Independence Day 2023: भारत का 77वां स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाने वाला है. 2014 से 2024 के दौरान 10 साल देश के विकास के लिए काफी अहम सालों में से एक रहेंगे. अब अगले 10 साल यानी 2023 से 2033 के दौरान देश में क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं और आर्थिक मोर्चे पर भारत कहां पहुंच सकता है, इसके बारे में एक स्पष्ट सी तस्वीर बन रही है. इसके आधार पर कहा जा सकता है कि ये 10 साल भारत को वैश्विक स्तर पर नए शिखर पर पहुंचा सकते हैं. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं और इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, इनकी जानकारी यहां ली जा सकती है.


5 ट्रिलियन डॉलर और 2033-34 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है देश


भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार इस समय विश्व के कई विकसित देशों से बेहतर है. जहां विकसित देश जैसे अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान और यूनाइटेड किंगडम वैश्विक मानकों के आधार पर अच्छी जीडीपी ग्रोथ हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं भारत की जीडीपी के 6.5-6.6 फीसदी की दर से विकसित होने की उम्मीदें हैं. ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त वर्ष 2023-24 तक भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का लक्ष्य रखा था. हालांकि साल 2020-21 में फैले कोविडकाल के कारण इस लक्ष्य को अब तय समय में पूरा करना मुश्किल है. वहीं ग्लोबल चुनौतियों में साल 2021 फरवरी से चल रहे रूस और यूक्रेन के युद्ध का भी असर दिख रहा है. भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने UNDP के कार्यक्रम में कहा था कि साल 2026-27 तक भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन सकता है, वहीं साल 2033-34 तक देश की अर्थव्यवस्था 10 ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने भी कहा है कि वित्त वर्ष 2026-27 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी.


विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है भारत


इस समय ग्लोबल इकोनॉमी में भारत की अर्थव्यवस्था 5वें स्थान पर है और इससे आगे चार देश हैं जिनके नाम क्रमशः अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं. आज से 10 साल बाद यानी वित्त वर्ष 2033 में भारत की अर्थव्यवस्था ग्लोबल लिस्ट में तीसरे स्थान पर आ सकती है. भारतीय अर्थव्यवस्था के तीसरे स्थान पर आने की उम्मीदें विश्व की प्रमुख आर्थिक संस्थाओं ने भी जताई है. ग्लोबल संस्था Goldman Sachs ने कहा है कि वित्त वर्ष 2030 में ही भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. इसके अलावा मॉर्गन स्टैनली और एसएंडपी ग्लोबल ने भी आशा जताई है कि साल 2030 तक भारत के आगे केवल अमेरिका और चीन होंगे. इतना ही नहीं साल 2075 तक भारत दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका यानी यूएसए को भी पीछे धकेल देगा. ये उम्मीद गोल्डमैन सैश ने हाल ही में अपनी वित्तीय रिपोर्ट में जताई है, अपनी रिपोर्ट में गोल्डमैन ने कहा है कि 2075 तक चीन 57 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा, तो दूसरे स्थान पर 52.5 ट्रिलियन डॉलर के साथ भारत काबिज हो जाएगा. यानी भारतीय अर्थव्यवस्था यूएस, जापान, जर्मनी को आर्थिक विकास की रफ्तार में पीछे छोड़ देगी.


मैन्यूफैक्चरिंग का महाराजा बनेगा भारत


77वें स्वतंत्रता दिवस यानी इस साल 15 अगस्त को सभी की नजरें इस बात पर भी होंगी कि अपने दो कार्यकाल यानी 10 साल के शासनकाल के दौरान हो चुके या होने वाले कार्यों के आलोक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किन उपलब्धियों के बारे में लाल किले की प्राचीर से बताने वाले हैं? सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार ने मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए मेक इन इंडिया की शुरुआत की थी और माना जा रहा था कि विनिर्माण के क्षेत्र में भारत दुनिया के लिए नई ताकत बनकर उभरेगा. इस दिशा में फिलहाल काम चल रहा है और कई ग्लोबल कंपनियां भारत में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए अपने कदम बढ़ा रही हैं और चीन के अलावा नए मैन्यूफैक्चरिंग डेस्टिनेशन खोज रही हैं. ग्लोबल कंपनियों की इसी खोज को पूरा करने के लिए भारत सरकार नए निवेशकों को आकर्षित करने की कवायद कर रही है. 


