अगस्त का महीना चल रहा है... भारत की आजादी का महीना. सन 47 में इसी महीने की 15 तारीख को भारत को सदियों की गुलामी से आजादी मिली थी. स्कूल की किताबों में अगर आपने भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास पढ़ा होगा तो आपने कंपनी राज के बारे में भी जरूर पढ़ा होगा. दरअसल ब्रिटेन के राज परिवार ने भारत का नियंत्रण अपने हाथों में 1857 की क्रांति के बाद लिया था. उससे पहले भारत पर एक कंपनी का राज चल रहा था. संयोग देखिए, समय का पहिया ऐसा घूमा कि जो कंपनी भारत पर सदियों तक राज कर रही थी, आज उसका मालिक एक भारतीय ही बना बैठा है.


व्यापार करने के लिए हुई स्थापना


ये कहानी शुरू होती है कई सौ साल पीछे से. 16वीं सदी में यूरोप की शक्ति का उभार हुआ और उसके साथ उपनिवेशवाद ने जोर पकड़ा. उसी समय कुछ अंग्रेज व्यापारियों ने मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से व्यापार करना था. यह कंपनी बनी 1600 ईस्वी में और 1601 ईस्वी में जेम्स लैनकास्टर की अगुवाई में कंपनी पहली बार भारत पहुंची.


250 साल तक बुलंद रहा सितारा


ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापारिक अधिकार दिलाया थॉमस रो ने, जिसे तत्कालीन मुगल बादशाह जहांगीर से मंजूरी मिली थी. कंपनी के जहाजों ने 1608 ईस्वी में सूरत में लंगर डाला. आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम में कंपनी ने 1611 में पहली फैक्ट्री लगाई. उसके बाद कुछ ही सालों में कंपनी ने कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता), सूरत समेत कई शहरों में ठिकाने बना लिए. धीरे-धीरे कंपनी व्यापार छोड़ शासन करने लग गई. ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रांस और पुर्तगाल की कंपनियों को युद्ध में हराया. सबसे निर्णायक साबित हुआ, 1764 का बक्सर युद्ध, जिसने भारत में कंपनी राज की जड़ें मजबूत कर दी. 1857 तक भारत पर कंपनी का राज चलता रहा, लेकिन उस साल हुई क्रांति के बाद ब्रिटिश राजघराने ने भारत का शासन कंपनी के हाथों से अपने पास ले लिया.


पूरब में पहुंचाया ब्रिटेन का राज


ईस्ट इंडिया कंपनी ने सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि चीन में भी व्यापार के नाम पर शासन किया. कंपनी एक समय ब्रिटिश सत्ता और ताकत का प्रतीक बन गई थी. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शीर्ष दौर में कहावत बनी थी कि ब्रिटेन के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता है. इस कहावत को वास्तव में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही सच बनाया था, जिसने पूरब में ब्रिटेन के उपनिवेशवाद के पहुंचाया और अकूत दौलत कमा कर दी.


1857 की क्रांति ने ठोकी कील


समय कभी एक समान नहीं रहता है. चरमोत्कर्ष के बाद पराभव के दिन आए. 1857 की क्रांति ने ही ईस्ट इंडिया कंपनी के बुरे दिनों की शुरुआत कर दी थी. कंपनी के विशेषाधिकार उसके बाद छीन लिए गए. पहले कंपनी को अपनी सेना रखने का भी अधिकार था. विशेषाधिकारों के छिनते जाने से कंपनी का प्रभुत्व कम होता गया और भारत के हाथ से निकलने से उसके कमाई के जरिए एकदम सीमित हो गए. धीरे-धीरे कंपनी का कारोबार एकदम सिकुड़ गया.


फिर पूरा हुआ समय के पहिए का चक्कर


इतिहास के पहिए का पूरा चक्कर आया साला 2010 में. भारत को लूटकर एक समय दुनिया की सबसे अमीर कंपनी बनने  वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को उस साल भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता ने खरीद लिया. तब ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदने की डील मेहता ने 15 मिलियन डॉलर यानी करीब 120 करोड़ रुपये में की.


अब ये काम करती है ईस्ट इंडिया कंपनी


एक समय था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार छोड़िए, कई देशों में सरकारें चलाने का काम कर रही थी. क्या रेल और क्या जहाज, सब ईस्ट इंडिया कंपनी का हुआ करता था. और फिर एक समय है वर्तमान. अब मेहता ने उसे खरीदने के बाद ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बना दिया है. अब यह कंपनी चाय से लेकर चॉकलेट और कॉफी से लेकर गिफ्ट के कई अन्य सामानों की ऑनलाइन बिक्री करती है.


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