Indian Business Tycoon Azim Premji: देश के सबसे बड़े परोपकारियों में से एक अजीम प्रेमजी को देशवासी एक आदर्श के रूप में मानते हैं. उनकी समाज के प्रति दरियादिली और सोसायटी के प्रति किए गए कामों की मिसाल खूब दी जाती है. मौजूदा समय में विप्रो के संस्थापक और फाउंडर अजीम प्रेमजी ने विप्रो की बागडोर अपने बेटे रिशद प्रेमजी को सौंप रखी है पर इस कंपनी को देश-विदेश में नाम कमाने का जो मौका मिला है वो अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में ही मिला है. यहां हम बात कर रहे हैं भारत के ऐसे बिजनेस टायकून अजीम प्रेमजी की जो फिलॉन्थ्रॉपी या दानवीरता के मामले में आधुनिक जमाने के कर्ण कहे जा सकते हैं और इस लेख में हम उनके जीवन के इस आयाम के तहत कुछ जानकारी आपतक पहुंचाएंगे.


कोविड महामारी के लिए भी खुलकर दिया दान
बीते साल कोविड महामारी के कहर के बीच विप्रो (Wipro) लिमिटेड, विप्रो एंटरप्राइजेज लिमिटेड और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने अभूतपूर्व स्वास्थ्य और मानवीय संकट से मुकाबला करने के लिए 1125 करोड़ रुपये दिए हैं. कोरोना महामारी से लड़ने के लिए जो एलान किया गया उसके तहत अजीम प्रेमजी फाउंडेशन 1,000 करोड़ रुपये, विप्रो लिमिटेड कंपनी 100 करोड़ रुपये, जबकि विप्रो एंटरप्राइजेज लिमिटेड 25 करोड़ रुपये और दे चुके हैं.


अजीम प्रेमजी की दानवीरता की एक झलक
जैसा कि आप जानते हैं कि सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के तहत बड़े कॉरपोरेट को एक निश्चित रकम सामाजिक कल्याण के लिए देनी होती है पर अजीम प्रेमजी ऐसे ख्स हैं जो इस नेक काज को तब से कर रहे हैं जब ऐसा करने की कोई बाध्यता नहीं थी. अजीम प्रेमजी करीब 1.45 लाख करोड़ रुपये के शेयर अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दे चुके है. पिछले 5 साल में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की तरफ से करीब 150 एनजीओ को आर्थिक मदद दी जा चुकी है और कोरोना से लड़ने के लिए भी उन्होंने कई तरह के दान कार्य किए.


आईटी सम्राट के रूप में कमाई बेशुमार लोकप्रियता
अजीम प्रेमजी को अनौपचारिक रूप से भारतीय आईटी उद्योग के सम्राट के रूप में जाना जाता रहा और परोपकार के मामले में उनकी पहचान विश्व प्रसिद्ध है. अजीम प्रेमजी देश की आईटी कंपनियों में विप्रो को अग्रणी स्थान दिलाने वाले मशहूर बिजनेसमैन ही नहीं बल्कि परोपकार के मामले में देश में सबसे आगे रहने वाले उद्योगपति भी हैं. 




प्रेमजी का शुरुआती जीवन
अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई में हुआ था और उनका पूरा नाम अजीम हाशिम प्रेमजी है. उनके पिता हाशिम प्रेमजी एक नामी बिजनेसमैन थे जिन्हें बर्मा के चावल किंग के तौर पर जाना जाता था. भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जिन्ना ने उनके पिता हाशिम प्रेमजी से पाकिस्तान चलने को कहा पर हाशिम प्रेमजी ने भारत में ही रहना पसंद किया. ये भी बताया जाता है कि अजीम प्रेमजी के पिता के पास पाकिस्तान का पहला वित्त मंत्री बनने का अवसर था पर उन्होंने भारत में ही रहना पसंद किया और यहीं अपने कारोबार को बढ़ाने का निर्णय लिया.


इंजीनियर की डिग्री के मालिक प्रेमजी बने उद्योग जगत के शहंशाह
अजीम प्रेमजी के पास अमेरिका के कैलोफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री है जो इंजीनियरिंग की ग्रेजुएट डिग्री के बराबर मानी जाती है. अगस्त 1966 में उन्हें अपने पिता की मृत्यु के बाद भारत वापस आना पड़ा. उस समय उनकी उम्र 21 वर्ष थी लेकिन उन्होंने पिता की छोड़ी विरासत को इस तरह बढ़ाया कि वो उद्योग जगत के लिए एक मिसाल बन गई. 


विप्रो को कैसे बनाया, कैसे बढ़ाया- यहां जानें
विप्रो शुरुआत में साबुन और वेजिटेबिल ऑयल के कारोबार में थी पर 1970 के दशक में अजीम प्रेमजी ने अमेरिकन कंपनी सेंटिनल कंप्यूटर कॉर्पोरेशन के साथ हाथ मिलाया और उसके बाद विप्रो ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अजीम प्रेमजी ने 1980 में विप्रो को आईटी कंपनी के तौर पर इंट्रोड्यूस कराया और कंपनी पर्सनल कंप्यूटर बनाने के साथ सॉफ्टवेयर सर्विसेज भी प्रोवाइड कराने लगी. इसके बाद ही कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (WIPRO) किया गया था. 


आईटी कंपनी विप्रो के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अजीम प्रेमजी 30 जुलाई 2019 को रिटायर हो चुके हैं पर वो अपनी छाप इस तरह छोड़ चुके हैं कि उनकी कंपनी और उनसे जुड़े लोग उन्हें एक शानदार व्यक्तित्व के रूप में ही जानते हैं.


अजीम प्रेमजी को मिले हुए सम्मान
अजीम प्रेमजी को साल 2005 में भारत सरकार ने व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था और साल 2011 में उन्हें पद्म विभूषण प्रदान किया गया जो भारत सरकार का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है. साल 2010 में वो एशियावीक द्वारा दुनिया के 20 सबसे शक्तिशाली पुरुषों में से एक चुने गए थे. वो दो बार यानी साल 2004 और 2011 में टाइम मैगजीन के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल रहे हैं. वर्ष 2000 में, उन्हें मणिपाल अकादमी ऑफ हायर एजुकेशन द्वारा मानद डॉक्टरेट दिया गया. साल 2006 में, अजीम प्रेमजी को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग, मुंबई द्वारा लक्ष्मी बिजनेस विजनरी से सम्मानित किया गया था. साल 2009 में, उन्हें अपने उत्कृष्ट परोपकारी काम के लिए मिडलटाउन, कनेक्टिकट में वेस्लेयन विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था. साल 2013 में, उन्हें ईटी लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला और इसके अलावा साल 2015 में, मैसूर विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट प्रदान किया, वहीं अप्रैल 2017 में, इंडिया टुडे पत्रिका ने उन्हें साल 2017 के भारत के 50 सबसे शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में 9 वां स्थान दिया था.


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