इस दिशा में हाल ही में एक बड़ा मुकाम आया जब Apple ने अपने आईफोन्स की 25 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग भारत से करने की योजना बनाई. हाल ही में कर्नाटक में एप्पल की पार्टनर फॉक्सकॉन के नए निवेश की खबरों ने लोगों को आकर्षित किया है. देश में एप्पल के दो स्टोर खुले जिसमें से एक भारत की राजधानी दिल्ली में और एक आर्थिक राजधानी मुंबई में ओपन हुआ है. इस तरह के कई और अहम मील के पत्थर भारत ने मैन्यूफैक्चरिंग के फील्ड में हासिल किए हैं. माना जा सकता है कि अगले 10 सालों में मैन्यूफैक्चरिंग के पावरहाउस के रूप में भारत नई ऊंचाइयों को छू सकता है.


मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत के लिए सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण का स्वदेशी रास्ता साफ हो रहा है क्योंकि देश में इसी साल जम्मू-कश्मीर में लीथियम का विशाल भंडार मिला है. लीथियम का इस्तेमाल मुख्य रूप से सेमीकंडक्टर चिप के लिए किया जाता है और बैटरी बनाने के लिए ये महत्वपूर्ण कच्चा माल है. देश में सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण का ढांचा मजबूत होने का मतलब है कि भारत तकनीकी सेक्टर में नई ऊंचाइयों को हासिल करने में आगे रहेगा. इसका असर खास तौर पर विनिर्माण गतिविधियों पर देखा जाएगा. 


डिफेंस सेक्टर में भारत की बढ़ती साख से दुश्मन होंगे पस्त


पिछले कुछ सालों में देश के डिफेंस एक्सपोर्ट में मजबूत बढ़ोतरी देखी गई है. अगले 17 सालों में यानी साल 2040 तक भारत शीर्ष रक्षा निर्यातकों की सूची में टॉप 5 में शामिल हो सकता है. फिलहाल की परिस्थितियों में केंद्र सरकार का 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सैन्य हार्डवेयर का एक्सपोर्ट करने के लक्ष्य के करीब पहुंचने का प्रयास जारी है. इस क्षेत्र में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है. देश में नए डिफेंस इक्विपमेंट की जरूरत भी बढ़ रही है और इनका प्रोडक्शन भी किया जा रहा है. देश की कई डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां रक्षा क्षेत्र के बिचौलियों के चंगुल से निकलकर नई संभावनाओं और नए कारोबारी आयामों को देख पा रही हैं. इससे उनकी क्षमता भी बढ़ रही है और भारत डिफेंस के क्षेत्र में भी अपने उत्पादों के जरिए झंडे गाड़ रहा है.


GST से भरेगा देश का खजाना


जुलाई 2023 में देश का जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) कलेक्शन 1.65 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा था. जीएसटी कानून के लागू होने के बाद ये पांचवा मौका है कि जब देश का जीएसटी कलेक्शन 1.6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा हो. साल 2033 तक ये जीएसटी टैक्स मौजूदा स्थिति से कई गुना आगे बढ़ सकता है और इस टैक्स के जरिए सरकारी कार्यों को पूरा करने के लिए भारी राशि का इंतजाम सरकार के पास हो सकता है. देश में टैक्सेशन की व्यवस्था मजबूत होने से रोड, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिपिंग पोर्ट्स, एयरपोर्ट्स और शैक्षिक संस्थानों के लिए सरकार के पास भरपूर रकम रहेगी और इसका असर देश के हर एक क्षेत्र पर सकारात्मक रूप में देखा जा सकता है.


स्टॉक मार्केट छुएगा नई बुलंदी, दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार होगा


भारतीय शेयर बाजार हाल ही में अपने ऑलटाइम हाई लेवल को छूकर आगे बढ़ता दिखा है. भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की बढ़ती रुचि के साथ-साथ घरेलू रिटेल निवेशकों की बढ़ती संख्या इसके पीछे का कारण है. देश में डीमैट अकाउंट खुलने की रफ्तार सबको चकित कर रही है और ये दिखाता है कि स्टॉक मार्केट में निवेश करने वालों की संख्‍या में हर महीने रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है. 18 महीने से जितने डीमैट खाते खुल रहे थे, बीती जुलाई में ये सर्वोच्च स्तर पर खोले गए हैं. जुलाई में डीमैट अकाउंट में रिकॉर्ड बढ़ोतरी से यह संख्‍या 12.35 करोड़ की नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. देश में कमाने वाली लगभग 100 करोड़ जनसंख्या के सामने ये आंकड़ा बेहद छोटा लग सकता है लेकिन ये दिखाता है कि नए निवेशक लगातार स्टॉक मार्केट से जुड़ रहे हैं. स्टॉक मार्केट के जानकारों का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार में तेजी जारी रहेगी और अगले 10 सालों में सेंसेक्स 80,000 से 90,000 के लेवल पर भी जा सकता है.


