Layoffs: साल 2023 आधा गुजर चुका है और साल के पहले छह महीने में ही दुनियाभर में नौकरियों का संकट इतना गहरा हो चुका है कि चौतरफा चिंता के बादल छाए हैं. साल के पहले छह महीनों में विश्व में 2.12 लाख कर्मचारियों से ज्यादा की नौकरी जा चुकी है, इनमें चाहे बड़ी टेक फर्में हों या स्टार्टअप्स सभी में एक जैसा हाल है. 2023 के पहले छह महीनों में वैश्विक टेक्नोलॉजी सेक्टर में स्थिति ज्यादा चिंताजनक बन रही है.  


2.12 लाख एंप्लाइज को अब तक नौकरी से निकाला जा चुका


छंटनी के डेटा के बारे में जानकारी देने वाली ट्रैकिंग साइट Layoffs के मुताबिक ये जानकारी निकलकर आई है और इसके मुताबिक 30 जून 2023 तक 819 टेक कंपनियों में से 212,221 एंपलाइज को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. इसके मुकाबले साल 2022 का डेटा देखें तो 1046 टेक कंपनियों में से 1.61 लाख कर्मचारियों की छंटनी की जा चुकी है. इस सब के आधार पर देखें तो साल 2022 और 2023 की 30 जून तक कुल 3.8 लाख एंप्लाइज की छंटनी की जा चुकी है.


क्या है कंपनियों में छंटनी का कारण


बड़ी-बड़ी टेक कंपनियों से लेकर छोटे-छोटे स्टार्टअप्स ने भी अपने यहां से छंटनी के कुल मिलाकर एक जैसे ही कारण बताए हैं. इनमें मुख्य तौर पर- जरूरत से ज्यादा भर्तियां, अस्थिर वैश्विक मैक्रो इकोनॉमिक परिस्थितियां और कोविड-19 महामारी का बचा हुआ असर और इसकी चिंताएं ही प्रमुख हैं.


भारत में भी दिख रहा है असर


भारतीय टेक इकोसिस्टम में भी ये छंटनी के बादल छाए हुए हैं. अभी तक 11 हजार से ज्यादा भारतीय स्टार्टअप्स कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है. पिछले साल इसी समान अवधि की तुलना में ये 40 फीसदी ज्यादा है. भारत में हुई छंटनी ग्लोबल लेऑफ का कुल 5 फीसदी हो चुका है. एक और डेटा के मुताबिक जबसे साल 2022 में कड़े समय के लिए कंपनियां तैयारी कर रही हैं तब से ही छंटनी का दौर शुरू हुआ है और अब तक 102 भारतीय स्टार्टअप्स में 27,000 से ज्यादा एंप्लाइज को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. इनमें 22 एडटेक स्टार्टअप्स ऐसे हैं जिनमें सात यूनिकॉर्न एडेटक भी शामिल हैं और अपने यहां से 10,000 के करीब एंप्लाइज की छंटनी कर चुके हैं.


नए यूनिकॉर्न नहीं बने इस साल


पिछले साल के जनवरी-जून के मुकाबले इस साल अभी तक फंडिंग में करीब 70 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है. इसके चलते ही साल 2023 के जनवरी-जून यानी पहले छह महीनों में देश में एक भी नया यूनिकॉर्न नहीं बन पाया है. ये इस बात का संकेत है कि कठिन समय आ चुका है और आर्थिक मंदी की आहट के चलते कंपनियां सतर्क नजरिया लेकर चल रही हैं.


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