इस साल की शुरुआत से ही ग्‍लोबल और भारतीय बाजार (Indian Equity Market) में अस्थिरता देखी जा रही है. महंगाई में होती लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने ब्‍याज दरों में अच्‍छा-खासा इजाफा किया है और इसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, अगर आप विदेशी बाजारों से तुलना करेंगे तो पाएंगे भारत की अर्थव्‍यवस्‍था (Indian Economy) तुलनात्‍मक रूप से ज्‍यादा स्थिर है. दूसरे उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं (Emerging Economies) के मुकाबले भारतीय बाजार का प्रदर्शन एक या पांच साल में बेहतर रहा है. इक्विटी वैल्‍यूएशन की बात करें तो भारत का लॉन्‍ग टर्म एवरेज भी दूसरे बाजारों की तुलना में अच्‍छा रहा है. हालांकि, इन सब के बावजूद रिस्‍क के प्रति सचते रहने की जरूरत है क्‍योंकि मार्केट वैल्‍यूएशन सस्‍ता नहीं है. 


आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के एमडी और सीईओ निमेश शाह कहते हैं कि दुनिया भर के बाजार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इस लिहाज से अगर दुनिया में कोई समस्या आती है तो भारत में भी शेयर बाजार में निवेश करने वालों के लिए सफर इतना आसान भी नहीं हो सकता है. हमारा मानना है कि जब यूएस फेड यह घोषणा करता है कि मुद्रा को सख्ती से साथ निपटा जा चुका है तो यह इक्विटी के लिए एक बड़े असेट क्लास के रूप में उभरने का बड़ा मौका होगा. हमें नहीं पता कि ऐसा कब होगा और तब तक हम उम्मीद करते हैं कि मार्केट में उतार-चढ़ाव बना रहेगा.


शाह ने कहा कि विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं (Developed Economies) के आर्थिक मंदी या सुस्‍ती (Recession) के दौर से गुजरने के बावजूद भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. वास्तव में विश्‍व के विकसित देशों में आने वाली मंदी (developed world recession) भारत की कुछ चुनौतियों को कम कर सकती है. उदाहरण के तौर पर तेल की ऊंची कीमतें, चालू खाता घाटे को लेकर होनी वाली चिंताएं और महगाई के मोर्चे पर हमे फायदा भी हो सकता है. शेयर बाजार में अगर गिरावट भी आती है तो हमें ज्‍यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. वास्‍तव म भारतीय बाजार संरचनात्‍मक तौर पर मजबूत है. 


मौजूदा वैश्विक बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार की स्थिति तो हम सब समझते ही हैं, अब बात करते हैं कि ऐसे बाजार परिस्थितियों में एक व्‍यक्तिगत निवेशक को किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए और अपने निवेश पोर्टफोलियो में क्‍या-क्‍या शामिल करना चाहिए. शाह ने निवेशकों को निम्‍नलिखित सुझाव दिए हैं.   


डेट म्‍यूचुअल फंड में करें निवेश


डेट म्‍यूचुअल फंड्स अबतक लोकप्रिय नहीं हो पाए हैं. हालांकि, निवेश के दौरान हायर यील्ड को देखते हुए, एक एसेट क्लास के तौर पर डेट फिर से आकर्षक लग रहा है. शाह के अनुसार, रिजर्व बैंक की आगामी बैठकों में रेपो दर में बढ़ोतरी होगी क्योंकि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें ऊंची है और इसने आरबीआई के सामने एक चुनौती खड़ी की है. इसलिए भविष्य में हाई अक्रूअल स्कीम और डायनामिक ड्यूरेशन वाली स्कीम फायदे का सौदा साबित हो सकते हैं. फ्लोटिंग रेट बांड अर्थात एफआरबी भी भविष्‍य में अच्‍छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इनवेस्टर्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि डेट म्यूचुअल फंड की पोर्टफोलियो में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.


सिस्‍टेमेटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान का लें सहारा


जब तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व महंगाई पर नियंत्रण के लिए सभी उपलब्‍ध विकल्‍पों का सहारा ले रहा है, तब तक बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर जारी रहेगा. शाह कहते हैं कि बाजार के उतार-चढ़ाव को देखते हुए निवेशकों को आदर्श रूप से तीन से पांच साल के समय के साथ सिस्‍टेमेटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान (SIP) के जरिये इक्विटी म्‍यूचुअल फंडों में निवेश करना चाहिए. योजनाबद्ध, अनुशासित और व्यवस्थित तरीके से विभिन्न फाइनेंशियल गोल्‍स को प्राप्त करने के लिए बूस्टर एसआईपी, बूस्टर एसटीपी, फ्रीडम एसआईपी या फ्रीडम एसडब्ल्यूपी जैसी फीचर्स पर भी विचार किया जा सकता है.


गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ करें पोर्टफोलियो में शामिल


एक डायवर्सिफायड पोर्टफोलिया में निवेश से जुड़ा जोखिम कम हो जाता है. डायवर्सिफायड पोर्टफोलियो यह सुनिश्चित करता है किकंसेन्‍ट्रेशन रिस्‍क (Concentration Risk) को कम किया जाए. अनिश्चितता को देखते हुए सोना और चांदी निवेश के अच्‍छे विकल्‍प हो सकते हैं. शाह कहते हैं कि ये न सिर्फ महंगाई के खिलाफ, बल्कि रुपये के अवमूल्‍यन (Currency Depreciation) से भी बचाव के रूप में काम करते हैं. निवेश गोल्‍ड और सिल्‍वर में में ईटीएफ (Exchange Traded Funds) के जरिये निवेश करने पर विचार कर सकते हैं. जिनके पास डीमैट खाता नहीं है, उनके लिए गोल्ड या सिल्वर फंड ऑफ फंड्स निवेश का एक विकल्‍प हो सकता है.