Infra Project Financing: पिछले कुछ सालों में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर लोन डूबने के चलते कई बैंक मुसीबत में फंसे हैं. उनके एनपीए में इस डूबे हुए लोन की बड़ी भागीदारी है. साल 2012-13 से लेकर कई बैंक इंफ्रास्ट्रक्चर लोन डूबने की वजह से संकट में आए हैं. इससे देश के बैंकिंग सिस्टम पर बुरा असर पड़ रहा है. अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की फाइनेंसिंग को लेकर सख्ती करने का फैसला किया है. आरबीआई इंफ्रा प्रोजेक्ट को लोन देने के लिए नए नियम लेकर आने वाला है. नए नियमों का ढांचा तैयार हो चुका है और इस पर सुझाव देने के लिए आरबीआई की तरफ से 15 जून तक का समय दिया गया है.
बैंकों को लगातार प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग करनी होगी
आरबीआई द्वारा शुक्रवार को यह प्रस्ताव सामने लाया गया है. इसमें बैंकों से कहा गया है कि अंडर कंस्ट्रक्शन इंफ्रा प्रोजेक्ट को कर्ज देने से पहले वह सोच समझकर फैसला लें. साथ ही लगातार प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग भी करें ताकि कोई छोटी समस्या बड़ी न हो सके. ऐसे प्रोजेक्ट को लेकर बैंकों के अनुभवों से सीखते हुए नए नियमों का यह ड्राफ्ट तैयार किया गया है. ऐसे प्रोजेक्ट में बड़े डिफॉल्ट हुए हैं. इसके चलते बैंकों की स्थिति बिगड़ी है. अब देश में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट तेजी से आ रहे हैं. सरकार भी इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए इन प्रोजेक्ट को बढ़ावा दे रही है.
लोन अमाउंट का 5 फीसदी अलग से रखना होगा
आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, बैंकों को प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन के दौरान लोन अमाउंट का 5 फीसदी अलग से रखना होगा. इसे प्रोजेक्ट के चालू हो जाने पर 2.5 फीसदी और रीपेमेंट की स्थिति में आ जाने के बाद 1 फीसदी पर भी लाया जा सकेगा. आरबीआई की वेबसाइट के अनुसार, 2021 के सर्कुलर में इस रकम को फिलहाल 0.4 फीसदी रखा जाता है. बैंकों को प्रोजेक्ट में आ रही किसी भी समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना होगा. साथ ही समाधान के विकल्प तैयार रखने होंगे. केंद्रीय बैंक ने कहा है कि यदि कई बैंक मिलकर कंसोर्टियम बनाकर 15 अरब रुपये तक के प्रोजेक्ट की फाइनेंसिंग कर रहे हैं तो उन्हें 10 फीसदी लोन अमाउंट रिजर्व रखना होगा.
देरी की आशंका होने पर बदलनी होगी लोन की कैटेगरी
आरबीआई ड्राफ्ट के अनुसार, बैंकों को जानकारी रखनी होगी कि इंफ्रा प्रोजेक्ट कब पूरा हो रहा है. यदि उसमें देरी की आशंका है तो बैंक को अपनी तरफ से कदम उठाने पड़ेंगे. आरबीआई ने कहा है कि यदि किसी प्रोजेक्ट में 3 साल से भी अधिक देरी की आशंका है तो उसे स्टैंडर्ड लोन से स्ट्रेस लोन की कैटेगरी में डालना पड़ेगा.
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