कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि उनकी पार्टी को सत्ता या प्रधानमंत्री पद में कोई दिलचस्पी नहीं है. यानी फिलहाल कांग्रेस अपने आप को प्रधानमंत्री पद के रेस से बाहर बता रही है. देश की आजादी में अगर सब कुछ न्योछावर किया तो वो कांग्रेस पार्टी है. आज देश कहीं न कहीं एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है. एक बार फिर ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने आजादी के बाद जो इंडिया बनाया था, उसको बचाने की जरूरत है. इसलिए हमने तमाम दलों के साथ मिलकर गठबंधन बनाया है.


संविधान को मानने वाले लोगों को मिलाकर संविधान की मर्यादा को कायम रखने के लिए हम लोग इकट्ठा हुए हैं. उसका नाम INDIA दिया गया है. जब देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी तो उस वक्त ये नहीं था कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा. हम लोग निस्वार्थ भाव से लड़ाई को एक अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हैं.


महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और नफरत चरम पर है. राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की 4 हजार किलोमीटर की यात्रा की और पूरे देश को समझने का प्रयास किया. देश की जरूरत ये है कि देश की सत्ता पर जो बैठे हैं, वे कहीं न कहीं आम लोगों को केंद्र बिन्दु में न रखकर खुद को ही केंद्र बिन्दु में रखे हुए हैं. देश के सामने जो समस्याएं हैं, उनसे हम सबको एक होकर लड़ाई लड़नी पड़ेगी. उसके लिए हमने जो प्रयास किया है, उसका नाम INDIA दिया गया है.


जहां तक पीएम पद के लिए रेस की बात है, तो ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है. हम चाहते तो सोनिया गांधी 2004 में ही प्रधानमंत्री बन जातीं. कांग्रेस का बलिदान देने का इतिहास रहा है. देश सेवा में इंदिरा गांधी ने अपना बलिदान दियाय अंतरराष्ट्रीय शांति में राजीव गांधी ने प्राणों की आहुति दी. इस तरह का बलिदान कांग्रेस करते आया है.


मीडिया में पीएम रेस जैसी बातें आती हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए पहला मकसद है देश को ऐसे लोगों से मुक्त कराना. उसके बाद सब लोग मिलकर तय करेंगे. जब गठबंधन का नाम ही INDIA है तो इंडिया के भले के लिए ही कुछ होगा. इंडिया के लिए निश्चित ही कुछ अच्छा सोचेंगे. हम कह सकते हैं कि समय आने पर हम सब लोग मिलकर इस पर एक अच्छा निर्णय लेंगे. जब समय आने पर देश को केंद्र बिन्दु में रखकर कोई भी सोचेगा तो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का चेहरा भी तय हो जाएगा.



एनडीए की बैठक से पता चलता है कि बीजेपी में घबराहट और बेचैनी है. जब मौसम बदलता है तो कई लोगों की तबीयत खराब हो जाती है. जिस तरह से 18 जुलाई को एनडीए के नेताओं का बयान आया, वो घबराहट और बेचैनी को ही दिखाता है. जो वंशवाद और परिवारवाद की बात करके अपने आप को राजनीति में जिंदा रखते हैं, वे अपने आपको नहीं देखते हैं.



झारखंड में आजसू से एक सांसद हैं. उनकी पत्नी विधायक हैं. कुल मिलाकर 3 विधायक और एक सांसद की पार्टी को एनडीए की बैठक में बुलाया गया. एक-एक विधायक वाली पार्टी को बुला-बुलाकर 38 पूरा किया गया. अगर वे दो और पार्टी ले आते तो 40 हो जाता और वे अली बाबा कहला सकते थे.


विपक्ष का जो गठबंधन बना है, वो बहुत सोच-विचार कर बना है. सब लोग मिलती-जुलती विचारधारा वाले लोग हैं. इसे निश्चित तौर से एक प्राकृतिक एलायंस कहेंगे. इसमें देश के कद्दावर नेता हैं. एनडीए की बैठक में कुछ ऐसे नेता थे, जिनके बारे में मीडिया के साथियों ने कहा कि अगर उनका नाम नहीं बताया जाता तो उनको जानते ही नहीं. हमारे गठबंधन के साथ ऐसा नहीं है. INDIA के लिए जो बैठक हुई, उसमें ऐसा कोई नेता नहीं था, जो अपने नाम को लेकर मोहताज हो.


उन लोगों ने सोचा कि विपक्षी गठबंधन में 26 हैं तो हम भी किसी तरह से 38 करके संख्या के आधार पर मात देने की कोशिश कर लें. हालांकि इससे कुछ होने वाला नहीं है. हमारा गठबंधन जनाधार वाले लोगों का है और ये देश की जनता को केंद्र बिंदु में रखकर हो रहा है. दूसरी तरफ बीजेपी ने प्रधानमंत्री को केंद्र बिंदु में रखा है. सभी बोले जा रहे थे कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आगे जाना है. ऐसा लग रहा था कि पहले से लिखी स्क्रिप्ट को ही एनडीए के सारे नेता बोले जा रहे हैं.


कोई किसी को जनाता नहीं था, न पहचानता था, उनको एनडीए जोड़ रही है. रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग को किस तरह से एनडीए से बाहर किया गया. ऐसे नाजुक दौर में बीजेपी ने उनको बिल्कुल किनारे कर दिया और चिराग पासवान के चाचा को अपना लिया. अब चाचा-भतीजा को लड़ाएंगे. पहले भी लड़ाया और अब फिर से लड़ाकर चाचा को बाहर करेंगे. यही महाराष्ट्र में किया. चाचा-भतीजे की लड़ाई कराई. अंग्रेजों की 'फूट करो और राज करो' की नीति अपनाकर बीजेपी अपना फायदा साधना चाहती है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ दिनों पहले भोपाल में अजित पवार, छगन भुजबल को भ्रष्टाचारी बता रहे थे. करोड़ों करोड़ की गिनती कर भ्रष्टाचारी बता रहे थे. उन सबको कुछ दिन बाद अपने साथ कर लिया. ऐसे में जब ाप भ्रष्टाचार पर भाषण देते हैं, तो आप पर ये शोभा नहीं देती है. इस तरह की हल्की बात कर प्रधानमंत्री पद की मर्यादा को कम किया जा रहा है. कर्नाटक में भी हमने देखा कि कैसे प्रधानमंत्री ने बातें की और जनता ने सबक सिखाया. इस तरह की बातें जब प्रधानमंत्री करते हैं तो इससे बीजेपी की घबराहट और बेचैनी के बारे में पता चलता है.


आप देखिए कि विपक्षी गठबंधन का INDIA नाम पर पड़ते ही देश में किस तरह का माहौल बना. प्रधानमंत्री हर बात में कहते थे..खेलो इंडिया, जीतेगा इंडिया. अब सब लोग इंडिया के साथ है. विपक्षी गठबंधन में कहीं कोई दिक्कत की बात नहीं है. लेकिन एनडीए और बीजेपी के लोगों को नाम से परेशानी हो रही है. इनसे पूछना चाहिए कि नाम से परेशानी होगी तो क्या आप इंडिया छोड़ कर छोड़े चलेंगे जाएंगे. देश को हमने आजाद कराया है, तो देश की आजादी को बचाए रखना हमारी जिम्मेदारी है.


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