विनेश फोगाट जैसे लेवल का कोई खिलाड़ी जब कोई बात बोलता है तो ये अतिशयोक्ति नहीं है. इसमें ये सोचना ही नहीं है कि उसमें कोई बात ग़लत होगी या सच. 
खिलाड़ी बहुत मुश्किल से बनते हैं. खिलाड़ी सिर्फ खुद स्ट्रगल नहीं करता है, उसका पूरा परिवार स्ट्रगल करता है. खिलाड़ी को बनाने के लिए उसके परिवार के कई लोगों का संघर्ष जुड़ा होता है. एक खिलाड़ी को बनाने के लिए परिवार का एक-एक इंसान बहुत मेहनता और त्याग करता है. इस लेवल पर पहुंचकर जब खिलाड़ी ऐसी हरकतों का शिकार होता है तो ये बहुत ही दु:ख की बात है. इसके लिए दु:ख बहुत छोटा शब्द है. मुझे अंदर से तकलीफ हो रही है. बोलने में भी ये शर्म की बात है.


मानसिक रूप से बीमार हैं वैसे लोग


जो इस तरह की घिनौनी हरकत करते हैं, उन्हें शर्म से डूब मर जाना चाहिए. मेरा मानना है कि उनके अंदर इंसानियत है ही नहीं, वो जिंदा ही नहीं है. मानसिक रूप से बीमार है और बीमार मानसिकता के लोगों का या तो हॉस्पिटल में इलाज होना चाहिए या ऐसे लोगों को जेल में होना चाहिए. मेरे पास ऐसे लोगों के लिए ये दो ही ऑप्शन हैं.



कार्रवाई की जगह मजे लेते हैं लोग


बेटियों की जिस तरह से परवरिश होनी चाहिए और जिस तरह की परवरिश होती है, इनमें जमीन-आसमां का फर्क है. हमारे हिन्दुस्तान को सोने की चिड़िया कहा जाता है, लेकिन यहां बेटियों के साथ हमेशा ही दोहरा मानक अपनाया जाता है. हकीकत कुछ और ही है. लड़कियों के लिए दोयम दर्जा पहले से ही निर्धारित किया हुआ है. तभी इस तरह की हरकतें हो रही हैं. वरना ऐसे लोगों को तो डर लगना चाहिए. उनकी सोच में भी वो डर होना चाहिए कि अगर हमने ऐसा सोचा या कहीं गलती से हमसे ऐसा कुछ हो गया तो हमारा जीवन नरक बन जायेगा. लेकिन ऐसी सोच कब बनेगी. ये तब होगा जब हम कार्रवाई करेंगे. लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं कर मजे लिया जाता है.


प्रूफ के लिए खिलाड़ी को ही क्यों बोला जाता है?


बहुत ही दु:ख की बात है की हमारे यहां शिकायत करने पर महिला खिलाड़ी को प्रूफ करने के लिए बोला जाता है कि क्या-क्या तुम्हारे साथ हुआ ? मतलब जितनी बार आप उस खिलाड़ी से सवाल करेंगे, इसका मतलब उतनी ही बार आप उसे फिर से उसी प्रताड़ना में भेज रहे हैं. फिर से आप उसको उसी दु:खदायी स्थिति में वापस डाल रहे हैं. जितनी बार आप सवाल करेंगे, उतनी बार आप उसका एक हिस्सा तोड़ेंगे. हर बार उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाएंगे. उसके स्वाभिमान को चोटिल करेंगे. इंडिया टीम में खेलने के बाद भी जब सोना चौधरी बोलती है कि ग़लत हो रहा है, तो क्या उसको फिर प्रूफ करने की जरुरत होनी चाहिए. विनेश फोगाट बोलती है कि ग़लत हो रहा है, तो क्या उसको प्रूफ करने की जरुरत होनी चाहिए. हम देश के लिए खेल चुके हैं, देश के लिए खुद को प्रूफ कर चुके हैं, उसके बावजूद भी ऐसी शर्मनाक हरकतों के लिए भी हमें प्रूफ देना होगा, तो शर्म हमें नहीं, उन लोगों को आनी चाहिए जो ग़लत कर रहे हैं या जो ग़लत चीजों पर भी कदम नहीं उठाते हैं.


