H1B Visa Fees Row:  अमेरिकी सांसदों ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), कॉग्निजेंट और 8 अन्य प्रमुख कंपनियों से हाल ही में बड़े पैमाने पर यूएस कर्मचारियों छंटनी करने के बाद हजारों एच-1बी वीजा आवेदन दायर करने को लेकर पूछताछ की है. अमेरिकी संसद की सीनेट न्यायपालिका समिति के चेयरमैन चार्ल्स ग्रासली और रैंकिंग सदस्य रिचर्ड डर्बिन ने अमेजन, एप्पल, डेलॉयट, गूगल, जेपी मॉर्गन चेज, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और वॉलमार्ट जैसी कंपनियों से भी उनके भर्ती तरीकों, वेतन संरचना और अमेरिकी कर्मचारियों व एच-1बी वीजाधारकों के बीच लाभों में अंतर की जानकारी मांगी है.

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अमेरिका स्टाफ को निकालने पर भड़के सांसद

सांसदों ने कहा कि उनकी यह पहल ऐसे समय में हुई है जब अमेरिकी टेक्नोलॉजी क्षेत्र में बेरोजगारी दर समग्र बेरोजगारी दर से कहीं ज्यादा है. फेडरल रिजर्व के आंकड़ों के अनुसार, एसटीईएम डिग्री वाले हालिया अमेरिकी स्नातकों को आम जनता की तुलना में अधिक बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. गौरतलब है कि ग्रासली और डर्बिन लंबे समय से एच-1बी वीजा कार्यक्रम के आलोचक रहे हैं. उनका कहना है कि कई कंपनियां इन वीजाओं का इस्तेमाल अमेरिकी कामगारों की जगह विदेश से सस्ते श्रमिकों को लाने के लिए करती हैं.

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इन सांसदों ने यह भी बताया कि वे एच-1बी और एल-1 वीजा कार्यक्रमों में सुधार के लिए द्विदलीय कानून फिर से पेश कर रहे हैं. उनका तर्क है कि एच-1बी और एल-1 वीजा सुधार अधिनियम अमेरिकी आव्रजन प्रणाली में धोखाधड़ी और दुरुपयोग को रोकने, अमेरिकी कामगारों और वीजाधारकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और विदेशी श्रमिकों की भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने में मदद करेगा.

भारतीय आईटी कंपनियों पर सीधा असर

टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट जैसी भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में बड़ी संख्या में प्रोजेक्ट्स पर काम करती हैं. इन कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा बेहद अहम है, क्योंकि इनके ज़रिए भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिका जाकर क्लाइंट लोकेशंस पर काम करते हैं. अगर अमेरिका वीजा नियमों को और सख्त करता है या वेतन की न्यूनतम सीमा बढ़ा देता है, तो भारतीय कंपनियों के लिए वहां लोगों को भेजना महंगा और मुश्किल हो जाएगा.

अगर अमेरिकी सांसदों की मांग के अनुसार कंपनियों को एच-1बी वीजा धारकों को अमेरिकी कामगारों के बराबर या उससे अधिक वेतन देना होगा, तो भारतीय कंपनियों की लागत (cost) बढ़ जाएगी. इससे उनकी मार्जिन पर असर पड़ सकता है और कुछ प्रोजेक्ट्स की प्रॉफिटेबिलिटी घट सकती है. 

सख्त नियमों के चलते भारतीय आईटी कंपनियां ऑफशोर डिलीवरी मॉडल (यानी भारत से ही प्रोजेक्ट्स डिलीवर करना) को और ज्यादा अपनाने पर जोर देंगी. इससे भारत में रोजगार के नए अवसर बढ़ सकते हैं, लेकिन अमेरिकी क्लाइंट्स को ऑनसाइट सपोर्ट कम मिल सकता है.

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