मुंबई विश्वविद्यालय ने एक सख्त कदम उठाते हुए उन 553 छात्रों का PhD रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया है, जो कई वर्षों से अपनी रिसर्च पूरी नहीं कर पा रहे थे. ये वे छात्र हैं जो UGC द्वारा तय की गई अधिकतम समय सीमा से भी आगे बढ़ चुके थे, लेकिन उनकी स्टडी में कोई खास प्रगति नहीं दिख रही थी. कई छात्र 8 से 10 वर्षों तक PhD में रजिस्टर रहे, मगर रिसर्च का काम आगे नहीं बढ़ा. इसी वजह से विश्वविद्यालय को यह सख्त निर्णय लेना पड़ा.

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रिपोर्ट्स के अनुसार विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इन छात्रों के मामलों की विस्तार से समीक्षा की गई. रिपोर्ट्स के अनुसार, कई छात्रों ने वर्षों से रजिस्ट्रेशन तो ले रखा था, लेकिन रिसर्च में बिल्कुल भी प्रोग्रेस नहीं दिखी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कई छात्रों ने PhD सीटें एक तरह से ब्लॉक कर रखी थीं. 8-10 साल बीत गए, पर रिसर्च आगे नहीं बढ़ी. ऐसे में नए छात्रों के लिए सीटें खाली ही नहीं हो रही थीं.

गाइड की सीमित क्षमता

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PhD में हर छात्र को सुपरविजन के लिए एक गाइड की जरूरत होती है, और हर गाइड की अपनी एक लिमिट होती है कि वह कितने छात्रों को एक साथ संभाल सकता है. लेकिन जब पुराने छात्र सालों तक अटके रहते हैं, तो गाइड की क्षमता भर जाती है. कई नए छात्रों ने शिकायत की थी कि उन्होंने PhD एंट्रेंस परीक्षा पास कर ली, लेकिन एक से दो साल तक गाइड नहीं मिला. इससे उनकी रिसर्च की शुरुआत ही नहीं हो पाई.

PhD के लिए अधिकतम 8 साल

यूजीसी के दिशानिर्देशों के अनुसार, PhD पूरी करने के लिए सामान्य तौर पर 3 से 6 साल का समय दिया जाता है. यदि छात्र री-रजिस्ट्रेशन कराता है, तो उसे 2 साल का अतिरिक्त समय मिल सकता है. इस तरह एक छात्र के पास अधिकतम 8 साल का समय होता है. महिला और दिव्यांग उम्मीदवारों को कुल 10 साल तक की छूट मिलती है. इन नियमों के अनुसार जब विश्वविद्यालय ने 553 छात्रों की फाइलें जांचीं, तो पाया कि ये छात्र 8 और 10 साल की अधिकतम सीमा से भी आगे जा चुके थे.

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