Pakistan Foreign Loan Rises: पड़ोसी देश पाकिस्तान दो साल पहले जिस तरह दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था, उससे वह भले ही किसी तरह बच निकला हो, लेकिन उसकी आर्थिक हालत आज भी बेहद नाजुक बनी हुई है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद और कर्ज पर निर्भर पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने और जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए लगातार विदेशी ऋण ले रहा है. स्थिति इतनी गंभीर है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मिले विशेष राहत पैकेज के बावजूद यदि उसे समय-समय पर नए कर्ज न मिलें, तो देश में भुखमरी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं. यह खुलासा खुद पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ की रिपोर्ट में हुआ है.

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पाकिस्तान का बढ़ता लोन

रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों यानी जुलाई से नवंबर 2025 के बीच पाकिस्तान द्वारा विदेशों से लिए गए कर्ज और अनुदान में करीब 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह राशि बढ़कर 3.032 अरब डॉलर हो गई है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 2.667 अरब डॉलर थी. इस दौरान विदेशी कर्ज में 46.2 प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी हुई और यह 2.521 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जबकि ग्रांट्स में 43 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई और यह घटकर महज 54 मिलियन डॉलर रह गई.

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अकेले नवंबर महीने में ही पाकिस्तान ने 511 मिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज लिया, जो अक्टूबर में लिए गए 471 मिलियन डॉलर से अधिक था, हालांकि नवंबर 2024 की तुलना में यह करीब 46 प्रतिशत कम रहा. गौरतलब है कि इसी महीने की शुरुआत में आईएमएफ ने पाकिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता को मंजूरी दी थी, लेकिन इस राशि को मौजूदा कर्ज के आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है.

आईएमएफ के पैकेज से भी नहीं राहत

पाकिस्तान सरकार ने इस वित्त वर्ष में कुल 19.9 अरब डॉलर के विदेशी फंड जुटाने का लक्ष्य रखा है, जो पिछले साल के 19.4 अरब डॉलर से थोड़ा कम है. आईएमएफ से 1.2 बिलियन डॉलर की नई किश्त मिलने के बाद पाकिस्तान को इस अंतरराष्ट्रीय संस्था से मिलने वाली कुल राशि बढ़कर 3.3 बिलियन डॉलर हो जाएगी.

हालांकि राहत के साथ-साथ आईएमएफ ने पाकिस्तान पर दबाव भी बढ़ा दिया है और उसे मौद्रिक समर्थन के बदले 11 नई शर्तें मानने के लिए कहा है, जिससे 18 महीनों की अवधि में लागू शर्तों की कुल संख्या 64 से अधिक हो गई है. इन शर्तों में भ्रष्टाचार पर लगाम, कर सुधार, बिजली और ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव, प्रशासनिक सुधार और बेहतर गवर्नेंस जैसे अहम मुद्दे शामिल हैं, जो यह दिखाते हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक सेहत सुधारने की राह अभी भी बेहद कठिन और अनिश्चित बनी हुई है.

विदेशी लोन पर निर्भरता

आईएमएफ की ओर से पाकिस्तान को मिली ताज़ा वित्तीय मदद ऐसे समय में आई है, जब उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से विदेशी कर्ज और अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर होती जा रही है. वर्ष 2023 में भले ही पाकिस्तान तकनीकी रूप से दिवालिया होने से बच गया हो, लेकिन उसके बाद भी हालात में कोई ठोस सुधार देखने को नहीं मिला है. बढ़ता चालू खाता घाटा, कमजोर विदेशी मुद्रा भंडार, ऊंची महंगाई और रुपये की लगातार गिरती कीमत ने देश की आर्थिक नींव को और कमजोर कर दिया है. स्थिति यह है कि आज पाकिस्तान अर्जेंटीना और यूक्रेन के बाद दुनिया के सबसे ज्यादा कर्जदार देशों में शुमार हो चुका है.

सरकार की आय और खर्च के बीच बढ़ता अंतर, कर संग्रह की कमजोर व्यवस्था और ऊर्जा क्षेत्र में लगातार घाटा, उसकी वित्तीय परेशानियों को और गहरा रहा है. आईएमएफ से मिलने वाला कर्ज अल्पकालिक राहत तो देता है, लेकिन इसके बदले लगाई गई सख्त शर्तें आम जनता पर बोझ बढ़ाती हैं, जिनमें सब्सिडी में कटौती, टैक्स बढ़ोतरी और महंगाई शामिल है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान ने संरचनात्मक सुधारों पर गंभीरता से काम नहीं किया और कर्ज आधारित अर्थव्यवस्था से बाहर निकलने की रणनीति नहीं बनाई, तो आने वाले वर्षों में उसकी आर्थिक स्थिति और अधिक नाजुक हो सकती है.

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