बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कांग्रेस को हटाकर खुद को तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ एक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में स्थापित कर लिया है. बीजेपी तमिलनाड में भी एआईएडीएमके को दरकिनार कर डीएमके के खिलाफ खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर वहां भी यही स्थिति दोहराना चाहती है. तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं. विपक्षी गठबंधन के तौर पर डीएमके ने 22 सीटों पर चुनाव लड़ा है (सहयोगी केएमडीके, डीएमके के चिह्न पर एक सीट पर चुनाव लड़ी है), कांग्रेस ने नौ, वामपंथी दलों ने चार और अन्य ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा है. उधर एनडीए में, बीजेपी 20 सीटों पर, पीएमके 10 सीटों पर, टीएमसी (एम) तीन सीटों पर, टीटीवी दिनाकरण की एएमएमके दो सीटों पर, अन्य तीन सीटों पर और ओ पन्नीरसेल्वम निर्दलीय के रूप से चुनाव लड़ रहे हैं.


अन्नामलाई की डीएमके को चुनौती


बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्ना मलाई के नेतृत्व में पार्टी ने तमिलनाडु में सत्ताधारी दल डीएमके को जबर्दस्त चुनौती दी है. राज्य के कुछ इलाकों, जैसे कन्याकुमारी, नागरकोइल, तिरुनेलवेली बेल्ट, रामनाथपुरम के कुछ हिस्सों और कोयंबटूर दक्षिण जैसे कुछ विधानसभा क्षेत्रों में हमेशा बीजेपी को वोट दिया जाता रहा है. द्रविड़ पार्टियों के साथ, 1998 में एआईएडीएमके और 1999 में डीएमके, गठबंधन ने बीजेपी को 1998 में तीन और 1999 में चार लोकसभा सीटें जीतने में भी सफलता दी थी. बीजेपी ने 2014 में एक सीट कन्याकुमारी की भी जीती थी. हालांकि, सवाल तो ये भी है कि 2019 में देश भर में लोकसभा चुनाव की भारी जीत के बावजूद बीजेपी का तमिलनाडु में प्रदर्शन कुछ खास नही रहा है. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को तमिलनाडु में एक भी सीट नहीं मिली, जबकि इस चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी के साथ गठबंधन में एआईएडीएमके, पीएमके, डीएमडीके और कुछ अन्य छोटी पार्टियां शामिल थीं. बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन सभी को हार का सामना करना पड़ा. यहां तक कि बीजेपी ने 2019 में कन्याकुमारी में 2014 में जीती अपनी एक मात्र लोकसभा सीट भी कांग्रेस के हाथों गंवा दी. बीजेपी का मत प्रतिशत तमिलनाडु में 2014 में 5.56% था लेकिन ये मत प्रतिशत 2019 में घटकर 3.66% रह गया.



बीजेपी का प्रदर्शन तमिलनाडु में अकेले लोकसभा चुनावों में ही कमजोर नहीं रहा है - विधानसभा चुनाव भी क्षेत्र में पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं रहे हैं. पिछले तीन विधानसभा चुनावों 2011, 2016 और 2021 को देखें तो  केवल 2021 में बीजेपी तमिलनाडु में चार सीटें जीत पाने में कामयाब हुई. 20 साल बाद तमिलनाडु विधानसभा में बीजेपी प्रवेश कर पायी.


अन्नाद्रमुक से गांठ


25 सितंबर 2023 को चेन्नई में एआईएडीएमके ने बीजेपी से संबंध तोड़ने का प्रस्ताव पारित किया गया था. संबंध विभाजन का एक बड़ा कारण बीजेपी के तमिलनाडु प्रमुख के. अन्नामलाई थे. अन्नामलाई की आक्रामक मुद्रा और जे. जयललिता सहित द्रविड़ नेताओं और द्रविड़ सिद्धांतों पर प्रतिकूल टिप्पणियां, और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उन पर लगाम लगाने से स्पष्ट इनकार ने एआईएडीएमके को नाराज कर दिया और दोनों अंततः अलग हो गए. मार्च 2023 में अन्नामलाई ने पहली बार प्रमुख सहयोगी एआईएडीएमके के साथ संबंध तोड़ने की बात कही थी. तमिलनाडु की राजनीति में हमेशा दो प्रमुख द्रविड़ पार्टियों, डीएमके और एआईएडीएमके का वर्चस्व रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मृत्यु के बाद, एआईएडीएमके सबसे कमजोर स्थिति में है, जिससे 2021 के चुनावों के बाद विपक्ष में एक शून्य पैदा हो गया है, जहां डीएमके सत्ता में आई है. पिछले दो सालों से बीजेपी के. अन्नामलाई के नेतृत्व में तमिलनाडु में अपनी खुद की राह बनाने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही थी. उनका दावा था कि तमिलनाडु मुख्यतः द्रविड़ राज्य में भाजपा के 'वैचारिक रुख पर अपनी मजबूत स्थिति और मजबूत पार्टियों की तीखी आलोचना' के साथ बीजेपी के रास्ते पर जा रहा है.


