नई दिल्लीः वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वो रिजर्व बैंक से ज्यादा पैसे देने को लेकर बातचीत कर रही है. यहां पैसे से मतलब सरप्लस यानी बचत से है. रिजर्व बैंक के पास आमदनी और खर्चा के बाद जो बचता है, कभी-कभी वो पूरी रकम सरकार को दे दी जाती है, जबकि कभी-कभी एक बड़ा हिस्सा.


बीते कारोबारी साल यानी 2016-17 के लिए रिजर्व बैंक ने सरकारी खजाने में 30,659 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए. हालांकि सरकार ने बजट में 58 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का अनुमान लगाया था. आर्थिक मामलों के सचिव एस सी गर्ग का कहना है कि रिजर्व बैंक की बचत 44 हजार करोड़ रुपये की थी जबकि उससे कम रकम ही सरकारी खजाने में डाली गयी. बतौर गर्ग, अब ज्यादा रकम ट्रांसफर करने को लेकर रिजर्व बैंक के साथ बातचीत शुरु की गयी है. फिलहाल, आर्थिक मामलों के सचिव ने ये जानकारी नहीं दी कि रिजर्व बैंक से और कितनी रकम लेने को लेकर बातचीत चल रही है.


पुराने नोट
वित्त मंत्रालय का ये रुख रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट जारी करने के ठीक 24 घंटे के भीतर आया है. रिपोर्ट में एक ओर जहां 15.28 लाख रुपये के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट रिजर्व बैंक के पास आने की बात कही गयी है जबकि कुल मिलाकर 15.44 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन से बाहर किए गए थे. यानी 16 हजार करोड़ रुपये का अंतर. अब ये आशंका गरमाने लगी है कि जिन स्रोतों से अभी भी पुराने नोट वापस जमा कराने हैं, उनके आ जाने पर कुल रकम 15.44 लाख रुपये से भी ज्यादा हो जाएगी.


इस बारे में गर्ग का कहना था कि अभी मुख्य रुप से चार स्रोतों के पास पुराने नोट पड़े हैं. एक, नेपाल, दो सहकारी बैंक, तीन, जांच एजेंसियों और चार, कुछ अन्य देशो में. उन्होंने सफाई दी कि इन चारों स्रोतों से पूरी रकम आ जाती है तो भी वो 16 हजार करोड़ रुपये से काफी कम रहेगी. सहकारी बैंकों की ही बात करें तो वहां पर कुल जमा पुराने नोट 1000 करोड़ से ज्यादा नहीं होंगे. गर्ग के मुताबिक, ऐसे में चलन से बाहर निकाले गए नोट से ज्यादा वापस आने की अटकलें पूरी तरह से निराधार है.


नोटों की छपाई की लागत
वैसे तो रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में नोटों की छपाई पर खर्च 3421 करोड़ रुपये से बढ़कर 7965 करोड़ रुपये पहुंचने की बात कही गयी है, लेकिन वित्त मंत्रालय का कहना है कि इशे लेकर ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं. चूंकि 2016-17 में कई कीमत के नोटों की सुरक्षा व्यवस्था, डिजाइन वगैरह में बदलाव किए गए जिसकी वजह से नोटों की छपाई की लागत बढ़ी. फिलहाल, गर्ग का कहना है कि खर्च में बढ़ोतरी का एक बड़ा हिस्सा ‘वन टाइम’ है और अगले साल नोटों की छपाई पर खर्च अपने पुराने स्तर पर आ जाएगा.


डिजिटल लेनदेन
सरकार शुरु से ही ये दावा करती रही है कि नोटबंदी का एक मकसद डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना है. नोटबंदी के बाद शुरुआती दिनो में डिजिटल लेन-देन में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली. अब भले ही 8 नवम्बर के मुकाबले कुल डिजिटल लेन-देन ज्यादा है, लेकिन अब तेजी नहीं दिख रही. एक सवाल के जवाब में गर्ग ने कहा है डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के उपायों, मसलन कार्ड से भुगतान की लागत में कमी, भारत क्विक रिस्पांस (क्यू आर) कोड का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर काम चल रहा है और जल्द ही इन उपायों का ऐलान कर दिया जाएगा.