लोकसभा चुनाव के लिए अलग-अलग चरणों में वोटिंग का दौर जारी है. जुबानी हमलों के बीच देशभर में सियासी तपिश का एहसास किया जा रहा है. सत्ताधारी एनडीए ने जहां एक तरफ जहां इस चुनाव में पहले करप्शन और परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया तो वहीं अब वे कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर उस पर निशाना साध रही है. जबकि, कांग्रेस एनडीए सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाती है. 


इन सबके बीच, हाल में ही पीएम मोदी ने पूर्व पीएम मनमोहन के एक बयान देते हुए कहा कि उनका कहना था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है. उसके बाद कई काट प्रस्तुत किए गए. हर बार चुनावों में बात मुसलमानों के तुष्टिकरण की होती है. लेकिन इसको समझने की जरूरत है. मुसलमानों की आखिर सामाजिक, आर्थिक स्थिति क्या है.


देशभर में चढ़ा सियासी पारा 


यूपीए के दूसरे कालखंड की सरकार के समय मुसलमानों से जुड़ी दो रिपोर्ट सामने आई. पहली सच्चर कमेटी और दूसरी है रंगनाथ मिश्रा कमिशन की रिपोर्ट. रंगनाथ मिश्रा कमिशन के रिपोर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी बहस जारी है. केंद्र सरकार और PIL दर्ज कराने के बीच ये मामला चल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, मुसलमानों को या फिर कहें तो हिंदू, बौद्ध और ईसाईयों को छोड़कर जो माइनरिटी है क्या उनको एससी, एसटी श्रेणी में रखते हुए आरक्षण दी जा सकती है या दिया जाना चाहिए.


आरक्षण की बात हो रही है तो उसमें ये भी बात सामने आई है कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो ओबीसी के अंतर्गत लाभ ले रहा है. करगिल और लक्ष्यद्वीप जैसे जगहों पर मुसलमान एसटी आरक्षण का भी लाभ ले रहा है. अभी हाल में EWS का जो 10% का आरक्षण आया है उसका भी मुसलमान वर्ग आरक्षण का लाभ ले रहा है. सारा मामला रंगनाथ मिश्रा कमिशन के दस प्रतिशत के आरक्षण और एससी समुदाय के आरक्षण को लेकर फंसा हुआ है. ये तो टेक्निकल बातें है. राजनीतिक तौर पर देखें तो 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान को लेकर तब और अब भी पलटवार किया जाता है कि देश के पहले संसाधन पर हक मुसलमानों का होना चाहिए.



लेकिन अगर पूरा क्लिप देखा जाए तो उसमें कहा गया है कि देश के संसाधनों पर पहला हक महिला, एससी,एसटी और ओबीसी के बाद मुसलमानों का नाम लिया था. लेकिन सिर्फ एक बात को लेकर सवाल उठता रहा है. इस पर पहले ही पक्ष-विपक्ष में बात हो चुकी है. पीएम मोदी ने भीलवाड़ा के एक जनसभा में जिस तरह से ये बात कही, ये सीधे तौर पर राजनीति में फायदा लेने वाला एक सीधे तौर पर बयान है. आमतौर पर सभी राजनेता चुनाव के दौरान ऐसा करते रहे हैं.


कांग्रेस पर तुष्टिकरण का आरोप


कांग्रेस पर तुष्टिकरण का जो आरोप लगता आ रहा है, इसको लेकर कमिशन और आयोग की रिपोर्ट क्यों ऐसा कहता है कि 65 साल के बाद भी मुस्लिमों की हालत हिंदुओं और अन्य के प्रति काफी बदतर की स्थिति है. मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति काफी दयनीय है. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ये कहती है कि उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों में उनकी स्थिति काफी दयनीय है. एक विशेष पार्टी की ओर से पप्पू पंचर वाला और अन्य नाम की संज्ञा दी जाती है.