जिस तरह से 2022 में नगर निकाय चुनावों को अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी ने जोश के साथ लड़ा था और उसे मामूली ही सही फायदा भी मिला था, उससे भविष्य में पार्टी का अपना एक जनाधार तैयार हो सकता है. शायद यही वजह है कि बीजेपी ने अपनी पुरानी सहयोगी एआईएडीएम की बैसाखी के बजाए अपने पैरों पर खड़ा होना तय किया. एक नए गठबंधन के गठन के साथ, जिसमें ऐसी पार्टियाँ शामिल हैं जो अपने पूर्व सहयोगी एआईएडीएमके की तुलना में कमजोर मानी जाती हैं बीजेपी कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और पुडुचेरी (केंद्र शासित प्रदेश) के बाद तमिलनाडु में भी अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में जुट गई है.


खाली स्थान को भरने की कवायद


अन्नामलाई ने बीजेपी के लिए 25 प्रतिशत वोट शेयर का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है – बीजेपी को राज्य में कभी भी पांच प्रतिशत से अधिक वोट शेयर नहीं मिला है. बीजेपी तमिलनाडु की दो धाराओं - डीएमके और एआईएडीएमके के बीच बंटी राजनीति में अपने को एक विकल्प के तौर पर पेश करना चाहती है. प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई की लोकप्रियता और उनके समुदाय गौंडर का समर्थन सकारात्मक रहा है, जो तमिलनाडु में अन्य पिछड़े वर्ग में आता है. बीजेपी ने 2024 के अपने अभियान में एक "केंद्रीकृत" पार्टी के रूप में अपनी छवि से छुटकारा पाने की कोशिश की है इसकी झलक उस खुली छूट से भी स्पष्ट होती है जो उसने अपने प्रदेश अध्यक्ष को दी है. उदाहरण के लिए, जब पिछले साल अन्नामलाई के एआईएडीएमके पर लगातार हमले, बीजेपी के नजरिए से, एक बेहद जरूरी गठबंधन के आड़े आए, तो दिल्ली से प्रतिक्रिया धीमी रही.


राज्य में बीजेपी अपनी दूसरी बड़ी चुनौती, हिंदी भाषियों की पार्टी के तमगे और प्राचीन, गौरवशाली संस्कृति के बीच एक न पाटने योग्य अंतर को भी दूर करती दिखाई देती है. बीजेपी ने उत्साहपूर्वक हर स्तर पर तमिल भाषा और संस्कृति का समर्थन करने की कोशिश की है - 2022 में शुरू हुए काशी तमिल संगमम के माध्यम से उत्तर और दक्षिण के बीच सदियों पुराने संबंध को निभाने से लेकर सेनगोल को एक प्राचीन नए संसद भवन के उद्घाटन में चोल शक्ति का प्रतीक, गौरव का स्थान देना इन योजनाओं में शामिल रहा है. प्रधान मंत्री ने खुद अक्सर राज्य के योगदान का आह्वान किया है, जिसमें तमिलनाडु के उथिरामेरूर में 1,000 साल से अधिक पुराने शिलालेख में भारतीय लोकतंत्र की वंशावली का पता लगाना भी शामिल है.