एयरलाइंस सेक्टर और रेलवे लिखेंगे विकास की नई इबारत


देश का रेलवे सेक्टर और एयरलाइंस सेक्टर दोनों विकास की नई राह पर आगे बढ़ रहे हैं. एयरलाइंस सेक्टर में प्रमुख कंपनियां बड़े ऑर्डर दे रही हैं. इसका उदाहरण एयर इंडिया का 470 विमानों का बोइंग को ऑर्डर और इंडिगो का 500 नए एयरबस A320 विमानों का ऑर्डर हैं. इन विमानों का इंपोर्ट 2023 से 2035 के बीच प्रस्तावित है और माना जा सकता है कि साल 2033 तक कई विमानों का इंपोर्ट पूरा हो सकता है. एयरलाइंस सेक्टर में हुई इस बड़ी डील का असर देश के पूरे ट्रांसपोर्ट सिस्टम को एडवांस बनाएगा और इसके जरिए भारत की आर्थिक प्रगति किस उच्च स्तर पर जा सकती है, ये अंदाजा लगाकर ही देशवासियों को खुशी होगी.


भारतीय रेलवे की बात करें तो रेलवे मंत्रालय जहां भारत में बुलेट ट्रेन के सपने को साकार करने में जुटा हुआ है, वहीं देश में हाई स्पीड और सेमी हाई स्पीड ट्रेनों का विस्तार तेजी से किया जा रहा है. बुलेट ट्रेन को देश में लाने का सपना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के दिवंगत प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने मिलकर साकार करने का सोचा था. जापान बुलेट ट्रेनों को लाने के मामले में दुनिया का अग्रणी देश है और इसके सहयोग से भारतीय रेलवे भी देश में बुलेट ट्रेन के लिए जमकर काम कर रहा है. इसके अलावा हाल ही में बीते रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 508 रेलवे स्‍टेशनों की आधारशिला रखी है जिन्हें वर्ल्‍ड क्‍लास सुविधाओं से जोड़ा जाएगा. ये देश के इंफ्रास्‍टक्‍चर, संस्कृति को भी बढ़ावा देंगे. रेलवे देश की लाइफलाइन है और इसे मॉडर्न बनाने की दिशा में आगे बढ़कर भारत भी विश्व के उन देशों में शामिल होगा जो रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में झंडे गाड़े हुए हैं.


AI और इंटरनेट कनेक्टिविटी का प्रसार देश को बनाएगा संचार क्रांति का अग्रणी


AI यानी आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस तकनीकी सेक्टर का वो पहलू है जो इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है. भारत में इसके विकास के लिए तमाम संभावनाएं हैं और इसका उपयोग कंपनियों में होना कुछ समय से जारी है. आगे आने वाले 10 सालों में इसका विस्तार होना निश्चित लग रहा है. ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ये कार्यों को तेजी से और आसानी से करने में मदद करता है जिससे कई कठिन टेक्निकल काम सुगमता से हो जाते हैं. देश के टिकाऊ विकास के लिए एआई का इस्तेमाल इस तरीके से किया जाना चाहिए कि वो लोगों को और सशक्त बनाए ना कि उनके लिए बाधा बन जाए. देश में इस सोच को लेकर एआई का उपयोग बढ़ाया जा रहा है और इसके यूज के लिए भी काफी भारी संख्या में मानव शक्ति की जरूरत होगी जो भारत के पास है. भारत एआई के जरिए तकनीकी क्षेत्र में अपना सिक्का जमा सकता है क्योंकि पहले से ही भारत के तकनीकी पेशेवर दुनियाभर में अपना लोहा मनवा चुके हैं. 


अब बात करें इंटरनेट कनेक्टिविटी तो निश्चित तौर पर देश के आखिरी छोर पर रह रहे व्यक्ति तक इंटरनेट कनेक्टिविटी का लक्ष्य दिखाया जा रहा है. अगले 10 सालों में इसको पूरा करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है और इसके लिए 5जी और 6जी तक का इस्तेमाल किया जाएगा. देश के हरेक शहर, गांव, कस्बे, देहात और सुदूर इलाकों मे इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचने से साल 2033 तक भारत के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव हासिल कर लिया जाएगा, ऐसी उम्मीद देशवासियों को है.


