रियल एस्टेट कंपनियों ने जीएसटी नोटिस मिलने के बाद वित्त मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की है. जीएसटी डिपार्टमेंट ने दर्जनों प्रॉपर्टी डेवलपरों को नोटिस भेजा है. ये नोटिस स्पेशल पर्पस व्हीकल्स में ब्रांड नाम के इस्तेमाल समेत विभिन्न कारणों से भेजे गए हैं.


मांगों पर गौर कर रहा वित्त मंत्रालय


ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, नोटिस मिलने के बाद रियल एस्टेट कंपनियों ने वित्त मंत्रालय से संपर्क किया है और हस्तक्षेप करने की मांग की है. रिपोर्ट में मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि मंत्रालय ने रियल एस्टेट कंपनियों की बातों को सुना. मंत्रालय अभी मामले पर गौर कर रहा है.


इन कारणों से भेजे गए नोटिस


दरअसल जीएसटी डिपार्टमेंट ने 27 बड़े व मध्यम रियल एस्टेट कंपनियों को नोटिस भेजा है. ये नोटिस मुख्य तौर पर प्रोजेक्ट इम्पलीमेंट करने के लिए बनाए जाने वाले स्पेशल पर्पस व्हीकल में ब्रांड नाम का इस्तेमाल करने को लेकर ग्रुप के अंदर किए जाने वाले रॉयल्टी पेमेंट से जुड़े हुए हैं. फ्लैगशिप कंपनियों के द्वारा अपनी सब्सिडयरीज को दी जाने वाली कॉरपोरेट गारंटी पर टैक्स का भुगतान नहीं किए जाने के चलते भी कंपनियों को नोटिस भेजे गए हैं.


रियल एस्टेट कंपनियों का तर्क


रियल एस्टेट कंपनियों का कहना है कि ज्यादातर डेवलपर हर प्रोजेक्ट के लिए स्पेशल पर्पस व्हीकल मॉडल को अपनाते हैं. प्रोजेक्ट के इम्पलीमेंटेशन के लिए रियल एस्टेट कंपनियां एसपीवी बनाती हैं. ऐसे में अगर 18 फीसदी जीएसटी लगा तो रियल एस्टेट कंपनियों की लागत काफी बढ़ जाएगी और उनका मुनाफा प्रभावित होगा. इसी कारण जीएसटी कंपनियां वित्त मंत्रालय से राहत की मांग कर रही हैं.


3,500 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी


डाइरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलीजेंस के अनुसार, रियल एस्टेट सेक्टर के ऊपर करीब 3,500 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी बकाया है. डीजीजीआई का कहना है कि स्पेशल पर्पस व्हीकल में फ्लैगशिप कंपनी के लोगो का इस्तेमाल करना सर्विस के दायरे में आता है. ऐसे में इन मामलों में 18 फीसदी की दर से जीएसटी की देनदारी बनती है. इस कैलकुलेशन के हिसाब से विभिन्न जीएसटी कंपनियों के ऊपर 3,500 करोड़ रुपये की जीएसटी देनदारी निकल रही है, जिनमें से 1,800 करोड़ रुपये के करीब रिकवर किए गए हैं.


ये भी पढ़ें: तेज हुई क्रिप्टो की खरीदारी, बिटकॉइन ने बना दिया नया इतिहास