Health Insurance Buying Tips: क्या आप जानते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस में भी कई तरह के क्लॉज होते हैं और इसमें सबसे बड़ा फर्क नेटवर्क और गैर नेटवर्क हॉस्पिटल्स के बीच को लेकर होता है. अगर आप इनके बीच का फर्क नहीं जानते हैं तो आपको मेडिकल इमरजेंसी के समय नुकसान उठाना पड़ सकता है. 


कैशलेस मेडिक्लेम के क्या हैं फायदे
इंश्योरेंस कंपनी के नेटवर्क में जितने ज्यादा अस्पताल शामिल होंगे उतना ही आपको फायदा होगा लेकिन इमरजेंसी में अगर ऐसे किसी हॉस्पिटल में जाना पड़े जो कंपनी के नेटवर्क लिस्ट में ना हो तो आपको कैश खर्च करना पड़ सकता है. इसीलिए आपको नेटवर्क और नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल के बीच खर्चे का अंतर जानना चाहिए.


कैशलेस मेडिक्लेम के बारे में जानें
नेटवर्क हॉस्पिटलाइजेशन के तहत जो हॉस्पिटल बीमा कंपनी के पैनल में शामिल होते हैं और उन्हीं में से किसी में भर्ती होने या ट्रीटमेंट कराने पर कैशलेस मैडिक्लेम होता है. इसके लिए टीपीए को बस फॉर्म जमा करिए और कैशलेस क्लेम मंजूर होने पर पेशेंट का इलाज भी जारी रहता है और आपकी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी इलाज के सभी पेमेंट देती है. इसके लिए पेशेंट को बिल या और कोई दस्तावेज नहीं जमा करना होता है और वेटिंग पीरीयड से भी आराम मिलता है. हालांकि अगर आप ऐसे इलाज को करा रहे हैं जो आपकी हेल्थ पॉलिसी के तहत कवर नहीं है तो आपको वो खर्च चुकाने होंगे.


नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटलाइजेशन को समझें
अगर आकस्मिक बीमारी या इमरजेंसी में पेशेंट ऐसे हॉस्पिटल में एडमिट होता है जो इंश्योरेंस कंपनी के नेटवर्क लिस्ट में नहीं है तो बीमा कराने वाले व्यक्ति को पहले खुद सारा पैसा चुकाना होता है और पैसा बाद में रीइंबर्समेंट के तहत मिलता है. हालांकि ये प्रोसेस काफी लंबा होता है और बीमाधारक को पहले सभी जरूरी डॉक्यूमेंट और रिपोर्ट को इंश्योरेंस कंपनी के पास जमा करना होता है. इस प्रोसेस में 10-15 दिन लग जाते हैं क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी सभी डॉक्यूमेंट्स और रिपोर्ट्स की जांच करेगी और मंजूरी मिलने के बाद पॉलिसीधारक को पैसे लौटाएगी. 


कुछ बातों का ध्यान रखें
आपको हेल्थ इंश्योरेंस कराते समय कैशलेस फैसिलिटी को ही चुनना चाहिए जिससे आपको इलाज कराने से पहले ही पैसा जमा न करना पड़े. अगर आपने कैशलेस ट्रीटमेंट नहीं लिया है तो नेटवर्क में आने वाले हॉस्पिटल में भी इलाज करने पर सभी बिल और दस्तावेज सबमिट कराने पड़ते हैं.


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