कॉमर्शियल पेपर, ट्रेजरी बिल और दूसरे तरह के शॉर्ट टर्म मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स की ब्याज दरें कम होने की वजह से लिक्विड फंड निवेशकों की मुश्किल बढ़ गई हैं. शॉर्ट टर्म मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स की ब्याज दरें रिवर्स रेपो रेट से भी नीचे चली गई हैं. इस वजह से इनमें निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड हाउस के लिक्विड फंड आकर्षक नहीं रह गए हैं.


छोटी अवधि में पैसा लगा कर मुनाफा कमाना मुश्किल 


फंड हाउस का कहना है कि छोटी अवधि में पैसा लगा कर मुनाफा कमाना मुश्किल होता जा रहा है. क्रेडिट स्प्रेड लगातार सिकुड़ता जा रहा है. यह स्थिति आरबीआई के लगातार घटते रिवर्स रेपो रेट की वजह से आई है. फंड हाउस मैनेजरों का कहना है कि जब आरबीआई मार्केट में स्थिरता लाने वाली स्कीमें, मसलन बॉन्ड, ट्रेजरी बिल आदि जारी करने लगे तो कॉमर्शियल पेपर जैसे इंस्ट्रूमेंट्स के जरिये लिक्विडिटी पैदा करने के ऑप्शन सिकुड़ने लगते हैं. आरबीआई की ओर जारी होने वाली मनी मार्केट स्कीमें सिस्टम में मौजूद जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी को सोख लेती हैं. इस वक्त बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की भरमार है. सिस्टम में 8.04 लाख रुपये का सरप्लस है.


लिक्विड फंड का रिटर्न बेहद कम


पिछले तीन महीनों के दौरान डेट आधारित लिक्विड फंड ने सिर्फ 0.76 फीसदी रिटर्न दिया है. फंड मैनेजरों को लिक्विड प्लान के तहत लॉन्ग टर्म पेपर्स में निवेश करने की इजाजत नहीं होती है. इस वक्त लगभग सभी लिक्विड फंड काफी कम रिटर्न दे रहे हैं. एसबीआई का शॉर्ट टर्म डिपोजिट ( 46 से 179 फीसदी) 3.9 फीसदी ब्याज दे रहा है. आदित्य बिड़ला फाइनेंस कॉरपोरेशन का कॉमर्शियल पेपर पर 3.25 से लेकर 3.32 फीसदी तक ब्याज दे रहा है. ऐसे में लिक्वड प्लान में निवेशकों का रुझान तेजी से कम हो रहा है.


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