नयी दिल्लीः देश में साइबर क्राइम का अपनी तरह का अनूठा मामला सामने आने के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर वो कौन-सी ताकत है जो मुस्लिम लड़कियों व महिलाओं को बदनाम कर रही है.'सुल्ली डील्स' नामक एप पर सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें बिना उनकी इजाज़त के न सिर्फ अपलोड की गईं बल्कि यह भी कहा गया कि वे नीलामी के लिए उपलब्ध हैं. दिल्ली महिला आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि 12 जुलाई तक इस मामले में एफआईआर दर्ज कर दोषियों को गिरफ़्तार किया जाये.


बताया गया है कि जिनकी तस्वीरे अपलोड की गईं,उनमें कुछ मुस्लिम महिला पत्रकार भी हैं, लिहाजा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस पर सख्त एतराज जताया और कहा कि वो इस बात से बेहद चिंतित हैं कि मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें ऑनलाइन "नीलामी के लिए" डाली गईं और सोशल मीडिया के जरिये अपमानजनक तरीके से शेयर की गईं.


गिल्ड ने अपने बयान में कहा, "गिल्ड कानून एजेंसियों के साथ-साथ राष्ट्रीय महिला आयोग से इस मुद्दे पर तत्काल एक्शन लेने और गलत काम करने वालों का पता लगाने और उन्हें दंडित करने की मांग करता है. बता दें कि सुल्ला या सुल्ली एक अपमानजनक शब्द है जिसका इस्तेमाल मुसलमानों के लिए किया जाता है. गिटहब एक होस्टिंग प्लेटफॉर्म है, जिसमें ओपन सोर्स कोड का भंडार है. इसी पर ऐप 'सुली डील्स' बनाया गया था और उस पर डील्‍स ऑफ द डे (Deals of the Day) नाम से सैकड़ों मुस्लिम लड़कियों की तस्‍वीरें इधर से उधर शेयर की जा रही थीं. 


यह सब चार जुलाई को उस वक्‍त सामने आया जब लोगों ने ट्विटर पर डील्‍स ऑफ द डे शेयर करना शुरू कर दिया.ऐसे में ट्विटर पर जिन लड़कियों की फोटो शेयर हुईं थीं,उन्‍होंने अपना सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म छोड़ना शुरू कर दिया. लिहाजा यह एक गंभीर साइबर क्राइम के रूप में सामने आया.


हालांकि  गिटहब अपने यूजर्स को व्यक्तिगत या प्रशासनिक नामों के तहत ऐप बनाने की अनुमति प्रदान करता है. यूजर्स को इन ऐप्स को गिटहब मार्केट प्लेस में साझा करने या बेचने की भी अनुमति है. लेकिन 'सुल्ली डील्स' ऐप किसने बनाया, इस पर अभी भी गिटहब की ओर से स्‍पष्‍ट बयान नहीं आया. हालांकि यह जानकारी जरूर दी गई कि इस एप को अब हटा दिया गया है.


जिन महिलाओं की तस्वीरों को शेयर किया गया,उनमें से अधिकांश दिल्ली व मुंबई की हैं और ज्यादातर नौकरी पेशा हैं. लिहाजा ये माना जा रहा है कि उन्हें बदनाम करने के साथ ही एक मकसद ये  भी है कि उनकी आवाज को भी चुप कराया जाए.


पेशे से पायलट, हना मोहसिन खान ने भी इस मामले को लेकर दिल्ली पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है. उन्होंने ट्विटर पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा, "मैं इन कायरों को उनके किए की सजा दिलाने में दृढ़ हूं. बार-बार इन अपराधों को नहीं झेला जाएगा. मेरा अकाउंट नॉन-पॉलिटिकल है और मुझे मेरे धर्म और जेंडर को लेकर टारगेट किया गया."


ऐसी ही एक महिला अपना नाम गोपनीय रखते हुए कहती हैं कि महिला को ट्रोल करना सोशल मीडिया पर लोगों के लिए सबसे आसान काम है.हालांकि ये ट्रोलिंग ज़्यादातर पर्सनल होती है.लेकिन मुस्लिम महिलाओं को परेशान करने के लिए नीचता की सारी हदें तोड़ दी जाती हैं.ये इतना ख़तरनाक है कि कभी-कभी मैं ये सोचने लगती हूँ कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर क्यों रहूँ, क्या मुझे बोलना- लिखना छोड़ देना चाहिए?


हमें जो गालियाँ दी जाती हैं वो जेंडर पर हमला तो है ही लेकिन इस्लामोफ़ोबिक भी होती है.'' कुछ यही हुआ बीते रविवार और सोमवार को जब कई मुस्लिम महिलाओं की सोशल मीडिया तस्वीर के साथ एक ओपेन-सोर्स ऐप बनाया गया. इस ऐप का नाम था- 'सुल्ली फॉर सेल'.


इस ऐप में इस्तेमाल की गई मुस्लिम महिलाओं की जानकारी ट्विटर से ली गई थी. इसमें तकरीबन 80 से ज़्यादा महिलाओं की तस्वीर, उनके नाम और ट्विटर हैंडल दिए गए थे.इस ऐप में सबसे ऊपर पर लिखा था- 'फाइंड योर सुल्ली डील' .इस पर क्लिक करने पर एक मुस्लिम महिला की तस्वीर, नाम और ट्विटर हैंडल की जानकारी यूज़र से साझा की जा रही थी.


अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर यह सब कौन व किसके इशारे पर कर रहा है और क्या सरकार इन ताकतों को गिरफ्त में लेने के लिये जांच एजेंसियों को फ्री हैंड देगी? 



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)



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