आज के दौर में एक बंगाली लेखिका राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं के केंद्र में हैं- सायंतनी पुत्तातुंडा . उनकी चर्चित किताब 'शिशमहल' को जब पेनस्मिथ पुरस्कार से नवाजा गया और उपन्यास 'कालरात्रि' ने बंगाल में बहस और हलचल का माहौल बना दिया, तब मीडिया की नजर उन पर पड़ी. सायंतनी हालांकि एक शांत और लाइमलाइट से दूर रहने वाली लेखिका हैं, लेकिन उनकी लेखनी ने उन्हें अब हर मंच पर ला खड़ा किया है.
सायंतनी सिर्फ एक निर्भीक लेखिका नहीं, बल्कि विचारों और सवेदनाओं की एक गहरी और सशक्त आवाज हैं. उनकी रचनाएं सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बात नहीं करतीं, बल्कि सामाजिक चेतना की नई परिभाषा गढ़ती हैं. वे पारंपरिक ढांचे और घिसे-पिटे नजरिए को तोड़कर, सच की बेबाक अभिव्यक्ति करती हैं. उनकी कलम एक दर्पण की तरह है जिसमें समाज को अपना असली चेहरा देखना पड़ता है, और यही सच कई बार असहज कर देता है.
सायंतनी ने अनेक पुरानी, रूढ़िवादी और अमानवीय परंपराओं को खुलकर चुनौती दी है. 'स्वाहा' में जटाधारी प्रथा, 'कृष्णवेणी' में प्रभुदासी प्रथा, 'देवता का ग्रास' में दलितों की सामाजिक सच्चाई, 'जलसोई' में पनिबाई प्रथा, और 'शिशमहल' में कश्मीर की त्रासदी हर विषय पर उन्होंने बिना झिझक अपनी कलम चलाई है.
सिर्फ परंपराओं तक सीमित नहीं, उन्होंने अपराध, मानसिक विकृति, सामाजिक अन्याय और राजनीतिक हिंसा जैसे सवेदनशील विषयों पर भी निर्भीकता से लिखा. उनकी प्रसिद्ध वेब सीरीज़ 'नदिनी' कन्याभ्रूण हत्या जैसे मुद्दे पर सवाल उठाती है, जो 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे नारों की ज़मीनी सच्चाई से हमें रूबरू कराती है.
अनैतिक मेडिकल परीक्षण, आतंकवाद, बाल तस्करी, विवाहित महिलाओं पर अत्याचार, राजनीतिक षड्यंत्र, रिश्तों की तोड़फोड़ कोई भी मुद्दा उनकी लेखनी से अछूता नहीं रहा. उनकी -रहस्य कथाएं भी यह दर्शाती हैं कि हर अपराध के पीछे एक सामाजिक या मानसिक कारण छिपा होता है - अपराधी सिर्फ पैदा नहीं होते, कई बार समाज उन्हें गढ़ता है.
सायंतनी की कहानियां दिल को सुकून नहीं देतीं वे सवाल करती हैं, झकझोरती हैं, सोचने पर -मजबूर करती हैं. शायद इसीलिए आज की 'फील-गुड' साहित्यिक दुनिया में सायंतनी जैसी लेखिकाएं कम दिखाई देती हैं. लेकिन यही वो लेखन है जो समाज को भीतर से बदल सकता है, साहित्य को मजबूत बना सकता है, और पाठकों को सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि एक दिशा भी दे सकता है.
सायंतनी पुत्तातुंडा - एक ऐसी लेखिका हैं, जो न सिर्फ सच को देखती हैं, बल्कि उसे पूरी निर्भीकता से सामने रखती हैं. वे खुद को छिपाना चाहती थीं, पर उनकी कलम ने उन्हें सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है - एक मिसाल बनकर .
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