पहले चरण के मतदान से ठीक पहले रामनवमी के दिन ही बंगाल में हिंसा हुई है. मुर्शिदाबाद में तो शोभायात्रा पर बम भी फेंके गए हैं. भाजपा जहां इस हिंसा के लिए ममता बनर्जी की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है, वहीं ममता बनर्जी ने भाजपा के माथे ठीकरा फोड़ दिया है. हालांकि, संवेदनशील बंगाल में इस हिंसा ने बहुतेरे सवाल उठा दिए हैं. 


रामनवमी की हिंसा 


पश्चिम बंगाल में जिस तरह से आशंका जतायी जा रही थी, रामनवमी की हिंसा को लेकर वह सच साबित हुआ है. यह डरावना भी है, दुखद भी है. जिस तरह के दृश्य देखने को मिले हैं, उससे बिल्कुल साफ तौर पर लगता है कि वहां की सरकार के पास इसे रोकने की क्षमता नहीं थी. ममता बनर्जी दो दिनों पहले से चिल्ला रही थीं कि दंगा मत करना, बच कर रहना. हालांकि, वह भाषा मुख्यमंत्री की नहीं होनी चाहिए. उनको तो डर था कि अगर दंगा हो गया तो भाजपा उसका फायदा उठाएगी. मुख्यमंत्री की भाषा होनी चाहिए कि रामनवमी की शोभायात्रा वैसे ही निकलेगी जैसी निकलनी चाहिए औऱ उसके साथ अगर किसी ने भी कुछ गलत किया तो उसके साथ सख्ती से निबटा जाएगा. उनकी भाषा में चेतावनी होनी चाहिए. पिछले वर्ष भी हावड़ा, हुगली और उत्तरी दिनाजपुर में शोभायात्राओं पर हमले हुए थे. खासकर, हावड़ा में तो जैसे हमला हुआ उससे दिखा था कि दोनों तरफ से जैसे घेर दिया गया और पूरी तैयारी के साथ हमला हुआ. उसके बाद पुलिस ने कार्रवाई की और कई को गिरफ्तार भी किया. हालांकि, बाद में पता चला कि गिरफ्तार लोगों में दंगाइयों से अधिक तो वे लोग थे, जिनके ऊपर दंगे की मार पड़ी थी. इसके बाद फिर कलकत्ता हाईकोर्ट ने एनआइए को निर्देश दिया कि जांच करे और आज वह जांच हो रही है.


प्रशासन की विफलता


हालांकि, मुर्शिदाबाद की घटना के बाद फिर भाजपा के शुभेंदु अधिकारी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर एनआइए से फिर से जांच करवाने की मांग की है. भाजपा के लोग जा रहे हैं और वहां एफआईआर तक दर्ज नहीं हो रही है. थानेदार एफआईआर लेने के लिए तैयार नहीं है और फिर झड़प होती है. अगर कोई घटना हुई है और एफआईआर नहीं ली जा रही है, तो फिर समस्या है. जो घटना हुई है, वह शक्तिपुर और माणिक विहार और मुर्शिदाबाद के रेवतीनगर में घटी बताई जा रही है. उसमें बम चलते हुए दिख रहे हैं. तो, जो लोग शोभायात्रा में हैं, वो तो नहीं चलाएंगे न, क्योंकि उनको पता है कि दंगे के बाद, हंगामें के बाद स्थिति बिगड़ेगी. फिर, उसमें तो बच्चे, बूढ़े सभी रहते हैं. कई ने उपवास किया होता है. पूजन-आऱाधना का दिन होता है, तो भक्ति का भाव होता है. उसमें कभी ये नहीं होता है कि हमले किए जाएंगे. शस्त्रों की परंपरा हमारे यहां नहीं है. हम शस्त्रों का पूजन करते हैं, शस्त्र लेकर भी चलते हैं, लेकिन उसका रोजाना इस्तेमाल नहीं होता है. अनावश्यक रूप से, अकारण, अस्त्र से किसी को डराना-धमकाना भी उचित नहीं है, उसकी भी आज्ञा नहीं है.


