Kanpur Road Accident: उत्तर प्रदेश के कानपुर (Kanpur) में श्रद्धालुओं से भरी हुई ट्रैक्टर-ट्रॉली पलट (Tractor Trolley Accident) जाने से जिन 26 लोगों की मौत हुई है, वो सरकार के मुंह पर ऐसा तमाचा है जो बताता है कि प्रदेश में प्रशासन किस हद तक बेपरवाह बना हुआ है. महज़ तीन दिन के भीतर ठीक इसी तरह के दो हादसों में 37 लोग जान गंवा चुके हैं, लेकिन हैरानी तो ये है कि चार दिन पहले राजधानी लखनऊ में हुए ऐसे ही हादसे में 10 लोगों की मौत के बाद भी सरकार को होश नहीं आया कि ऐसी ट्रैक्टर-ट्रॉली पर लोगों के सफर करने पर न सिर्फ पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए, बल्कि इसका पूरे सूबे में कड़ाई से पालन भी होना चाहिए. 


अगर योगी सरकार ने लखनऊ की घटना से कोई सबक लेते हुए उस पर कड़ाई से पालन करने का आदेश दिया होता तो शनिवार को कानपुर में हुआ हादसा शायद होता भी नहीं. लोगों की भक्ति और श्रद्धा अपनी जगह पर है, जिसे मानने और अपनाने से कोई इनकार नहीं करता, लेकिन किसी भी जागरुक सरकार का पहला फ़र्ज़ ये बनता है कि वे अपने नियमों के जरिये ये भी ख्याल रखे कि ऐसी किसी भी तरह की यात्रा में जाने वाले श्रद्धालु किसी दुर्घटना का शिकार न हो जाएं.


बेशक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक संन्यासी होने के साथ ही धर्म की पताका लहराने वाले किसी महानायक से कम नहीं हैं, लेकिन सवाल उठता है कि उनकी सरकार का ऐसा कौन-सा कानून है, जो एक साथ 50-60 लोगों को किसी ट्रैक्टर-ट्रॉली में दूर तक यात्रा करने की इजाज़त देता है? अगर, ऐसा नहीं है तो फिर लखनऊ के हादसे के बाद ऐसे ट्रैक्टर को कानपुर की सड़कों पर जाने और फिर वापस लौटने की इजाज़त आखिर किसने और क्यों दी? 


हम नहीं जानते कि इसके पीछे कुछ नोटों से अपनी जेब गरम करने का लालच था या फिर कोई राजनीतिक दबाव लेकिन सही मायने में इन 26 लोगों के मारे जाने का असली गुनहगार वहां का स्थानीय प्रशासन है. जाहिर है कि योगी सरकार इस दुर्घटना की जांच कराएगी, जो कि एक तरह का ऑय वाश ही होगा. होना तो ये चाहिए कि इस हादसे की वजह बनने वाले तमाम अधिकारियों को उनके पद से हटाकर उनके ख़िलाफ़ गैर इरादतन हत्या करने की कानूनी कार्रवाई की जाये.


दरअसल, सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि कमोबेश हर हिंदीभाषी राज्य में ऐसा हर साल देखने को मिलता है. नवरात्र के दिनों में हर किसी गरीब भक्त की ये कामना रहती है कि वे उस देवी के दर्शन कर सकें, जहां अपने खर्च पर जाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिये, खासकर उत्तरप्रदेश के देहात में रहने वाले लोग सबसे सस्ते साधन यानी ट्रैक्टर-ट्राली को ही इसका जरिया बनाते हैं या फिर उस गांव का कोई नेतानुमा व्यक्ति ये पुण्य कमाने के लिए अपने खर्च पर उनकी इस यात्रा का इंतजाम कर देता है.


ये यात्रा अक्सर जोखिम भरी ही रहती है क्योंकि आमतौर पर ऐसे ट्रैक्टर चलाने वाले ड्राइवर बेहद लापरवाह होते हैं और उन्हें ये भी पता होता है कि हर चुंगी-नाके पर वे ये कहते हुए आगे बढ़ जाएंगे कि ये सब देवी के दर्शन करने के लिए फलां स्थान पर जा रहे हैं.यूपी के मौजूदा हालात को देखते हुए किसपुलिस वाले कि ये हिम्मत नहीं कि वह उनको रोक सके. दरअसल, कानपुर के रास्ते हुए इस हादसे में 26 लोगों की मौत के अलावा दो दर्जन से भी ज्यादा लोग घायल हुए हैं.


ये सभी लोग नवरात्र के अवसर पर उन्नाव के चंद्रिका देवी मंदिर से दर्शन करके कोरथा गांव लौट रहे थे. जान गंवाने वालों में 14 बच्चे और 13 महिलाएं बताईं जा रही हैं. 
अब आप इसे देवी का कोई प्रकोप समझें या फिर संयोग, लेकिन सच तो ये है कि चार दिन पहले लखनऊ में भी ऐसी ही घटना हुई थी, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी. वहां भी ट्रैक्टर ट्रॉली तालाब में गिर गई थी. बताते हैं कि लखनऊ में ट्रैक्टर ट्रॉली से जो हादसा हुआ था उसमें भी लोग चंद्रिका देवी के दर्शन करने ही जा रहे थे. इसी दौरान ट्रैक्टर-ट्रॉली तालाब में पलट गई थी.


ये घटना इटौंजा के कुम्हरावां रोड पर गद्दीनपुरवा के पास हुई थी, उस हादसे में भी जान गंवाने वालों के साथ ही 12 लोग भी घायल हो गए थे. हालांकि कानपुर देहात की इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण एम्बुलेंस देरी से पहुंची. अगर एम्बुलेंस सही समय पर पहुंच जाती तो कई लोगों की जान बच सकती थी. बताया जा रहा है कि ट्रैक्टर काफी तेजी से चल रहा था जो कि अनियंत्रित होकर पलट गया और पानी से भरे खेत में जा गिरा. माना जा रहा है कि कुछ बच्चों की मौत ट्रैक्टर के नीचे दबकर दम घुटने के कारण भी हुई है.


साल 1983 में एक हिंदी फिल्म आई थी- "हादसा". उसका एक मशहूर गीत था-
"हां ये बम्बई शहर हादसों का शहर है... 
यहां ज़िन्दगी हादसों का सफ़र है. 
यहां रोज़-रोज़ हर मोड़-मोड़ पे 
होता है कोई न कोई 
हादसा, हादसा…"


अब वही गीत यूपी की सड़कों पर पूरी तरह से फिट बैठता है, इसलिये कि इस सूबे में वाहन चालकों का यातायात नियमों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. जानकार कहते हैं कि यही नहीं, पूरे प्रदेश में अधिकांश दुर्घटना होने वाले स्थानों (ब्लैक स्पाट) पर स्थानीय प्रशासन संकेत बोर्ड तक लगाना भी मुनासिब नहीं समझता. अब ऐसे हादसों के लिए आखिर किसे गुनहगार ठहराया जाये?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)