इस्लाम में मर्दों को कई शादियां यानी बहुविवाह करने की इजाज़त है लेकिन इसके ख़िलाफ़ अब मुस्लिम महिलाओं ने ही आवाज़ उठानी शुरु कर दी है और वे चाहती हैं कि इस पर प्रतिबंध लगाने के लिये मोदी सरकार कानून बनाये. इस्लाम में कुरान का हवाला देते हुए ये रिवाज़ सातवीं सदी से चलता आ रहा है और दुनिया के कई इस्लामिक देशों में ये वैध भी है लेकिन भारत में इस पर रोक लगाने के लिये फिलहाल कोई कानून नहीं है. इसलिये बड़ा सवाल है कि तीन तलाक देने की प्रथा के ख़िलाफ़ कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं की वाहवाही लूटने वाली केंद्र सरकार क्या बहुविवाह के ख़िलाफ़ कानून लाने की हिम्मत जुटा पायेगी?


मुस्लिम महिलाओं को उनका वाजिब हक दिलाने और उनकी हालत बेहतर बनाने की दिशा में पिछले कुछ सालों से मुंबई स्थित एक संगठन का कर रहा है, जिसका नाम है- भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए). इसकी संस्थापक जाकिया सोमन हैं, जो इस्लाम में एक झटके में तीन तलाक़ दे देने की विवादास्पद प्रथा के ख़िलाफ़ व्यापक मुहिम चला चुकी हैं और उनके संगठन ने ही साल 2019 में  सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके बहुविवाह की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. 


कुछ अरसा पहले उनके ही संगठन ने मुस्लिम महिलाओं पर एक अध्ययन किया था, जिसमें पाया गया कि पति की एक से ज्यादा शादी होने पर उनकी पत्नी की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है.  इस सर्वे में ऐसी महिलाओं ने हिस्सा लिया, जिनके पतियों ने एक से ज्यादा शादी की हुई हैं. सर्वे में हिस्सा लेने वाली 289 महिलाओं में से 84 प्रतिशत ने माना कि बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए.  


हालांकि उनके संगठन ने ये स्टडी साल 2017 में की थी लेकिन सोमन कहती है कि अब तो स्थिति और भी भयावह हो गई है. सर्वे में शामिल महिलाओं से बातचीत करते हुए उनसे कई तरह के सवाल पूछे गये. इन महिलाओं में से 50 को चुनते हुए उनकी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और वित्तीय दशा पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई. रिपोर्ट का लुब्बेलुबाब यही था कि पत्नी को लगता है कि पति ने दूसरी महिला से शादी करके उसके स्वाभिमान को चोट पहुंचाई है. इसके साथ ही वह अपनी आवाज उठाने और इंसाफ पाना तो दूर, उसकी मांग करने की स्थिति में भी नहीं रहती हैं.


सोमन बताती हैं कि हमने पाया कि वे ऐसे हालातों में फंसी हैं जो उनके लिए बहुत बड़ा अन्याय है. उन हालात में उन्हें गहरा सदमा पहुंचा जिसके चलते कइयों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो गईं. बेशक इस्लामा में मुसलमान मर्दों को चार महिलाओं से शादी करने की इजाज़त है, जो उनको कुरान ने ही दी है. लेकिन इस्लाम के जानकारों के मुताबिक उसके लिए कड़ी शर्तें और प्रतिबंध लगाए गए हैं. अच्छे से समझें तो पाएंगे कि उन शर्तों को पूरा करना लगभग असंभव है.


देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त रह चुके एस. वाई. कुरैशी ने हाल ही में एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने मुस्लिमों की आबादी बेतहाशा बढ़ने जैसे मिथ का खंडन करते हुए बहुविवाह जैसे मसलों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है. कुरैशी के मुताबिक कई शादियां करने के निर्देश कुरान में 7वीं सदी में तब शामिल किए गए, जब अरब में कबीलों की लड़ाई में बहुत से मर्द जवानी में ही मारे गए.  वैसे हालात में विधवाओं और उनके बच्चों की बेहतरी के लिए बहुविवाह की इजाजत दी गई. 


क़ुरैशी कहते हैं कि इसीलिये कुरान कहता है कि कोई मर्द दूसरी, तीसरी या चौथी बार निकाह कर सकता है, पर तीनों बार ये निकाह केवल अनाथ और विधवा महिलाओं से ही किया जा सकता है.  मर्द को अपनी सभी बीवियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए.  इससे अलग कुछ भी करना इजाज़त का उल्लंघन करना है. '' वे कहते हैं,  ''सभी बीवियों से एक जैसा व्यवहार करना असल में लगभग असंभव है.  यह सबके लिए एक ही कपड़े ख़रीदने का मामला नहीं है,  बल्कि यह उससे कहीं बड़ी बात है.


कुछ ऐसा ही नजरिया बहुविवाह की आलोचक और महिलाओं के हक़ के लिए काम करने वाली ज़ाकिया सोमन का भी है. वे कहती हैं कि आज भारत में कोई लड़ाई नहीं चल रही,  लिहाजा इस 'महिला विरोधी और पितृवादी' रिवाज पर रोक लगा देनी चाहिए. सही मायने में कहें, तो बहुविवाह 'नैतिक,  सामाजिक और क़ानूनी रूप से घिनौना' है.  लेकिन सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि यह क़ानूनी तौर पर मान्य है. वो पूछती हैं,  'आप कैसे कह सकते हैं कि किसी मर्द के एक से अधिक बीवी हो सकती है? मुसलमान समुदाय को समय के साथ चलना चाहिए.  आज के समय में यह प्रथा किसी भी महिला की शान और उनके मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है. '


दुनिया में सबसे अधिक बहुविवाह का प्रचलन पश्चिम अफ्रीका और मध्य अफ्रीका में है, जिसे "बहुविवाह बेल्ट" के रूप में पहचाना जाता है. दुनिया में बुर्किना फासो ,  माली ,  गाम्बिया , नाइजीरिया में सबसे अधिक बहुविवाह का प्रचलन होने का अनुमान है. 


प्यू रिसर्च सेंटर ने साल 2019 की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया की क़रीब दो फ़ीसदी आबादी बहुविवाह वाले परिवारों में रहती है.  तुर्की और ट्यूनीशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस प्रथा पर अब प्रतिबंध लग चुका है. साथ ही जहाँ इसकी इजाज़त है,  भी वहाँ भी बड़े स्तर पर इसे रेगुलेट किया जाता है.  संयुक्त राष्ट्र ने कई विवाह करने के रिवाज को 'महिलाओं के ख़िलाफ़ स्वीकार न किया जाने वाला भेदभाव' बताता है.  उसकी अपील है कि इस प्रथा को 'निश्चित तौर पर ख़त्म' कर दिया जाए. 


 नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.