Wheat Procurement: गेहूं की खरीद के मामले में इस बार अच्छा आंकड़ा रहने वाला है, ऐसे संकेत नजर आ रहे हैं. दरअसल मौजूदा रबी मार्केटिंग सीजन में सरकारी गेहूं की खरीद इससे पिछले साल की तुलना में करीब 25 फीसदी बढ़ गई है. पिछले साल के रबी मार्केटिंग सीजन की तुलना में ये आंकड़ा अच्छा कहा जा सकता है. इस बार ये खास बात है कि सिर्फ सर्दियों के सीजन की सरकारी खरीद ही इतनी रहेगी जितनी पिछले पूरे साल की रबी मार्केटिंग सीजन की रही है और ये लक्ष्य इस हफ्ते के आखिर तक ही हासिल कर लिया जा सकता है.


सोमवार तक 171 लाख टन की खरीदारी हो चुकी है


सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि इस बार अभी तक कुल 171 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है, जो कि इस सोमवार तक का डेटा है. जबकि पिछले साल कुल खरीद ही 188 लाख टन की रही थी. इस तरह से ये लगभग साफ हो गया है कि इस साल गेहूं की खरीद का आंकड़ा पिछले साल से काफी अच्छा रहने वाला है.


300 लाख टन की खरीदारी का भरोसा


गेहूं खरीद से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि उन्हें भरोसा है कि मौजूदा मार्केटिंग वर्ष के आखिर तक गेहूं की कुल खरीद 300 लाख टन तक पहुंच जाएगी और इसका असर ये होगा कि खाद्य सुरक्षा के लिए पर्याप्त अन्न की उपलब्धता होगी. इसके अलावा अगर जरूरत होती है तो अन्य बाजारों में भी खरीदारी के लिए गेहूं की उपलब्धता पर विचार किया जा सकता है.


कुछ राज्यों से आए ज्यादा उत्साहजनक आंकड़े


हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सोमवार को कहा कि राज्य में 54 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेहूं की खरीद की जा चुकी है और किसानों को सीधे उनके बैंक खातों में 5,800 करोड़ रुपये का पेमेंट किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि अगले दो दिनों में 9000 करोड़ रुपये किसानों के खातों में जमा करा दिए जाएंगे. उप-मुख्यमंत्री ने कहा कि 1 अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू की गई थी और अब तक 54 लाख मीट्रिक टन की खरीद की जा चुकी है और आने वाले दिनों में 20 लाख मीट्रिक टन और खरीदने की संभावना है. उन्होंने कहा कि मंडीकरण स्थलों से गेहूं का उठाव तेज कर दिया गया है और 52 फीसदी से अधिक उठाव हो चुका है. 


पिछले साल क्यों हुई थी गेहूं और गेहूं उत्पादों की किल्लत


अगर सरकारी आंकड़ों से इतर बात की जाए तो पिछले साल का जो रुझान रहा, उसमें साफ तौर पर सरकारी गेहूं की खरीद बहुत ज्यादा नहीं रही और किसानों ने खुले बाजार मे गेहूं ज्यादा बेचा था. पिछले साल फरवरी में छिड़े रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से गेहूं की उपलब्धता का वैश्विक संकट पैदा हुआ जो काफी लंबे समय तक चला. सरकार ने इसके चलते गेहूं के निर्यात पर कुछ सख्त फैसले भी लिए और बीच-बीच में एक्सपोर्ट पर कुछ खास पाबंदियां लगाईं. गेहूं के ग्लोबल संकट का असर देश पर भी देखा गया और इसके दाम में उछाल का सिलसिला चालू हुआ. इसका नतीजा ये हुआ कि देश में गेहूं के दाम बेतहाशा बढ़े जिससे आटे की कीमतों में भी काफी उछाल देखा गया था.


पिछले साल कम रहा था गेहूं का प्रोडक्शन


हालांकि देश में पिछले साल गेहूं का उत्पादन भी इससे पिछले सालों की तुलना में कम रहा और ग्लोबल संकट के बीच भारतीय गेहूं की मांग में ही खासा उछाल देखा गया था. किसानों ने इस मौके को देखकर सरकारी मंडियों में बेचने की बजाए खुले बाजार में गेहूं बेचने को प्राथमिकता दी थी. 


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