आंदोलन कभी मरता नहीं है. हर समय और हर पल एक आंदोलन की गुंजाइश होती है लेकिन हर आंदोलन की एक जिंदगी होती है और उसे खत्म होना ही पड़ता है. अब सवाल है कि क्या किसान बिल पर चल रहे आंदोलन को खत्म करने का समय आ गया है? जिस मुद्दे पर किसान आंदोलन कर रहे थे उस पर सरकार यू टर्न लेते हुए किसान कानून वापसी बिल को संसद के दोनों सदनों में पारित करवा लिया है, राष्ट्रपति की मुहर की सिर्फ औपचारिकता रह गई है. दरअसल, जब किसान कानून बना था तो किसानों ने इस कानून के खत्म होने को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया था. पंजाब के किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहें हैं लेकिन धीरे-धीरे देश के किसान जुड़ने लगे और इस कानून को के खत्म करने के साथ ही एमएसपी लागू करने की भी मांग शुरू हो गई है.


दरअसल, किसान आंदोलन को देशव्यापी बनाने के लिए पूरे देश के किसानों के मुद्दे को जोड़ा गया. हालांकि पंजाब और हरियाणा के किसान के लिए एमएसपी बड़ा मुद्दा नहीं है. क्योंकि, देश के अन्य राज्यों की तुलना में एमएसपी सिस्टम मजबूत है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी और साथ ही साथ कहा था कि एमएसपी पर एक कमेटी गठित की जाएगी.


पीएम मोदी ने कहा कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा, इस कमेटी में केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे और एक्सपर्ट होंगे. इस घोषणा के बाद ही सरकार ने तीनों किसान बिल को वापस ले लिया है और अब सरकार जल्द ही एमएसपी पर कमेटी बनाने की घोषणा कर सकती है. इसके बाद आंदोलन कर रहे किसान संगठन में नरमी दिख रही है, पहले 26 नवंबर को प्रस्तावित संसद मार्च को स्थगित कर दिया और फिर सोमवार को सरकार ने संसद से किसान वापसी बिल पारित करवाया तो पंजाब के 32 संगठन की बैठक भी सोमवार को हुई. जिसमें बात छनकर आ रही है कि पंजाब के किसान संगठन आंदोलन खत्म करने पर विचार कर रहें हैं. किसान नेता हरमीत कादियां ने कहा- हम जीत चुके हैं. अब हमारे पास कोई बहाना नहीं है. घर वापसी पर संयुक्त किसान मोर्चा की मुहर लगनी बाकी है, अंतिम फैसला 1 दिसंबर को किसान संगठन पर लिया जा सकता है हालांकि इसमें भी एक पक्ष किसान आंदोलन खत्म करने पर विचार कर रहा है तो दूसरा पक्ष आंदोलन को जिंदा रखना चाहता है.


पंजाब के किसान क्यों आंदोलन खत्म करना चाहता है?


पंजाब के किसानों ने जब आंदोलन शुरू किया था तो मांग थी कि सरकार द्वारा पारित कानून को वापस लें. किसान के दवाब और पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर सरकार ने तीनों बिल वापस ले लिया है. पंजाब के किसानों की मांग पूरी हो गई है. दूसरी बड़ी बात ये है कि आंदोलन को देशव्यापी बनाने के लिए एमएसपी जोड़ा गया लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसान के लिए ये अहम मुद्दा नहीं क्योंकि पंजाब और हरियाणा के किसानों के फसलों की सबसे ज्यादा खरीदारी एमएसपी के जरिए होती है. हालांकि देश में ऐसी स्थिति नहीं है. अब संकट है कि किसान आंदोलन में देश के किसान जुड़े थे, वो नाराज नहीं हो इसीलिए किसान नेता फेससेविंग करने के मूड में है. तीसरा बड़ा कारण है इस आंदोलन का किसान एक साल पूरा हो गया है, वो अब थक चुके हैं और ठंढ़ भी बढ़ने वाली है. किसान आंदोलन में दूसरे राज्यों की तुलना में पंजाब और हरियाणा के किसान की भागीदारी ज्यादा थी वो अब घर लौटना चाहते हैं लेकिन जिस किसान नेता को आगे की रणनीति है  वो आंदोलन को जिंदा रखना चाहते हैं. चौथी वजह है कि पंजाब विधानसभा के चुनाव अगले साल होने वाले हैं, कुछ किसान नेता इस चुनाव में भाग्य अजमाना चाहते हैं. किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. वहीं दूसरे किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल की मंशा चुनाव लड़ने की दिख रही है. ऐसे में लगता है कि अब किसान आंदोलन ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है लेकिन सारे विषय पर पर्दा जल्दी हटनेवाला है. अगर पंजाब के किसान आंदोलन खत्म करने के मूड में हैं तो किसान आंदोलन में दो फाड़ होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.



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