एक दशक से अधिक की मेहनत


बीजेपी का मानना ​​है कि इस साल द्रविड़ राजनीति की मजबूत दीवार टूट जाएगी. ये भी सच है कि तमिलनाडु में 2024 का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय रहा है. पिछले एक दशक में तमिलनाडु में बीजेपी के तीन प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. सबसे पहले, तमिलिसाई सुंदरराजन ने पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने और इसकी सदस्यता बढ़ाने के लिए काम किया. उनके उत्तराधिकारी एल. मुरुगन ने मतदाताओं से जुड़ने के लिए धर्म का उपयोग करने का प्रयास किया. निवर्तमान के. अन्नामलाई ने बीजेपी को द्रमुक के प्राथमिक विपक्ष के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है. अन्नामलाई के सामने सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण द्रविड़ मानसिकता को खत्म करना रहा है कि बीजेपी "पूर्ण भगवा" और "गैर-समावेशी" है और लोगों को उनकी पार्टी के लिए वोट करने के लिए राजी करना. जातियों के हिसाब से देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में अल्पसंख्यकों से कांग्रेस गठबंधन को भारी समर्थन मिला. मुस्लिमों में 62% और ईसाइयों में 53% वोटरों ने कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया. अन्य पिछड़ा वर्ग तमिलनाडु में बहुत अहम समुदाय है. ओबीसी वोटरों में सिर्फ 32% ने ही बीजेपी गठबंधन को वोट दिया. बीजेपी के गठबंधन में वन्नियार पार्टी पीएमके के शामिल होने के बावजूद वन्नियार वोटरों का उसे ज़्यादा समर्थन नहीं मिला. वन्नियार समुदाय में 39% वोटरों ने बीजेपी गठबंधन और 43% ने कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वोटरों ने भी निर्णायक ढंग से कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया.


यही कारण है कि 2024 के चुनावों के लिए बीजेपी ने जाति समीकरणों को नाजुक ढंग से संतुलित करने के लिए एक इंद्रधनुषी गठबंधन बनाया जो विभिन्न जातीय संगठनों, ओ. पन्नीरसेल्वम के एआईएडीएमके के धडे, पूर्व एआईएडीएमके कोषाध्यक्ष टीटीवी दिनाकरन की अम्मा मक्कल मुनेत्र कज़गम और पट्टाली मक्कल काची को एक साथ ले कर आया, जिसकी वर्तमान विधानसभा में पांच सीटें हैं. पीएमके को वन्नियार समुदाय का मजबूत समर्थन प्राप्त है, जिसके पास तमिलनाडु में करीब 15 फीसदी वोट हैं. पार्टी दक्षिणी जिलों में थेवर समुदाय पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है. नागेंद्रन, जो पहले अन्नाद्रमुक के साथ थे और फिर एएमएमके के साथ थे, के दक्षिण से अधिक वोट लाने की संभावना है. पन्नीरसेल्वम और दिनकरण के क्रमशः रामनाथपुरम और थेनी से चुनाव लड़ने से भी थेवर वोट आने की उम्मीद है, जो परंपरागत रूप से अन्नाद्रमुक को जाते हैं. बीजेपी की केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री एल मुरुगन तमिलनाडु में पार्टी का दलित चेहरा हैं. वह नीलगिरी से पार्टी के उम्मीदवार हैं. प्रदेशाध्यक्ष के अन्नामलै ओबीसी वर्ग के हैं.


तमिलवाडु और भाजपा


यह रणनीतिक पैंतरेबाज़ी को तमिलनाडु की जनता ने कितना स्वीकार किया है ये 4 जून को आने वाले परिणामों से तय हो जायेगा कि बीजेपी और अन्नामलाई के लिए राज्य में संभावित जीत या गिरावट कैसी रही. वैसे बीजेपी कार्यकर्ता पार्टी की बेहतर संभावनाओं के बारे में उत्साहित है, और उनका मानना ​​​​है कि अन्नामलाई की एन मन, एन मक्कल यात्रा, सात महीनों में सभी 234 विधानसभा क्षेत्रों में से गुज़रते हुए, पार्टी को राज्य के हर हिस्से में ले गई, जिसका बेहतर परिणाम तय है. एक अनुमान के मुताबिक बीजेपी एआईएडीएमके के वोट शेयर में सेंध लगा सकती है और 7% से 14% फीसदी वोट शेयर हासिल कर सकती है लेकिन अगर बीजेपी को इसे सीटों में तबदील करना है ये पर्याप्त नहीं होगा. यदि एनडीए एआईएडीएमके के दो-तिहाई वोट और डीएमके के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के 10 प्रतिशत वोट ले पाया होगा, तो वह 34 प्रतिशत वोटों के साथ सात सीटें तक जीत जायेगा.


