Tax Regime Switch: नया वित्त वर्ष (FY24) शुरू होने के बाद अब जल्दी ही इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return Filing) भरने का सीजन शुरू होने वाला है. अभी इनकम टैक्स रिटर्न भरने (ITR Filing) के लिए दो कर व्यवस्थाएं नई ओर पुरानी उपलब्ध हैं. सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग नई व्यवस्था को अपनाएं. इसी लिए सरकार ने नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट बना दिया है. हालांकि अभी भी टैक्सपेयर्स के पास पुरानी कर व्यवस्था को चुनने का विकल्प बचा हुआ है.


ये है डिफॉल्ट बनाने का मतलब


नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट बनाए जाने का मतलब क्या है, सबसे पहले यह जान लेते हैं. इसका मतलब हुआ कि अगर आप अपने नियोक्ता यानी अपनी कंपनी को पसंद की कर व्यवस्था के बारे में नहीं बताया तो आपके लिए नई कर व्यवस्था का विकल्प खुद ही तय हो जाएगा. सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब हुआ कि अगर आप वेतनभोगी हैं तो आपकी चुप्पी को आयकर विभाग नई कर व्यवस्था के लिए हां मानेगा.


सीबीडीटी ने दिया है ये निर्देश


दरअसल केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने नियोक्ताओं से कहा कि वो कर्मचारियों से पूछें कि वो नई या पुरानी कर व्यवस्था में से किसमें बने रहना चाहते हैं. कर व्यवस्था के हिसाब से ही वेतन पर कर की गणना होगी और नियोक्ता स्त्रोत पर कर कटौती यानी TDS काटेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टैक्सपेयर्स को एक बार कोई विकल्प चुन लेने के बाद उसे बदलने का मौका मिलता है और अगर हां तो कितनी बार इन्हें स्विच किया जा सकता है...


बिजनेस से है कमाई तो ये मौका


इनकम टैक्स विभाग आपको डिफॉल्ट ऑप्शन के बाद भी विकल्प को बदलने की सुविधा देता है. हालांकि दोनों व्यवस्थाओं के बीच स्विच करने की सुविधा सिर्फ वैसे करदाताओं के लिए है, जिन्हें सैलरी से इनकम हो रही हो और वे बिजनेस से कुछ भी नहीं कमा रहे हों. बिजनेस से इनकम वाले टैक्सपेयर्स अगर एक बार नई कर व्यवस्था को चुन लेते हैं तो उन्हें पुरानी व्यवस्था में वापस जाने के लिए सिर्फ एक मौका मिलता है. वे भविष्य में भी इसे पुन: स्विच नहीं कर सकते हैं.


वेतनभोगियों के लिए ये सुविधा


सैलरी वाले करदाताओं की बात करें तो अगर उन्होंने वित्त वर्ष की शुरुआत में विकल्प नहीं चुना तो नई कर व्यवस्था डिफॉल्ट सेलेक्ट हो जाएगी. इसके बाद नई व्यवस्था के स्लैब के हिसाब से कंपनी उनकी सैलरी से टीडीएस काटेगी. हालांकि बाद में वह रिटर्न भरते समय पुरानी कर व्यवस्था में स्विच कर सकते हैं और अगर इस व्यवस्था के हिसाब से ज्यादा टैक्स कट गया हो तो रिफंड क्लेम कर सकते हैं. ऐसे करदाता बाद में भी दोनों कर व्यवस्थाओं के बीच स्विच कर सकते हैं.