पिछले एक दशक में हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा चुनाव हुआ होगा, जब उसमें पाकिस्तान का नाम नहीं उछला होगा. गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी नेताओं ने पाकिस्तान का नाम जोर शोर से शायद इसीलिए उछाला है कि इससे वोटों का ध्रुवीकरण करना आसान हो जाता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो चुनाव-प्रचार के दौरान बीजेपी के लिए पाकिस्तान का नाम लेना किसी सियासी टॉनिक से कम नहीं है, जो हिंदू वोटों को गोलबंद करने में कारगर औज़ार साबित होता है.


बेशक पाकिस्तान हमारा दुश्मन है और उसकी मज़म्मत करना हर नेता का हक भी बनता है लेकिन विधानसभा का चुनाव लोगों की बुनियादी तकलीफों से जुड़े मुद्दों की बजाय अगर एक दुश्मन मुल्क के नाम को आगे रखकर जब लड़ा जाता है,तो वह ध्यान भटकाने की राजनीति ही कहलाती है. इसका एक मतलब ये भी निकलता है कि सत्तारुढ़ पार्टी अपनी नाकामियों को छुपाने और एन्टी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए जनता को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे में उलझाकर पिछले पांच सालों का हिसाब देने से बचना चाहती है.


हालांकि लोकसभा चुनाव कम्पैन में राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्दे भी छाये रहते हैं लेकिन किसी भी विधानसभा के चुनाव में तो शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली और रोजगार जैसे बुनियादी मसलों पर ही सारा जोर रहता है.इसलिये अगर बीजेपी अपने प्रचार में बार-बार पाकिस्तान का नाम ले रही है, तो साफ है कि वह सोची-समझी रणनीति के तहत साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का दांव ही खेल रही है.


दो दशक पहले 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में आग लगाने की घटना के बाद भड़की हिंसा के बाद से  गुजरात में जितने भी चुनाव हुए,उन सबमें साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का ही बोलबाला रहा है.लिहाज़ा बीजेपी इस बार भी वही प्रयोग दोहरा रही है क्योंकि पार्टी नेताओं को अहसास हो चुका है कि अब मुकाबला त्रिकोणीय है और इसमें आम आदमी पार्टी टक्कर में है. इसलिये पाकिस्तान का नाम उछालकर ही इस ध्रुवीकरण को आसान बनाया जा सकता है.


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वडोदरा में एक चुनावी रैली में पाकिस्तान का मुद्दा उछालते हुए कहा कि कांग्रेस के राज में हमारे सैनिकों के सिर काट दिया गए थे लेकिन पीएम मोदी ने पाकिस्तान में घुसकर एयर स्ट्राइक करके उसे ये संदेश दिया है की अगर तुम कुछ करोगे,तो हम छोड़ेंगे नहीं.


बता दें कि इससे पहले चुनाव प्रचार करने गुजरात पहुंचे असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने भी अपनी रैलियों में पाकिस्तान का नाम जोरशोर से उछाला था.उन्होंने अहमदाबाद के नरोदा इलाके की रैली में कहा कि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, हमने पाकिस्तान को ये अहसास करा दिया है कि अगर उसने भारत में दो बम विस्फोट किये, तो बदले में हम उसके यहां 20 विस्फ़ोट करेंगे. पाकिस्तान की करतूत पर सिर्फ मोदी ही लगाम लगा सकते हैं और बीजेपी सरकार ने ये कर दिखाया है.


लेकिन कैसी अजीब विडंबना है कि जिस मुद्दे पर केंद्र सरकार को पाकिस्तान से संवाद करके सुलझाना चाहिए, उस तरफ किसी का ध्यान नहीं है. महात्मा गांधी की जन्मस्थली पोरबंदर समुद्र किनारे बसा गुजरात का एक बड़ा इलाका है. यहां भी चुनाव में पाकिस्तान का मुद्दा छाया हुआ है लेकिन उसकी वजह अलग है. 


यहां की अर्थव्यवस्था के केंद्र में मछुआरे हैं, लेकिन इन मछुआरों के जीवन से संकट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. इनकी परेशानी की सबसे बड़ी वजह है पाकिस्तान. गलती से अगर गुजराती मछुआरों की नाव पाकिस्तान की समुद्री सीमा में घुसती है तो वहां की सेना मछुआरों को पकड़ कर जेल में डाल देती है और लाखों की नाव जब्त कर लेती है. 


मछुआरों के नेता मुकेश पंजारी के मुताबिक 'पाकिस्तान ने अभी तक हमारी 1200 से अधिक बोट पकड़ी है, जिनके छूटने की हमें कोई उम्मीद नहीं है. वहां (पाकिस्तान में) जो मछुआरे हैं उनकी संख्या 500 से ज्यादा है.'बता दें, पूरे गुजरात से 1188 नावें पाकिस्तानी नौसेना के कब्जे में हैं. इनमें से अकेले 831 नावें पोरबंदर की है. साल 2016 से 631 मछुआरे पाकिस्तानी जेलों में बंद हैं. पाकिस्तान में इन मछुआरों की जिंदगी बेहद बदतर बन चुकी है.वहां उन्हें अच्छा खाना नहीं मिलता. ने तो वे भारत में चिट्ठी भेज सकते हैं और न ही परिवार वालों से कोई बातचीत कर सकते हैं.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.