गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम दिए अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने वैसे तो कई मुद्दों का जिक्र किया है लेकिन इसमें मोदी सरकार की 'प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’का उल्लेख राजनीतिक लिहाज से सबसे अहम समझा जा सकता है. वह इसलिए कि कोरोना महामारी के दौरान मार्च 2020 में शुरू की गई गरीबों को मुफ्त राशन देने की इस योजना के जरिये मोदी सरकार न सिर्फ समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंची है, बल्कि इसकी लोकप्रियता ने उसे चुनावी फायदा भी पहुंचाया है. हालांकि हमारे देश से महामारी लगभग खत्म हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस योजना का फायदा दिसम्बर 2023 तक देने का फैसला लिया है.


हालांकि लोगों के बीच काम करते हुए उनसे निरंतर संवाद स्थापित करने वाले संघ का आकलन है कि जिन करोड़ों परिवारों को इस योजना का फायदा मिला है और अब भी मिल रहा है,उनके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक ऐसे "मसीहा" की बनी है, जो सबसे मुश्किल वक्त में उनके लिए सबसे बड़े खैरख्वाह साबित हुए हैं.


पिछले पौने तीन साल में संघ से जुड़े लोगों ने एक निष्कर्ष ये भी निकाला है कि ऐसे परिवारों का बहुत बड़ा हिस्सा भले ही सीधे तौर पर बीजेपी से नहीं जुड़ा है लेकिन फिर भी उन्हें पीएम मोदी की आलोचना सुनना बर्दाश्त नहीं है. यानी देश की बहुत बड़ी गरीब आबादी में इस योजना की वजह से ही मोदी सरकार की छवि एक एंजेल यानी देवदूत वाली बन गई है.


जाहिर है कि जमीन पर काम करने वाला संघ जनता से मिले फीडबैक और अपने अनुभव को समय-समय पर सरकार के साथ साझा करता है, जिसके आधार पर ही सरकार कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेती है. संघ के कुछ वरिष्ठ लोगों का मानना है कि इस योजना को अगले साल भी जारी रखा जाना चाहिए. अगर ऐसा हुआ, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में यही योजना बीजेपी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है और कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के असर को बेअसर भी कर सकती है. इसलिए माना जा रहा है कि मोदी सरकार इसे अगले साल चुनाव होने तक बढ़ाने का फैसला ले ले, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. बता दें कि इस योजना का फायदा करीब 81 करोड़ गरीब देशवासियों को मिल रहा है.


केंद्र द्वारा इस योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अब तक 3.91 लाख करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी दी जा चुकी है और 1,118 लाख टन राशन बांटा जा चुका है. इस योजना के तहत सरकार गरीब परिवारों को 5 किलो गेहूं और चावल प्रति यूनिट के हिसाब से मुफ्त में देती है. बीते दिनों लोकसभा में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी थी कि वित्त वर्ष 2020-21 में PMGKAY को पेश करने के दौरान ही 1,13,185 करोड़ रुपये दिए गए थे, जबकि 2021-22 में 1,47,212 करोड़ रुपये और 2022-23 वित्तीय वर्ष में 1,30,600 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई थी.


वहीं, अब तक इस योजना पर 3.46 लाख करोड़ रुपये का खर्च किए जा चुके हैं. यही वजह है कि सियासी जानकार मानते हैं कि राष्ट्रपति के भाषण में खासतौर पर इस योजना के जिक्र किए जाने का राजनीतिक महत्व है, जो फिलहाल विपक्ष को समझ नहीं आएगा. लेकिन लोकसभा चुनाव होने तक इसे जारी रखने से बाजी पलट देने का विपक्ष का सपना धरा ही रह जाएगा.


गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने अपने भाषण में इस योजना का उल्लेख करते हुए कहा है कि, "यह बड़े ही संतोष का विषय है कि जो लोग हाशिए पर रह गए थे, उनका भी योजनाओं और कार्यक्रमों में समावेश किया गया है तथा कठिनाई में उनकी मदद की गई है. मार्च 2020 में घोषित ‘प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ पर अमल करते हुए, सरकार ने उस समय गरीब परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की, जब हमारे देशवासी कोविड-19 की महामारी के कारण अकस्मात उत्पन्न हुए आर्थिक व्यवधान का सामना कर रहे थे. इस सहायता की वजह से किसी को भी खाली पेट नहीं सोना पड़ा. 


गरीब परिवारों के हित को सर्वोपरि रखते हुए इस योजना की अवधि को बार-बार बढ़ाया गया तथा लगभग 81 करोड़ देशवासी लाभान्वित होते रहे. इस सहायता को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने घोषणा की है कि वर्ष 2023 के दौरान भी लाभार्थियों को उनका मासिक राशन मुफ्त में मिलेगा. इस ऐतिहासिक कदम से, सरकार ने, कमजोर वर्गों को आर्थिक विकास में शामिल करने के साथ-साथ, उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी भी ली है.


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