भुखमरी की कगार पर खड़े हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इन दिनों विपक्ष ने वहां की सरकार की नाक में ऐसा दम कर रखा है कि उसे समझ ही नहीं आ पा रहा है कि वो उसके रास्ते पर चले या फिर पहले मुल्क की माली हालत को सुधारे. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की अगुवाई वाली मुख्य विपक्षी पार्टी  Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) ने लोगों के बीच ये संदेश पहुंचाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल करने की कोशिश की है कि मुल्क के हालात तभी बेहतर होंगे,जब जल्द आम चुनाव होंगे और निज़ाम बदलेगा. साथ ही बड़ा सवाल ये है कि मुल्क की कंगाली तो एक तरफ है, लेकिन प्रतिबंधित आतंकी संगठन Tehreek-e-Taliban Pakistan ने  वहां जो तबाही मचा रखी है तो उसे मद्देनजर रखते हुए क्या ऐसे सूरते-हाल में वहां आम चुनाव कराना मुमकिन है?


पिछले साल वहां की संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाकर इमरान खान की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था. तब उन्होंने इसके लिए तत्कालीन आर्मी चीफ कमर बाजवा के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं पर ये आरोप लगाया था कि वे अमेरिका की कठपुतली बने हुए हैं. एक जमाने में क्रिकेट स्टार रहकर मुल्क की हुकूमत संभाल चुके इमरान खान को शायद अब सियासत की वो बारीकियां भी समझ आ गईं हैं कि सत्ता से बाहर रहकर सरकार की किस कमजोर नब्ज को पकड़ा जाए. शायद इसलिये कि उन्हें अहसास है कि मुल्क का अवाम गैस और बिजली की किल्लत झेलने के साथ ही बेतहाशा बढ़ती हुई महंगाई से बदहाल हो चुका है. पाकिस्तान में जरुरी चीजों की कीमतें आसमान छू रहीं हैं, लेकिन पीएम शहबाज शरीफ की सरकार उसे काबू करने की बजाय  International Monetary Fund (IMF) के सामने खाली कटोरा लेकर ये गुहार लगा रही है कि उसे और कर्ज की इमदाद कब मिलेगी.


पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कहलाने वाले कराची समेत कई बड़े शहरों में गैस स्टेशनों के बाहर कारों की लंबी कतारें लगना रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. इन शहरों में ऐसे न जाने कितने घर हैं,जहां दो वक्त तो छोड़िये, एक वक्त का खाना पकाना भी किसी किले को फतह करने से कम नहीं है, इसलिये कि वहां घरों में सप्लाई होने वाली कुकिंग गैस तक नसीब नहीं हो रही है. इसके साथ ही खाने-पीने की बहुत सारी चीजों की जबरदस्त कमी ने उन लोगों का जीना भी मुहाल कर दिया है, जिन्हें हम मुफलिस नहीं कह सकते. इन्हीं सब वजहों से मुल्क के आम अवाम के साथ ही मध्यम वर्ग भी शरीफ सरकार की जमकर मजम्मत कर रहा है और इस बहाने वो इमरान खान की इस मांग का समर्थन कर रहा है कि आम चुनाव जल्द होने चाहिए, ताकि इस निजाम से निजात मिले.


इमरान खान ने लोगों की इस नब्ज को पकड़कर ही सड़कों पर उतरने का फैसला किया.आज यानी गुरुवार 9 मार्च को उनकी पार्टी ने सरकार के खिलाफ लाहौर में बड़ी रैली करने का ऐलान किया था, लेकिन शरीफ सरकार ने इस ऐलान के चंद घंटे के भीतर ही वहां धारा 144 लागू करके अपने इरादे जता दिये कि वह हर सूरत में विपक्ष की आवाज को कुचलकर ही रहेगी.आतंक को पालने-पोसने वाला और दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र के मंच पर खुद को विक्टिम साबित  करते हुए भारत को कसूरवार बताने वाले पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कभी ये क्यों नहीं सोचा कि उनके रुपये की कीमत की इतनी बुरी गत आखिर क्यों होती जा रही है? नहीं सोचा था और न ही अब सोचना चाहते हैं. यही वजह थी कि बीती 26 जनवरी को एक ही दिन में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी मुद्रा में 9.6 फीसदी की इतनी बड़ी गिरावट हुई थी,जो पिछले दो दशकों में कभी देखने को नहीं मिली.