पैरेंट्स को भरोसा दिलाना मुश्किल


हरियाणा में फुटबॉल की टीम नहीं थी, मुझे बोल दिया जाता था कि तुम्हें प्रैक्टिस तब करवाएंगे, जब टीम होगी. मैं पैरेंट्स के पास जाती थी लड़कियों को लाने तो, वे बोलते थे कि हम किसी पर भी भरोसा नहीं करेंगे. मैं हाथ जोड़-जोड़कर उनके पैरेंट्स को बोलती थी कि लड़कियां बहुत अच्छा खेलती हैं. वो खेलना चाहती थीं, लेकिन उनके घर वाले परमिशन नहीं देते थे. फुटबॉल के लिए बहुत मुश्किल से खिलाड़ी मिलते थे. मुझे फुटबॉल का जुनून था. इस जुनून की वजह से ही मैं मेहनत कर टीम बनाती थी.  मैं उस वक्त पैरेंट्स को बोलती थी कि आप अपने बेटियों को खेलने दीजिए. उसके साथ कुछ नहीं होने दूंगा और जो भी ग़लत करने की कोशिश करेगा तो मैं सोना चौधरी बीच में मजबूती से खड़ी रहूंगी. मैंने वैसा ही किया भी.


खिलाड़ी महत्वपूर्ण हैं, ऑफिसियल्स नहीं


चाहे स्टेट या नेशनल टूर्नामेंट हो, खेल संघ से जुड़े अधिकारियों के साथ उनके रिश्तेदारों को भी हवाई टिकट और रहने की अच्छी जगह मिल जाती है, इनकी औकात इतनी ही है. मेरा तो यहीं सवाल है कि ऐसे लोगों को खेल फेडरेशन में रखा ही क्यों जाता है. ग़लत काम करने वाले ऐसे लोगों को उठाकर खेल फेडरेशन से बाहर फेंक देना चाहिए. ये उसी वक्त कर देना चाहिए, जब कोई नामी-गिरामी खिलाड़ी बोलता है कि उसके साथ ग़लत हुआ. ऐसे मामलों में नो इन्क्वायरी, नो इनवेस्टीगेशन, तुरंत वैसे लोगों को बाहर निकाल देना चाहिए. जिस लेवल पर जाकर खिलाड़ी आरोप लगा रहा है, वहां पहुंचने के लिए खिलाड़ी ने खुद को तपाया है.


'आवाज उठाई तो कैरेक्टर पर लगाए लांछन'


ऐसे आरोप किसी लालच में आकर नहीं लगाए जाते. चाहे किताब हो या अलग-अलग जगह जाकर दी गई स्पीच, या फिर टीवी इंटरव्यू, मैंने हर जगह ये बात उठाई. जब मैंने ये बात उठाई तो कार्रवाई की जगह मेरे निजी जीवन पर ही लांछन लगाए गए. मेरे ही कैरेक्टर पर सवाल खड़े किए जाने लगे. सबसे अहम मुद्दा है कि खिलाड़ी महत्वपूर्ण है या ऑफिसियल. ऑफिसिलय तो आते-जाते रहेंगे. ये ग़लत कर रहे हैं, तो ऐसे मामलों में तो जांच की भी जरुरत नहीं है, तत्काल कार्रवाई करते हुए इन लोगों को बाहर निकाल देना चाहिए. खिलाड़ी का ख्याल हर हाल में रखा जाना चाहिए. खिलाड़ी देश के लिए खेलता है और आगे भी खेलेगा. मेरा मानना है कि खिलाड़ी कभी गलत नहीं हो सकते. खिलाड़ियों से ग़लत बर्ताव करने वाले लोगों को तो इंडिया में रहने के लिए भी जगह नहीं मिलनी चाहिए.  ये देश के भी नहीं है. जो अपने देश की बच्चियों को लूटकर खा सकता है, उनपर भरोसा किया ही नहीं जाना चाहिए. खिलाड़ियों की ऐसी शिकायतों पर तुरंत एक्शन होना चाहिए.


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