भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है और इसमें हर दिन करोड़ों लोग सफर करते हैं. इतने बड़े नेटवर्क को सुरक्षित और समय पर चलाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है ट्रेन के ड्राइवर यानी लोको पायलट पर. राजधानी, शताब्दी और अब वंदे भारत जैसी हाई-स्पीड ट्रेनों में काम करने वाले ड्राइवरों की सैलरी को लेकर लोगों के मन में हमेशा उत्सुकता रहती है. अक्सर सवाल उठता है कि आखिर सबसे ज्यादा सैलरी किसे मिलती है? क्या वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेन का लोको पायलट सबसे ज्यादा कमाता है या फिर राजधानी-शताब्दी जैसे प्रीमियम रूट पर चलने वाले ड्राइवर ज्यादा सैलरी लेते हैं?
असल में भारतीय रेलवे में लोको पायलटों की सैलरी उनके रूट, ट्रेन के प्रकार, अनुभव, ग्रेड और ओवरटाइम पर निर्भर करती है. राजधानी, शताब्दी और वंदे भारत तीनों ही प्रीमियम ट्रेनों के तहत आती हैं. इनके लोको पायलट का अनुभव भी आम मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की तुलना में ज्यादा होता है, इसलिए इनकी सैलरी भी अधिक होती है. हालांकि, इन तीनों में सबसे ज्यादा कमाई आमतौर पर वंदे भारत ट्रेन के लोको पायलट को होती है, क्योंकि यह हाई-स्पीड ट्रेन है और इसे चलाने के लिए अधिक ट्रेनिंग, अनुभव और तकनीकी कौशल की जरूरत होती है. इसके बाद राजधानी और फिर शताब्दी के लोको पायलट की सैलरी आती है.
सीधे नहीं बनते लोको पायलट
अब सवाल उठता है कि लोको पायलट कैसे बनते हैं और उन्हें कितनी सैलरी मिलती है? सबसे पहले जान लें कि सीधे लोको पायलट नहीं बना जा सकता. रेलवे में उम्मीदवारों को पहले असिस्टेंट लोको पायलट (ALP) बनाया जाता है. इसके लिए 10वीं पास के साथ आईटीआई या डिप्लोमा योग्यता जरूरी हैं. उम्र 18 से 30 वर्ष रखी जाती है, वहीं आरक्षित वर्गों को नियमों के अनुसार छूट मिलती है. ALP बनने के बाद उम्मीदवार को कठोर ट्रेनिंग मिलती है, फिर उसे समय-समय पर असल ट्रेन में प्रैक्टिकल अनुभव दिया जाता है. कई वर्षों की नौकरी और ट्रेनिंग के बाद ही उम्मीदवार लोको पायलट की जिम्मेदारी संभालते हैं.
सैलरी कितनी सैलरी की बात करें तो असिस्टेंट लोको पायलट की शुरुआती बेसिक पे 19,900 रुपये (लेवल-2) होती है, जिसमें भत्ते जोड़कर इन-हैंड सैलरी लगभग 30,000-35,000 रुपये तक बन जाती है. जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, पद भी आगे बढ़ते हैं. सीनियर लोको पायलट 35,000 से 55,000 रुपये कमा सकता है. वहीं मुख्य लोको पायलट की सैलरी 60,000 रुपये या उससे अधिक तक पहुंच जाती है, लेकिन प्रीमियम ट्रेनें चलाने वाले ड्राइवरों की इन-हैंड सैलरी इससे काफी ज्यादा हो जाती है. यह भी पढ़ें - क्या है H-1B और H-4 वीजा में अंतर? अब अमेरिका जाने से पहले जरूर कर लें ये काम
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