संभावित सीटें


कन्याकुमारी: तमिलनाडु की एकमात्र ऐसा सीट है जहां से 2014 में बीजेपी का सांसद बना था. 10 साल बाद 2024 में यहां से फिर बीजेपी को जीत मिल सकती है. बीजेपी ने पी. राधाकृष्णन को टिकट दिया है और उनके मुकाबले कांग्रेस के विजय सावंत हैं. कांग्रेस ने 2019 में बीजेपी से ये सीट वापस जीत ली थी.


चेन्नई साउथ: चेन्नई साउथ सीट डीएमके का गढ़ है, लेकिन बीजेपी को इस बार इस सीट पर उम्मीद दिख रही है. डीएमके की थमिज़ाची थंगापांडियन यहां से मौजूदा सांसद हैं. बीजेपी के टिकट पर चेन्नई साउथ सीट से तमिलिसाई सौंदर्यराजन ने तेलंगाना की गवर्नर के पद से इस्तीफा देकर चुनाव लडा है. तमिलिसाई सौंदर्यराजन तमिलनाडु में बीजेपी अध्यक्ष रह चुके हैं और उन्होने तमिलनाडु में बीजेपी का संगठन तैयार किया था. 


कोयंबटूर: बीजेपी दो बार 1998 और 1999 में ये लोकसभा सीट जीती चुकी है. इसके अलावा, बीजेपी 2014 में डीएमडीके, पीएमके, एमडीएमके के साथ गठबंधन में और 2019 में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में लगभग चार लाख वोट पाने में कामयाब हुई थी. 1998 में कोयम्बटूर बीजेपी के सी.पी. राधाकृष्णन कुल 4.49 लाख से अधिक वोट हासिल करके विजयी हुए. तमिलनाडु की कोयंबटूर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है, जिसमें एआईएडीएमके और डीएमके और बीजेपी आमने-सामने रही हैं. इस सीट पर बीजेपी की उम्मीद का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा क्षेत्र में दो बार प्रचार किया - पल्लदम में एक सार्वजनिक बैठक और आर एस पुरम में एक रोड शो. इस लोकसभा सीट से बीजेपी ने 2024 में तमिलनाडु में अपनी सबसे बड़ी उम्मीद अपने प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई को टिकट दिया था. अन्नामलाई के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोट मांगे हैं. उनकी विभिन्न यात्राओं ने तमिलनाडु में बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ाई है. कोयंबटूर की सीट अन्नामलाई जीत सकते हैं.


नीलगिरी: बीजेपी के मास्टर मथन ने 1998 और 1999 में इस सीट से दो बार जीत हासिल की. ​​हालांकि, ये जीतें ज्यादातर एआईएडीएमके या डीएमके के साथ गठबंधन के दौरान सुनिश्चित की गईं. तब से, यह सीट कांग्रेस से द्रमुक के पास और फिर एआईएडीएमके के पास चली गई और केवल डीएमके के पास वापस आ गई. इस बार बीजेपी डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के खिलाफ अकेले लड़ रही है. बीजेपी इस सीट पर कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है. यहां तक ​​कि अगर वह सीट नहीं जीतती है, तो भी एआईएडीएमके को दूसरे स्थान से हटाने की उच्च संभावना है.


तिरुनेलवेली: बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव के लिए तिरुनेलवेली विधानसभा सीट से अपने मौजूदा विधायक नैनार नागेंद्रन को मैदान में उतारा है. एआईएडीएमके ने 2014 के आम चुनाव में तिरुनेलवेली सीट जीती थी. हालांकि, 2019 के चुनाव में एआईएडीएमके यह सीट डीएमके से हार गई. एआईएडीएमके के पूर्व नेता और पूर्व उद्योग मंत्री नागेंद्रन इस चुनावी मौसम में तमिलनाडु में सबसे मजबूत बीजेपी उम्मीदवारों में से एक हैं. निर्वाचन क्षेत्र के 16.54 लाख मतदाताओं में से लगभग 3.75 लाख हिन्दू नादर हैं जो परंपरागत रूप से एआईएडीएमके समर्थक रहे हैं लेकिन इस बार बीजेपी की ओर झुकते दिख रहे हैं. हालांकि, बीजेपी उम्मीदवार नैनार नागेंद्रन थेवर समुदाय से हैं, जिनके पास 2.15 लाख वोट हैं. नागेंद्रन के पास एक अच्छा मौका है अगर वह थेवर समुदाय के वोटों को हासिल करने में सक्षम होते हैं और साथ ही हिंदू नादर वोटों का भी फायदा उठा पाते हैं.