शोभायात्रा से है दिक्कत


अभी एक बेंगलुरू की भी घटना दिख रही है. उसमें कुछ युवक गाड़ी से जा रहे हैं, वे जय श्रीराम का घोष करते हैं, तो उनको कुछ युवक (दूसरे समुदाय के) कहते हैं कि जय श्रीराम नहीं कहो. फिर, जब वे कहते हैं कि हम तो नहीं रोकते, तो वे कहते हैं कि हम तो रोकते हैं. हालांकि, कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन ये जो समुदाय विशेष के कुछ लोगों के भीतर भाव कुछ राजनीतिक दलों ने डाला है, जो इस्लाम के नाम पर नफरत लादते हैं, वह गलत है. आम मुस्लिमों को इससे कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन हमले अगर उसी समुदाय से होते हैं तो उनको बताना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है? पिछले कुछ वर्षों से यह पैटर्न सा बनता जा रहा है. 2022-23 में रामनवमी, गुजरात में, मध्य प्रदेश में, हनुमान जयंती पर हरेक जगह शोभायात्रा पर हमले हुए हैं. छत से पत्थर चलने लगते हैं. दिल्ली में तो काफी बड़े हमले हुए हैं. बम कहां से आते हैं, पत्थर कहां से आते हैं, अगर प्रशासन इन सबको जांच कर पहले ही हटा दे, तो ऐसे हमले शायद न हों. अधीर रंजन जी मुर्शिदाबाद गए थे और उनके खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं ने नारे लगाए हैं. अगर अधीर रंजन जी कह रहे हैं कि वह सरकार के साथ नहीं हैं, तो उनको भी इसकी जांच की मांग प्रशासन से करनी चाहिए. अगर भाजपा ने हमले करवाए हैं, तो टीएमसी की सरकार है, लेकिन केवल नारे लगाना और आरोप लगाना काफी नहीं है. यह देश के लिए खतरनाक बात है. हर समुदाय को अपनी धार्मिक गतिविधि का अधिकार है और राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह पूरी सुरक्षा औऱ व्यवस्था मुहैया करा दे. जिनकी शोभायात्राएं निकलती हैं, उनका रूट तो पुलिस तय करती है, इसलिए लोगों को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि अपने मन से कोई निकाल देता है. इसलिए, इसके बाद सुरक्षा मुहैया कराना पुलिस की जिम्मेदारी है. हालांकि, अभी तक जो भी मामला आया है, उसमें शोभायात्रा के अंदर से किसी गड़बड़ी की बात नहीं दिखी है. फिर, पुलिस पर भी सवाल है. आखिर, वे कर क्या रहे थे, उन्होंने सुरक्षा में ऐसी ढील क्यों बरती? 


यह सांप्रदायिकता का विषय नहीं है. यह मुस्लिम वोटों के लिए किया गया काम है. पहले सीपीएम ऐसा ही करती थी, आज ममता बनर्जी ऐसा कर रही है. उनमें इतना नैतिक बल नहीं है कि वह खड़ी हो जाएं औऱ दंगों को रुकवा दें, बल्कि बाकी जगह पर तो वह खड़ी हो जाती हैं, एनआइए के खिलाफ धरने के लिए तैयार हो जाती हैं. चुनाव में अगर वोट डालने वाले लोगों के घर जला दिए जाते हैं, हत्या होती हैं, और अगर माना जाता है कि वह एक खास पार्टी के विरोधी लोगों की हो रही है, तो ऐसा वातावरण बना दिया गया है और जो लिबरल मुस्लिम हैं, उनको चुप रहना पड़ता है. तनाव कम करने की दृष्टि से जो कदम उठने चाहिए थे, वह भी अभी तक पश्चिम बंगाल सरकार ने नहीं उठाए हैं. 


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