. इसका मतलब है कि शिक्षा में बढ़त के बावजूद महिलाएं या तो नौकरी कर नहीं पा रहीं या नौकरी तलाशने का प्रयास भी नहीं कर पा रहीं.

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