नई दिल्लीः पिछले कुछ सालों में बीजेपी सरकार ने ऑटो मोबाइल और ऑटो एंसीलरी सेक्टर पर फोकस बनाए रखा है. मेक इन इंडिया के जरिए देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर को ग्लोबल हब बनाने की सरकार की पुरजोर कोशिश है. ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी, ऑटोमोटिव मिशन प्लान (एएमपी) 2016-26 के जरिए देश को ऑटोमोबाइल हब बनाने और रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर बनाने की सरकार की महत्वकांक्षा है.


भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री दुनिया की चौथी सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री
वर्तमान में भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री दुनिया की चौथी सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री है और बिक्री में इस साल 9.5 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई है. देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर ने साल 2018 के पहले छह महीने में 20.78 फीसदी की दर से ग्रोथ हासिल की है. वहीं ऑटो कंपनियों का भारत की जीडीपी में 2.3 फीसदी का योगदान है और हाल के सालों में ये सेक्टर 18.3 फीसदी की दर से बढ़ा है.


प्रोडक्शन वॉल्यूम के आंकड़े
वित्त वर्ष 2018 के कुल प्रोडक्शन वॉल्यूम के आंकड़ों को देखें तो 81 फीसदी योगदान दोपहिया वाहनों का रहा है. 13 फीसदी हिस्सा यात्री वाहनों का रहा है और 3-3 फीसदी तिपहिया वाहनों और कमर्शियल व्हीकल्स के खाते में जाता है.


जर्मन मैन्यूफैक्चर्रस का बड़ा निवेश
देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में जर्मन मैन्यूफैक्चर्रस का बड़ा निवेश रहा है और ह्युंडई, मर्सिडीज बेंज और होंडा के अलावा कॉन्टीनेंटल और शेफलर बड़े भारी रूप में भारत में निवेश कर रहे हैं.


बजट 2018 से मिला इंडस्ट्री को बूस्ट
बजट 2018 से ऑटोमोबाइल और ऑटो एंसीलरी इंडस्ट्री को काफी बूस्ट मिला था. बीजेपी सरकार ने एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए ग्रामीण इलाकों के विकास के अलावा भी कई योजनाओं को चलाया जिससे अप्रत्यक्ष रूप से ऑटोमोबाइल सेक्टर को भी प्रोत्साहन मिला है. ग्रामीण इलाकों में लोगों की आमदनी बढ़ने से खासतौर पर टू व्हीलर्स की मांग में इजाफा होता है. वहीं कृषि पर ज्यादा फोकस से किसानों ट्रेक्टर और दूसरे यूटिलिटी व्हीकल की बिक्री में ज्यादा योगदान देते हैं. इसके अलावा वर्किंग क्लास की तादाद बढ़ने से भी टू-व्हीलर्स और छोटी कारों के सेगमेंट की सेल्स में इजाफा होता है.


लग्जरी सेगमेंट में भी बढ़ोतरी
देश में लग्जरी कारों के सेगमेंट में तेजी देखी गई है. प्रीमियम मोटरबाइक्स की बिक्री ने 2018 में 10 लाख का आंकड़ा पार कर लिया था. वहीं साल 2018 के पहले छह महीनों में बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज बेंज के सेल्स आंकड़ों ने अच्छी ग्रोथ हासिल कर ली थी.


देश में सड़कों की कनेक्टिविटी में बेहतरी और सुधार होने से यूटिलिटी व्हीकल और कमर्शियल व्हीकल्स की मांग और बिक्री बढ़ने का दौर देखने को मिला है.


बजट 2019 से ऑटो इंडस्ट्री की उम्मीदें
बजट 2019 के लिए ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मांग है कि उसे वन-टाइम इंसेटिव दिया जाए जो टैक्स छूट के रूप में हो. साल 2000 से पहले के वाहनों को सड़कों से हटाने के बदले में ऑटो इंडस्ट्री को कुछ इंसेटिव दिए जाने चाहिए. इंडस्ट्री बॉडी के मुताबिक देश में होने वाले 80 फीसदी से ज्यादा रोड एक्सीडेंट 15 साल से पुराने वाहनों के चलते होते हैं. इसके चलते अगर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री 15 साल से पुराने वाहन हटाती है तो न केवल इससे देश में वाहनों की बिक्री बढ़ेगी बल्कि ये प्रदूषण मानकों में भारत की स्थिति बेहतर करने में भी सहायक सिद्ध होगा जिसके बारे में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई बार चिंता जताई जा चुकी है. ऑटो इंडस्ट्री चाहती है कि छूट घटी हुई जीएसटी दरों के रूप में हो., कार लोन पर बढ़ी छूट के जरिए हो. या फिर वाहनों को बदलने के बदले में ऑटो कंपनियों को कुछ ऐसा मिले जिससे वो इसके लिए प्रेरित हो सकें.


पैसेंजर कारों के लिए अलग मांग
ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की मंशा है कि सरकार पैसेंजर कारों के लिए अलग-अलग टैक्स रेट्स को कम कर दे, पिछले 5 सालों में मोदी सरकार ने छोटी कारों पर टैक्स 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया है. इसके अलावा एसयूवी और बड़ी कारों को जीएसटी के सबसे ऊंचे स्लैब रेट 28 फीसदी रखा है वो भी 1 से 4 फीसदी के इंफ्रास्ट्रक्चर सेस के अलावा.


इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इंडस्ट्री की मांग
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के विभिन्न प्रतिनिधियों ने सरकार से प्री-बजट बैठकों में सिफारिश की है कि वाहनों का इलेक्ट्रीफिकेशन करने के लिए अलग से खास टैक्स लगाया जाए जिसकी दर ज्यादा न हो. ऐसा इसलिए क्योंकि वित्त मंत्रालय के पास समय है कि वो इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रमोट करने के लिए कुछ और साधनों को अपना सके.


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