पांच साल पहले यूपी की सत्ता में आने वाली बीजेपी ने उस वक़्त ध्रुवीकरण को एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए उसका भरपूर फायदा उठाया था.योगी आदित्यनाथ ने अपनी  हिंदुत्ववादी छवि को भुनाते हुए हिंदू वोट बैंक को जिस तरह से गोलबंद किया,उसी फार्मूले ने इतनी सीटों से उनकी झोली भर दी,जिसकी उम्मीद बीजेपी को भी नहीं थी.काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के उद्घाटन से संकेत मिल चुका है कि बीजेपी इस बार भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए चुनावी हवा को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है.


यूपी के चुनाव में कौन-से मुद्दे असर डाल सकते हैं,इस पर लोगों की राय जानने के लिए एबीपी न्यूज़ के वास्ते सी वोटर ने जो सर्वे किया है,उसके नतीजों से पता लगता है कि ध्रुवीकरण का मुद्दा तेजी से लोगों के दिलोदिमाग पर असर कर रहा है.हालांकि सबसे ज्यादा लोगों की राय फिलहाल यही है कि किसान आंदोलन का मुद्दा इस चुनाव पर अपना असर डालेगा.


दरअसल,इस सर्वे में ये समझने की कोशिश की गई कि पिछले दस दिनों में चुनावी मुद्दों को लेकर लोगों की राय किस तरह से बदल रही है.6 दिसंबर को हुए सर्वे में 28 फ़ीसदी लोगों ने माना था कि किसान आंदोलन एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा क्योंकि तब तक किसानों ने दिल्ली बॉर्डर से अपने तम्बू समेटकर घर वापसी की शुरुआत नहीं की थी लेकिन अब माहौल बदल चुका है,तो लोगों की राय में भी बदलाव होता नज़र आ रहा है.अब किसान आंदोलन को बड़ा मुद्दा मानने वालों की संख्या घटकर 25 प्रतिशत रह गई है. इसलिये लगता है कि चुनाव आते-आते बीजेपी और विपक्ष,दोनों ही अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए इतनी ताकत लगा देंगे कि ये मुद्दा किसान आंदोलन को पीछे धकेल देगा.हालांकि यही बीजेपी को अनुकूल भी लगता है कि किसान आंदोलन की चर्चा जितनी कम होगी,उसे उतना ही फायदा मिलेगा.


दस दिन पहले हुए सर्वे में 16 फ़ीसदी लोगों ने राय जाहिर की थी कि ध्रुवीकरण का मसला इस चुनाव पर असर डालेगा लेकिन आज ऐसा मानने वालों की संख्या में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.हालांकि देखा जाये, तो  पूरा चुनावी-अभियान जिस दिशा की तरफ आगे बढ़ रहा है,उसके आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदू-मुस्लिम किये बग़ैर ये चुनाव होना लगभग असंभव है और जब ध्रुवीकरण ही चुनाव का केंद्र बिंदु बन जायेगा,तब बाकी सारी मुद्दे स्वत:ही हाशिये पर चले जायेंगे.लोग सरकार के अच्छे काम को भी याद नहीं रखेंगे और ये भी भूल जाएंगे कि कोरोना काल में किस तरह की बदइन्तज़ामी उन्होंने देखी-झेली है.


हालांकि इस सर्वे में लखीमपुर खीरी हिंसा से जुड़े मामले पर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की मांग करने वाले मुद्दे का ज़िक्र नहीं है लेकिन विपक्षी दलों की लामबंदी इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब हो सकती है.यही कारण है कि मोदी सरकार पार्टी के यूपी नेतृत्व से ये फीडबैक लेने में जुटी हुई है कि चुनाव से पहले अगर टेनी का इस्तीफा ले लिया जाता है,तो इससे पार्टी को कितने प्रतिशत ब्राह्मण वोटों का नुकसान झेलना पड़ेगा और अगर इस्तीफा नहीं लेती है,तब विपक्ष को इसका किस हद तक फायदा हो सकता है.


यूपी में बीजेपी की सरकार बनने से पहले तक प्रदेश की बदतर कानून व्यवस्था प्रमुख चुनावी मुद्दा हुआ करता था लेकिन इन पांच सालों में योगी सरकार ने जिस तरह से माफिया राज को ख़त्म करने के लिए अपनी सख्ती दिखाई है,उसके बाद अब ये ऐसा मुद्दा नहीं रह गया,जो चुनाव पर असर डाले.सी वोटर के सर्वे में महज 14 फीसदी लोगों ने माना कि ये भी एक मुद्दा बन सकता है लेक़िन 16 प्रतिशत लोग ऐसे हैं,जिनकी निगाह में कोरोना काल में सरकार की विफलता का मुद्दा भी चुनाव को प्रभावित कर सकता है.हालांकि 11 फीसदी लोग सरकार के कामकाज को और सात फीसदी पीएम मोदी की छवि को भी प्रभावी चुनावी मुद्दा मानते हैं. 


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