New Income Tax Act: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन रवि अग्रवाल ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि प्रत्यक्ष कर से रेवेन्यू को ताकत मिलेगी, जिससे टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सालाना लक्ष्य को पूरा करना आसान हो जाएगा. आइए देखते हैं टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ हुई उनकी बातचीत के कुछ अंश-
आखिरकार बजट में हुए ऐलान से स्पष्ट है कि अब सीबीडीटी पर ध्यान दिया जा रहा है. आप इसे किस तरह से देखते हैं? इसके जवाब में रवि अग्रवाल ने कहा, यह बहुत संतोष की बात है कि इस बार बजट को इतनी सकारात्मकता के साथ लिया गया है. टैक्सपेयर्स भी इससे खुश हैं और अगर टैक्सपेयर्स खुश हैं तो हम खुश हैं.
इकोनॉमी में अनिश्चितता और मंदी का असर रेवेन्यू पर कितना पड़ेगा?
टोटल बेनिफिट लगभग 1 लाख रुपये तक की है और इस साल बजट का टारगेट 22.37 लाख करोड़ रुपये है. यह टोटल टैक्स का 5 परसेंट है क्योंकि करदाताओं की संख्या अधिक है. आखिर में एक लाख करोड़ रुपये बचने का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. व्यापारें विकसित होंगी. अगर सब कुछ सही होता है, तो अर्थव्यवस्था भी तेजी से आगे बढ़ेगी.
एक बार जब इकोनॉमी आगे बढ़ेगी, तो इसका टैक्स रेवेन्यू पर बढ़िया असर पड़ेगा. कंपनियों से, बिजनेस में हो रहे इनकम से या सैलरी के जरिए टैक्स मिलेगा क्योंकि अगर कंपनियां आगे बढ़ेंगी, तो सैलरी भी ज्यादा होगी. इस बार 1 लाख करोड़ रुपये की राहत की वजह से हम 15 परसेंट की दर से आगे बढ़ रहे हैं और बजट में रखा गया टारगेट 12.46 परसेंट है. यानी कि 2-2.5 परसेंट का मार्जिन है. हमने इस बात का ध्यान रखा है. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें टैक्सपेयर्स से बात करनी होगी और उन पर भरोसा करना होगा.
बजट में हुई घोषणा से 1 करोड़ टैक्सपेयर्स लाभान्वित होंगे. इनकी कुल संख्या कितनी होगी?
इसके दो घटक हैं. एक तो इस बेनिफिट के लिए टैक्सपेयर्स को रिटर्न दाखिल करना होगा और फिर अगर उन्हें रिफंड मिलना है तो मिल जाएगा. इसलिए रिटर्न की संख्या मोटे तौर पर उतनी ही रहेगी जितनी थी. यह करीब 9 करोड़ है.
पहले 7 लाख या इससे कम इनकम वालों को छूट मिलती थी, जबकि अब 12 लाख तक की आय टैक्स फ्री है. आप कह सकते हैं कि 7 लाख रुपये से 12 लाख रुपये के इनकम ब्रैकेट में आने वाले डेढ़ करोड़ टैक्सपेयर्स को कुछ भी नहीं देना होगा. जबकि करदाताओं की वास्तविक संख्या करीब 3 करोड़ होगी.
कर विभाग का ध्यान सरलीकरण पर रहा है और आयकर अधिनियम में सुधार के लिए एक नया विधेयक पेश किया जाएगा. क्या बदलाव होंगे?
अब भाषा आसान हो जाएगी, इसका प्रेजेंटेशन आसान हो जाएगा. 1961 के अधिनियम में कुछ उच्चारण या वाक्य यूजर्स की समझ से परे हैं क्योंकि ये आसान नहीं हैं. इसके चलते इसके प्रावधानों को समझना मुश्किल हो जाता है. इससे उलझनें पैदा होती हैं, टैक्सपेयर्स को चीजें अच्छे से समझ में नहीं आती है, तो वे नियमों के अनुपालन से भी चूक जाते हैं. इससे कानूनी कार्रवाई तक करनी पड़ जाती है. इसे ध्यान में रखते हुए हमारी कोशिश है कि कुछ सेक्शन को सरल अंग्रेजी भाषा में फिर से लिखे ताकि लोगों को समझने में आसानी हो. इससे सिस्टम को जानने में भी आसानी होगी और कानूनी कारवाई भी काफी हद तक कम हो जाएगी. इससे दस्तावेजों का आकार भी बहुत कम हो गया है.
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