कोरोना महामारी ने हर क्षेत्र की वित्तीय बिगाड़ दी है, स्कूल-कॉलेज भी इसके प्रभाव से बच नहीं पाए हैं. दरअसल कोविड ​​​​-19 महामारी के कारण लंबे समय से स्कूल बंद हैं और इस वजह से ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों की आय में 20-50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है जिसका सीधा असर शिक्षकों के वेतन पर पड़ा है. दरअसल महामारी काल में कुछ निजी स्कूलों का रेवेन्यू घटने की वजह से शिक्षकों की सैलरी भी कम कर दी गई है. ये खुलासा एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट में किया गया है.


नए एडमिशन में आई गिरावट
भारत में क्वालिटी स्कूल एजुकेशन पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (CSF) की रिपोर्ट 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1100 से ज्यादा माता-पिता, स्कूल प्रशासक और शिक्षक के साथ की गई एक स्टडी पर आधारित है. रिपोर्ट के मुताबिक 55 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों ने कहा कि इस एकेडमिक ईयर में नए एडमिशन की संख्या में काफी कमी आई है, वहीं तीन-चौथाई स्कूलों को RTE रिम्बर्समेंट में देरी का सामना करना पड़ा है.


ज्यादा स्कूलों के रेवेन्यू में आई 20-50 फीसदी की कमी-रिपोर्ट
गौरतलब है कि नॉन माइनॉरिटी स्कूलों को 25 प्रतिशत आरटीई कोटे के तहत राज्य सरकार द्वारा सेलेक्ट किए गए छात्रों को मुफ्त प्रवेश देना होता है. फ्री एडमिशन के एवज में राज्य इन स्कूलों को एडवांस में निर्धारित राशि की प्रतिपूर्ति करता है. ज्यादातर स्कूलों के लिए रेवेन्यू में 20-50 फीसदी की कमी आई है, लेकिन खर्च पहले जितना ही बना हुआ है  इस प्रकार संचालन को निर्बाध रूप से जारी रखना मुश्किल हो गया है.


रेग्यूलर फीस का भुगतान न होने से स्कूलों का रेवेन्यू हुआ हम
रेग्यूलर फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे अभिभावकों की वजह से स्कूलों का रेवेन्यू काफी प्रभावित हुआ है. शहरी स्कूलों में यह ज्यादा है. 77 फीसदी स्कूलों का कहना है कि कोरोना महामारी काल में वे  स्कूलों की वित्तीय मदद के लिए लोन नहीं लेना चाहते हैं. जबकि तीन प्रतिशत स्कूल कर्ज ले चुके हैं. वहीं 5 प्रतिशत कर्ज को मंजूरी दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं.


प्राइवेट स्कूलों के 55 फीसदी शिक्षकों के वेतन में हुई कटौती
वहीं बता दें कि महामारी काल में लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट स्कूलों के कम से कम 55 फीसदी शिक्षकों की सैलरी में कटौती की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कम फीस वाले स्कूलों ने 65 प्रतिशत शिक्षकों की सैलरी रोक रखी है. जबकि ज्यादा फीस वाले स्कूलों ने 37 प्रतिशत टीचर्स का वेतन रोक रखा है. इस तरह कम से कम 54 फीसदी शिक्षकों की इनकम का कोई स्रोत नहीं है, जबकि 30 प्रतिशत शिक्षक अब आजीविका के लिए ट्यूशन पढ़ा रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 70 प्रतिशत अभिभावकों का कहना है कि स्कूल की फीस पहले जैसी ही है और केवल 50 प्रतिशत पैरेंट्स ही फीस दे रहे हैं जो स्कूलों के राजस्व में कमी का संकेत है.  


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