US-China Trade Tensions: हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ वॉर (व्यापारिक शुल्क युद्ध) में आई नरमी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को थोड़ी राहत जरूर दी है, लेकिन इसका असर भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर पर नकारात्मक रूप में देखा जा रहा है. बुसान में अमेरिकी और चीनी राष्ट्रपतियों की मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव में आई कमी को ‘सफल’ बताया गया, पर इस विकास ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की चिंता बढ़ा दी है.
यूएस-चीन समझौते का असर
अमेरिका द्वारा चीन से आयातित सामानों पर लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) में कमी के बाद भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने की आशंका जताई है. उद्योग का कहना है कि इससे अमेरिकी बाजार में उनकी पकड़ कमजोर हो सकती है, क्योंकि अब चीन के उत्पाद और सस्ते होकर वहां पहुंचेंगे. इस वजह से भारतीय उद्योग ने सरकार से अपील की है कि वह इस संभावित असर को कम करने के लिए सहायक नीतिगत कदम उठाए.
अमेरिकी राष्ट्रपति व्लादिमीर और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 30 अक्टूबर को हुई मुलाकात के बाद अमेरिका ने चीन के ऊपर लगाए गए फेंटाइल टैरिफ को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम से भारत को अब तक जो प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल रहा था, वह काफी कम हो गया है.
आईसीईए की चिंता
इंडिया सेल्यूलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने 6 नवंबर को सरकार को लिखे पत्र में कहा कि चीन के सामानों पर अमेरिकी टैरिफ में कटौती से भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के मुनाफे में लगभग 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. ICEA देश की प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों — एप्पल, गूगल, मोटोरोला, फॉक्सकॉन, वीवो, ओप्पो, लावा, डिक्सॉन, फ्लेक्स और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स — का प्रतिनिधित्व करती है.
यह स्थिति इसलिए भी अहम है क्योंकि ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत के जिन क्षेत्रों ने सबसे तेज़ प्रगति की है, उनमें इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर प्रमुख रहा है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक समझौते से पैदा हुई यह नई चुनौती भारत की इस सफलता को धीमा करने का खतरा पैदा कर सकती है.