इसका नतीजा ये हुआ कि विदेशों से खाद्य सामग्री और दवाएं लेकर आये सैंकड़ों कंटेनर वहां के बंदरगाहों पर हफ्तों तक फंसे रहे क्योंकि सरकार के संबंधित विभागों के पास उनकी रकम का भुगतान करने के लिए पैसा ही नही था.एक और बड़ी दिक्कत ये भी है कि शरीफ सरकार अभी तक IMF को ये समझाने में कामयाब नहीं हो सकी है कि उसके कर्ज का नवीनीकरण करते हुए उसे और मदद मिल जाये ताकि मुल्क को दिवालिया होने से बचाया जा सके, लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि बेतहाशा आर्थिक तंगी से गुजर रहा पाकिस्तान क्या जल्द आम चुनाव कराने की हैसियत में है? वहां के बहुत सारे सियासी विश्लेषक इसका जवाब नहीं में देते हैं.उनमें से ही एक जिया रहमान कहते हैं कि मौजूदा आर्थिक हालात किसी बड़ी गड़बड़ का इशारा करते हैं और सच ये है कि मुल्क चलाने के लिये खजाना खाली हो चुका है. ऐसी सूरत में वक्त से पहले चुनाव करवाना बहुत महंगा सौदा साबित होगा. वे कहते हैं कि सबसे बेहतर स्थिति तो ये होगी कि सारे हितधारक यानी राजनीति के तमाम दिग्गज और आर्मी के आला अफसर साथ बैठें और वे सर्वसम्मति के साथ मुल्क में एक राष्ट्रीय सरकार बनाने पर राजी हों, जिसका पहला व एकमात्र मकसद ये है कि देश को आर्थिक बदहाली के इस दलदल से कैसे बाहर निकाला जाये.


मुल्क के कुछ विश्लेशक मानते हैं कि ऐसा मुमकिन हो सकता है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा रोड़ा इमरान खान ही हैं क्योंकि वे लचीला रुख अपनाने को तैयार ही नहीं हैं. इमरान खान शायद राजनीति को भी खेल का मैदान समझ बैठे हैं, जहां अपने विरोधी को हराना ही एकमात्र मकसद होता है. राजनीति में ऐसा मुमकिन नहीं है क्योंकि यहां आपको हर एक से ,यहां तक कि अपने विरोधियों से भी संवाद का रास्ता खुला रखना चाहिये. इमरान खान की पार्टी किसी भी तरह का राष्ट्रीय संवाद करने के लिए इसलिये मंजूर नहीं है कि बीते कुछ महीनों में उसके कई नेताओं को सरकार ने बेवजह फंसाकर जेलों में भेजा है.एक सच ये भी है कि खुद इमरान भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को झेल रहे हैं,जिसमें किसी भी वक़्त उनकी गिरफ्तारी हो सकती है.वैसे भी आम चुनाव जल्द न कराने की वजह सिर्फ आर्थिक बदहाली ही नहीं है. मुल्क के जो सुरक्षा-हालात बन रहे हैं, वे भी पाकिस्तान को एक अस्थिर मुल्क बनाने की तरफ ले जा रहे हैं. प्रतिबंधित आतंकी संगठन Tehreek-e-Taliban Pakistan (TTP) ने बीते जनवरी से लेकर अब तक जो तबाही मचाई है,वो इसका बड़ा सबूत है कि वहां चुनाव हों या न हों,आतंक का बोलबाला तो बरकरार ही रहेगा.


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