वेल्लोर:  2019 में इस सीट पर चुनाव में डीएमके प्रत्याशी डी.एम. कथीर आनंद को जीत हासिल हुई थी. इससे पहले, वेल्लोर लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान एआईएडीएमके पार्टी के प्रत्याशी सेनगुटुवन, बी. ने जीत दर्ज की थी. अभिनेता मंसूर अली खान भी 2024 आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वेल्लोर लोकसभा क्षेत्र से लड रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में, निर्वाचन क्षेत्र में डीएमके के कथिर आनंद, एआईएडीएमके के डॉ एस पसुपति और बीजेपी के एसी शनमुगम के बीच ज़ोरदार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है. बीजेपी अपने आधार को मजबूत करने की दिशा में पिछले दो वर्षों से काम कर रही थी. हालांकि, यहां डीएमके का मजबूत मतदाता आधार है, लेकिन अतीत में यह निर्वाचन क्षेत्र कई दिशाओं में झुकता हुआ दिखाई दिया है.  बीजेपी की रणनीति अरनी में जन्मे अपने उम्मीदवार ए सी शनमुगम, वेल्लोर के पूर्व सांसद और एक व्यवसायी की लोकप्रियता की मदद से यहां हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने की है. शनमुगम ने 2014 और 2019 में भी वेल्लोर से अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन वह उपविजेता ही बन सके. 2019 में उनकी हार लगभग 8,000 वोटों के मामूली अंतर से हुई.


तिरुपुर: देश में कपड़ों के उद्योग के तौर पर विख्यात तिरुपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में 2014 में एआईएडीएमके के वी सत्यबामा ने चुनाव जीता था. हालांकि इसके बाद साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सीपीआई के.सुब्ब्रायन ने चुनाव जीता. एआईएडीएमके ने अपने इरोड उपनगरीय पूर्वी जिले एमजीआर यूथ विंग के सचिव पी. अरुणाचलम जो पेरुंदुरई से हैं, बीजेपी ने एपी मुरुगानंदम और नाम तमिझार काची की ओर से महिला उम्मीदवार सीतालक्ष्मी के ज़रिए चुनाव लडा है. जहां तक ​​जमीनी हकीकत का सवाल है, तिरुपुर में बेरोजगारी फिर से चरम पर है और धन का प्रचलन काफी कम है. घटते निर्यात ऑडरों के कारण हजारों प्रवासी कामगार बेरोजगार हो गए हैं. तिरुपुर से अपने गृह राज्यों के लिए श्रमिकों की निरंतर भीड़ एक स्पष्ट संकेत है कि तिरुपुर में उद्योग संकट में है. निर्माताओं के आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाई है. तिरुपुर में उद्योग प्रतिनिधि हमेशा संसद में एक स्पष्ट प्रतिनिधि की अनुपस्थिति को निटवेअर निर्यात के सामने आने वाले संकट का कारण मानते हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां झुकाव स्वभाविक है.


तमिलनाडु में लोकसभा के पिछले चुनावों में बूथ पर, जहां अधिकांश मतदाता उन प्रतीकों के प्रति वफादार रहे हैं जो लंबे समय से राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर हावी रहे हैं - डीएमके का उगता सूरज और एआईएडीएमके की दो पत्तियां - बीजेपी का कमल एक दुर्लभ दृश्य रहा है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए तमिलनाडु में तीसरी पार्टी के तौर पर रास्ता खुलता नजर आ रहा है. बीजेपी के लिए अच्छा होगा कि वह तमिलनाडु में के. अन्नामलाई जैसे मजबूत राज्य नेताओं में निवेश करे और उन्हें एक लंबा मौका दे, क्योंकि दक्षिण भारत बीजेपी के लिए प्रगति का काम होगा.




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