कहते हैं कि राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन. शायद इसलिए कि वक़्त के बदलते हर पल के साथ ही राजनीति भी बदलती है और वो एक नई दिशा तलाशती है. इसे हम अपने लोकतंत्र की खूबसूरती भी कह सकते हैं और राजनेताओं का सियासी स्वार्थ भी. लेकिन बावजूद इसके अगर राजनीति एक नई शक्ल लेकर देश के अवाम का ईमानदारी से कोई भला करना चाहती है, तो इस पर शायद किसी को भी ऐतराज नहीं होगा. लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि राहुल गांधी के मामले ने विपक्षी खेमे में उठने वाली अलग-अलग आवाज़ों को खामोश करते हुए उन्हें सिर्फ़ एक ही धुरी पर लाकर खड़ा कर दिया है कि मौजूदा सरकार को बाहर का रास्ता आखिर कैसे दिखाया जाये.


हफ्ता भर पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि कांग्रेस से जबरदस्त खुंदक खाई हुईं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुधवार को इतना बड़ा ऐलान करके राजनीति की दिशा को पलट देने के लिये इस अंदाज में आगे आ जाएंगी. उन्होंने बीजेपी सरकार को हटाने के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट होने के वास्ते जिस तेवर भरे अंदाज में अपील की है. वह बीजेपी खेमे के लिए भी बेहद चौंकाने वाली है. इसलिए कि बीते दिनों सागरदिघी विधानसभा सीट पर हुआ उप चुनाव हारने के बाद ममता ने कांग्रेस से दूरी बनाते हुए ये ऐलान कर दिया था कि उनकी पार्टी टीएमसी अगला लोकसभा चुनाव अकेले अपने दम पर ही लड़ेगी. बताते हैं कि ममता के इस ऐलान के बाद बीजेपी की बंगाल इकाई के मुख्यालय में खुशियों भरे लड्डुओं की बौछार इसलिये आ गई थी कि वे बीजेपी के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रही हैं.


लेकिन ममता ने बुधवार को केंद्र सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये के विरोध में हुई कोलकाता की रैली में जिस ताकत के साथ सारे दलों को एकजुट होने की अपील की है. उसने बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर दिया है. उन्होंने बहुत सारी बातें कहीं लेकिन सारा फोकस इसी पर था कि 2024 में लोकसभा का चुनाव आम जनता और बीजेपी (BJP) के बीच होगा. बंगाल की राजनीति को बरसों से कवर कर रहे पत्रकार कहते हैं कि सालों बाद ममता का ये रौद्र रुप देखने को मिला है, जब उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ इतने तीखे तेवरों में हमला बोला है.


ममता ने कहा कि, "बीजेपी का अहंकार चकनाचूर करने के लिए समूचे विपक्ष को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी. देश को बचाने के लिए दुशासन Dushshyashan से छुटकारा पाना होगा और लोकतंत्र व गरीबों की रक्षा के लिए दुर्योधन को हटाना ही होगा." वे यहीं पर नहीं रुकीं और खुद उनकी ही पार्टी के नेताओं को एक पल के लिए लगा कि उनकी नेता ने अपनी राजनीतिक लाइन को अचानक कैसे बदल दिया है. लेकिन बंगाल के राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इतने सालों में ममता ने अपनी इमेज एक शेरनी वाली बना ली है,जो दहाड़ते वक़्त आगा-पीछा नहीं देखती है और लोग उनकी इसी छवि के कायल भी हैं.


बताते हैं कि कोलकाता के लोगों को अरसे बाद ममता की ऐसी दहाड़ सुनने-देखने को मिली है जो कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. ममता ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के इस नए भारत New India में विपक्षी नेता ही बीजेपी का मुख्य निशाना हैं. जबकि आपराधिक पृष्ठभूमि रखने वाले बीजेपी नेता आज केंद्र सरकार में मंत्री बने बैठे हैं. लेकिन विपक्षी नेताओं को अपने भाषणों को लेकर संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा रहा है. अपने संवैधानिक लोकतंत्र को आज हम इतना नीचे गिरते हुए देख रहे हैं, जिसकी कल्पना शायद किसी ने भी नहीं की होगी.


उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी को संसद से अयोग्य ठहराये जाने के बाद भी ममता ने अपने ट्वीट में भी यही लिखा था. जाहिर है कि राहुल गांधी को मिली दो साल की सजा और उसके बाद संसद से अयोग्य घोषित किये जाने के फैसले ने ही ममता को अपना सियासी स्टैंड बदलने पर मजबूर किया है. बीते सोमवार को सरकार के खिलाफ रणनीति तय करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा संसद में बुलाई गई बैठक में टीएमसी नेताओं ने हिस्सा लेकर ये संकेत दे दिया था कि ममता भी इस मुहिम में उनके साथ है. टीएमसी के सांसद काले कपड़े पहनकर विरोध जताने में भी कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई दिये थे.


हालांकि सियासी जानकार मानते हैं कि ममता का ये रुख सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि समूचे विपक्ष के लिए 'सोने में सुहागा' वाली स्थिति साबित हो सकता है. लेकिन इसके लिये जरुरी है कि सबसे बड़ी मुख्य विपक्षी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस अपने अहंकार को त्याग दे. तभी 2024 में विपक्ष इस हैसियत में होगा कि वह बीजेपी को बराबरी की टक्कर दे सके.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)