आखिरकार क्यों ऐसा बोला जाता है कि पंचर और बिरयानी का काम मुसलमान ना करे तो उसके यहां भुखमरी की स्थिति आ जाएगी. तुष्टिकरण पॉलीटिकल तुष्टिकरण हो सकता है, जिस तरह से राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था. इस तरह के तुष्टिकरण होते रहे हैं. उसी प्रकार भाजपा ने भी एससी-एसटी पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एससी समुदाय के दबाव में आकर पलट दिया था. ऐसे में ओबीसी और सवर्ण जाति के लोग कह सकते हैं कि उनके साथ भाजपा ने तुष्टिकरण किया है. देखा जाए तो पॉलिटिकल मजबूरी सभी की होती है लेकिन उससे किसी एक कम्युनिटी का भला हो जाता हो, ऐसा अभी तक देखने को नहीं मिला है. 


ट्रायबल सब प्लान के पैसे का गलत उपयोग 


2006 में देश के संसाधनों पर पहला हक सिर्फ मुसलमानों ही नहीं बल्कि महिलाओं, एससी-एसटी का होना चाहिए, ऐसा मनमोहन सिंह ने कहा था. लेकिन, मनमोहन सिंह की सरकार ने भी ऐसा नहीं किया. 2006 से 2014 तक मनमोहन सिंह और 2014 से 2018 तक पीएम नरेंद्र मोदी रहे हैं. दोनों के समय में ट्रायबल सब प्लान के पैसे का हिसाब जब मांगा गया था. पता चला कि उस पैसे को माइनिंग की जगह तलाशने, मैपिंग करने में खर्च किया गया, जबकि इस योजना के अंतर्गत इस प्लान में सभी मंत्रालय 5 से 10 प्रतिशत पैसा देते हैं.


जिन क्षेत्रों में माइनिंग का काम होता है, उन क्षेत्रों के लोगों को पुर्नवास के लिए पैसे दिए जाते हैं. मनमोहन सिंह ट्रायबल एसटी का भला नहीं कर पाए, ऐसे में मुसलमानों का वो क्या भला कर सकते थे. जबकि देश में वे काफी समय तक पीएम रहे. हालांकि, अभी पॉलिटिकल परसेप्शन की बात है तो वो चुनाव है और ऐसी बातें होती रहेंगी.


समाज के मुख्यधारा से मुसलमानों को जुड़ना होगा  


मुसलमानों की बेहतरी की बात करें तो कोई अचानक से ऐसा नहीं कर सकता. जब तक सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्तर पर उनका विकास नहीं हो पाता तो उनका विकास संभव नहीं है. ये बात सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि हर कम्युनिटी के लिए है. इसके लिए राजनीति में आना ही पड़ता है. मुसलमान काफी लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहा या क्षेत्रीय पार्टियों के साथ रहा है. एक तरह से खुलकर बीजेपी की मुखालफत भी करते रहे हैं. प्रैक्टिकल वोट के आरोप लगते रहे हैं. ओवैसी जैसे लोग रहनुमा बनकर आते रहे हैं.


लेकिन कहीं न कहीं वो भी अपनी ही राजनीति को सही करने में लग जाते हैं. अब मुसलमानों को समझना पड़ेगा कि उनको उनका अधिकार चाहिए, तो उसके लिए सरकार में जो भी है उसको हटाने की बजाए उससे अधिकार लेने का काम करना चाहिए. सरकार से उसे हटाने की स्ट्रैटजी के काम करने की बजाए उससे कैसे अपने अधिकार लें, इस पर काम करने की जरूरत है.


लोकतंत्र में सरकार बदलने का प्रावधान है ये सही है, लेकिन अगर कोई सरकार लंबे समय तक सरकार में है तो ऐसे में हाथ पर हाथ धरकर आइसोलेशन में जाकर नहीं रह सकते. समाज के मुख्य धारा में आकर मुसलमानों को जुड़ना चाहिए. तुष्टीकरण के नाम पर सिर्फ ठगा गया है.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.