नई दिल्लीः नीति आयोग ने कृषि आय को आयकर के दायरे में लाने की वकालत की है. आयोग की ये राय ऐसे समय में आयी है जब कई अर्थशास्त्री भी एक निश्चचित सीमा से ज्यादा कमाई करने वाले किसानों को आय़कर के दायरे में लाने की बात कर रह हैं. कुछ समय पहले काले धन के खिलाफ मुहिम में भी चिंता जतायी गयी थी कि खेती बाड़ी के नाम पर मोटी कमाई दिखाकर कुछ लोग आयकर से छूट पा जाते हैं और इस व्यवस्था को बदलने की जरुरत है. हालांकि पिछली कई सरकारों के दौरान कृषि आय़ को आयकर के दायरे में लाने की बात कही जाती रही है, लेकिन जब कभी भी इस तरह का प्रस्ताव आया, राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील मानते हुए उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
फिलहाल, नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय का कहना है कि आयकर का दायरा बढ़ाने का एक रास्ता छूट को खत्म करना है, वही दूसरा विकल्प ग्रामीण क्षेत्र को आयकर के दायरे में लाने और खास तौर पर निश्चित सीमा से ज्यादा खेती बाड़ी से हुई कमाई पर आयकर लगाना हो सकता है. देबरॉय आगे कहते हैं कि ये सीमा शहरी क्षेत्र के बराबर हो सकती है,लेकिन इसके लिए तीन साल या पांच साल के औसत को आधार बनाया जा सकता है. ध्यान रहे कि मौजूदा व्यवस्था के तहत 60 वर्ष से कम उम्र के पुरुष और महिलाओं के लिए 2.5 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर आयकर नहीं लगता.
देबरॉय ने अपनी दलील में कुछ आंकड़ों का सहारा लिया. उनके मुताबिक-
- देश में मोटा-मोटी 22.5 करोड़ परिवार है, जिसमें लगभग दो-तिहाई ग्रामीण इलाके में रहते है.
- ग्रामीण इलाके में रहने वाले आम तौर पर आयकर के दायरे से बाहर हैं, क्योंकि वहां पर कमाई का मुख्य जरिया खेती बाड़ी है.
- अब ऐसे में शहरों में रहने वाले 7.5 करोड़ परिवार बचते हैं जिनपर आयकर लगाया जा सकता है
- आयकर में छूट के लिए तय सीमा के मद्देनजर 7.5 करोड़ में से भी आधे निकल जाते हैं
- यानी कुल मिलाकर 3.75 करोड़ से लेकर ज्यादा से ज्यादा 4.5 करोड़ परिवार ऐसे बचते हैं जो आयकर का आधार बनते हैं
शहरी इलाकों में रहने वाले ज्यादात्तर लोग वेतनभोगी होते हैं जिन्हे कई तरह की छूट मिलती है. अब इन सब को देखते हुए कर का आधार बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इसी सब को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र और खास तौर पर खेती बारी से तय सीमा से ज्यादा की कमाई को आयकर को दायरे में लाने का प्रस्ताव किया गया है.