जंतर-मंतर पर एक बार फिर पहलवानों का धरना-प्रदर्शन जारी है. विनेश फोगाट समेत 7 पहलवानों ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से  WFI के प्रमुख बृजभूषण सिंह के खिलाफ एफआईआर का आदेश देने की मांग की है. पहलवानों का कहना है कि उनसे जो वादे हुए थे, वे पूरे नहीं हुए हैं.


जो पहलवान विनेश फोगाट के नेतृत्व में जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्होंने तो साफ कह दिया है कि उनका व्यवस्था पर से विश्वास उठ गया है. इन्होंने आज से तीन महीने पहले भी धरना दिया था और खेल-मंत्रालय के साथ ही IOA को भी एक शिकायत की थी. इनकी ही शिकायत पर एक जांच समिति तो आइओए ने बनाई थी और दूसरी समिति खेल-मंत्रालय ने बना दी थी. इन समितियों ने अभी तो अपनी रिपोर्ट ही दी है. पहलवानों को अभी एकाध दो हफ्ते तो धैर्य दिखाना ही चाहिए था. उनको प्रतीक्षा करनी चाहिए थी क्योंकि दोनों ही समितियों ने अपने निष्कर्ष सरकार को दे दिए हैं. अब ये तो सरकार पर है न कि वह जब उचित समझेगी तो उनको सार्वजनिक करेगी.


व्यवस्था से विश्वास उठने का क्या मतलब?


इस बीच कुश्ती संघ ने तो अपनी गतिविधियां दुबारा प्रारंभ कर दी हैं. अभी हाल ही में गोंडा में अंडर 17 की नेशनल चैंपियनशिप का भी आयोजन हुआ है. यह बहुत ही बढ़िया टूर्नामेंट रहा, काफी शानदार पार्टिसिपेशन रहा. तो, कुश्ती संघ तो अपने हिसाब से चल रहा है. पहलवानों को वापस धरने पर बैठने से पहले आइओए और ओवरसाइट कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार तो करना ही चाहिए न.


उस कमेटी में मैरीकॉम, योगेश्वर दत्त जैसे वर्ल्ड चैंपियन हैं. डोला बनर्जी, तृप्ति मरुगंडे जैसे खिलाड़ी, दो बड़े वकील, राजगोपाल जैसे सीईओ, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर राधिका श्रीमान भी उसी कमिटी में थे. अब ऐसी जांच कमेटी को भला आप कैसे गलत कह सकते हैं. खुद बबीता फोगाट भी उस कमिटी की एक सदस्य थीं, जो पहली बार धरना-प्रदर्शन का हिस्सा रही थीं. उस कमेटी ने बहुत कायदे से, लगभग 8 सप्ताह तक सभी संबंधित पार्टियों को बुलाकर, ऑन कैमरा उनके बयान लिए. बाकायदा एफिडेविट देकर बयान लिए गए हैं. इस जांच समिति को इतने हल्के में लेने की जरूरत नहीं है. अब आप योगेश्वर दत्त या मैरीकॉम को इतने हल्के में लेंगे क्या?


इतनी जल्दबाजी बेमानी है


जो पहलवान और खिलाड़ी धरना पर बैठे हैं, उनको कैसे पता कि कमेटी ने कुछ नहीं किया? समिति ने सबको सुना, आपने जो साक्ष्य दिए, वो ऑन रिकॉर्ड बाकायदा वीडियोग्राफी करवा कर रिकॉर्ड किए गए. उन्होंने सवाल पूछे, आपने जवाब दिए, आपने बाकायदा शपथ-पत्र दिया है, तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि समिति ने कुछ नहीं किया..कम से कम समिति की रिपोर्ट तो आने दीजिए. आप अभी से कैसे और क्यों मान बैठे हैं कि रिपोर्ट में बृजभूषण सिंह को या फेडरेशन को क्लीन-चिट मिल गई है?


सरकार ने तीन दिनों तक खिलाड़ियों से बातचीत की. खेल मंत्री अनुराग ठाकुर लगातार तीन दिनों तक और रात के दो-दो बजे तक पहलवानों के साथ बैठे रहे, आपको याद होगा. तभी तो ओवरसाइट कमेटी बनाई गई. तीन महीने पहले जब ये धरने पर बैठे थे, तो पहलवानों के अनुरोध पर ही कमेटी बनी. पहलवानों ने एक और आग्रह किया कि जांच-कमेटी में उनके हिसाब से चीजें हों. सरकार ने तो पहलवानों का तुष्टीकरण करते हुए बबीता फोगाट को भी कमेटी में डाल दिया. अब, ये तो ठीक नहीं था. बबीता ने तो खुद कंप्लेंट की थी, तो ये तो कान्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट होगा न. आरोप लगानेवाले खुद जांच कमेटी में बैठ जाएंगे, ऐसा आपने कहीं सुना है?


जहां तक FIR की बात है, तो उसका एक SOP यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर होता है. अगर ताजा मामला है, जैसे कल रात की घटना है और पीड़िता अगर थाने पहुंचती है, तो तुरंत एविडेंस इकट्ठा करने के लिए आरोपित को तुरंत हिरासत में लेती है, ताकि फॉरेंसिक एविडेंस मिल सकें. यहां तो मामला 10 साल पुराना है, 5 साल पुराना है, तो पुलिस ने इनकी शिकायत ले ली है और जांच शुरू कर दी है. उस जांच में सरकार से दिल्ली पुलिस ने दोनों कमेटी की रिपोर्ट भी मांगी है. अब आरोप लगाने वाले पहलवानों को पुलिस बुलाएगी और साक्ष्य में अगर दम हुआ तो एफआईआर दर्ज हो जाएगी. ये कोई मसला ही नहीं है.


यह केवल राजनीतिक मसला है


पिछली बार जब पहलवान धरने पर बैठे थे तो वृंदा करात जैसी नेत्री को भी इन्होंने मंच से उतार दिया था. यहां तक कि बॉक्सर विजेंद्र सिंह को भी मंच नहीं दिया था. अब इस बार ये कह रहे हैं कि जो भी उनका समर्थन करने आएगा, उसका स्वागत है. तो, इसका तो मतलब यही है कि ये सीधा-सादा पॉलिटिकल मंच बन गया है. पिछली बार आपने किसी को मंच पर झांकने नहीं दिया, इस बार आप न्योता देकर बुला रहे हैं. पिछली रात इन्होंने एक न्योता भेजा था, लेकिन एक भी एक्टिव रेसलर, यहां तक कि जो पिछली बार मंच पर इनके साथ लड़कियां बैठी थीं, वे भी इनके साथ धरने पर नहीं बैठी हैं. सिर्फ विनेश, साक्षी और बजरंग पहलवान की पत्नी संगीता वहां पहुंची हैं. यहां तक कि बबीता और उनकी बहन गीता भी नहीं पहुंची हैं.


यह पूरी की पूरी राजनीति ही है. कल जब थाने में ये कंप्लेंट पहुंचे थे, तो उनके साथ नरेंद्र नाम के एक वकील थे इनके साथ. ये वकील हुड्डा परिवार से जुड़े हैं और अब यह मामला पूरा राजनीतिक ही हो गया है. इन पहलवानों के कंधे पर रखकर कुछ राजनीतिक लोग बस अपनी बंदूक चला रहे हैं.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)