ग्रीन एनर्जी का सिरमौर बनेगा भारत, दुनिया में जमाएगा सिक्का


आज से 10 साल बाद की दुनिया की कल्पना करें तो इसमें ग्रीन हाइड्रोजन का बहुत बड़ा स्थान होगा. भारत ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम देश इस नई और कारगर एनर्जी पर काम कर रहे हैं. ग्रीन एनर्जी हर तरीके से फायदेमंद होने के साथ-साथ अनंत संभावनाएं भी लेकर आ रही है. भारत की कई बड़ी कंपनियां ग्रीन एनर्जी के सेक्टर में आगे बढ़-चढ़कर काम कर रही हैं. 10 से 15 साल बाद भारत को ग्रीन हाइड्रोजन मार्केट के महाशक्ति के तौर पर देखने की कल्पना साकार होती दिख रही है क्योंकि सरकार का भी इस दिशा में तेज गति से काम चल रहा है. केंद्र सरकार ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की भी घोषणा की है और रीन्यूएबल एनर्जी, ग्रीन एनर्जी, ग्रीन हाइड्रोजन सभी तरह के प्रोजेक्ट चलाने के लिए ये इंसेटिव भी दे रही है. साफ तौर पर देखा जा सकता है कि देश के दो सबसे बड़े औद्योगिक घराने इस दिशा में आगे आ रहे हैं और ग्रीन एनर्जी सेक्टर में संभावनाओं को भुनाने के लिए कारोबारी कदम उठा रहे हैं.


ऑटोमोबाइल सेक्टर में तीसरा सबसे मार्केट बनेगा भारत


भारत की रिटेल व्हीकल फाइनेंस का बाजार इस समय करीब 60 बिलियन डॉलर का है और इसके लिए अगले 10 साल काफी तेज गति से ग्रोथ हासिल करने वाले साल साबित होने वाले हैं. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल का बाजार विशाल तेजी से आगे बढ़ रहा है. साल 2030 तक इसमें से 50 बिलियन डॉलर की फाइनेंसिंग केवल इलेक्ट्रिक व्हीकल यानी ईवी सेगमेंट के लिए होगी. साल 2024 की बात करें तो भारत की ऑटो इंडस्ट्री का साइज बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये तक जाने की उम्मीद है और अगले 10 सालों में इसके बढ़ने की रफ्तार बुलेट ट्रेन जैसी रहेगी. साल 2030 तक ईवी मार्केट की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) 49 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है. इन्हीं अपार कारोबारी संभावनाओं को देखते हुए दुनिया की सबसे बड़ी ईवी कार निर्माता कंपनी टेस्ला (Tesla) की भारत में एंट्री करने की पुरजोर कोशिशें जारी हैं. इसी साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने भारत में निवेश की बात फिर दोहराई और उम्मीद जताई कि टेस्ला की एंट्री जल्द ही भारत में हो जाएगी.


आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत


भारत 2040 तक ग्लोबल जीडीपी में अपने योगदान को 6.1 फीसदी तक पहुंचा सकता है. अगर ऐसा हो जाता है तो मौजूदा स्थिति से देश का ये योगदान दोगुना हो जाएगा. जैसा कि कई वित्तीय संस्थाओं का मानना है कि 2040 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तो बन ही सकता है, देश का ग्लोबल जीडीपी में योगदान भी काफी बढ़ने वाला है. देखा जाए तो भारत के सामने विश्व की नई आर्थिक महाशक्ति बनने की पर्याप्त क्षमता है जिसको पूरा करने के लिए अगले 10 साल का वक्त काफी अहम रहने वाला है जिसका भरपूर उपयोग सरकारों और जनता को करना होगा. आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए देश की अपार जनसंख्या को बोझ की बजाए किसी वरदान से कम नहीं मानना चाहिए. देश में अगले 10 सालों में करीब 80 करोड़ लोग कामकाजी साबित हो सकते हैं और इसके लिए उनके स्किल्स को बढ़ाने की जरूरत होगी. इसके जरिए जहां रोजगार के नए मौके बनेंगे और भारत की वित्तीय हालत मजबूत होगी, वहीं ग्लोबल इकोनॉमी में भारत का स्थान नए शिखर पर दिखाई देगा.


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