पिछले 5 वर्षों से बिहार में “जल-जीवन-अभियान” चल रहा है. नीतीश कुमार इसे अपनी उपलब्धि और सरकार की सही मंशा का प्रतीक बताते हैं, लेकिन, इसकी वस्तुस्थिति क्या है? इसे तीन खबरों से समझ सकते है. मार्च 2021 की डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट बताती है कि अभियान लांच होने के तीन साल बाद, मात्र 5फीसदी सरकारी तालाबों को ही अतिक्रमणमुक्त कराया जा सका. वहीं मार्च 2022 में मंत्री रामसूरत राय ने सदन को बताया कि अगले तीन महीने में सारे जलस्त्रोतों को अतिक्रमानामुक्त करा लिया जाएगा. वैसे, दरभंगा के जिन तालाबों के आसपास निर्माण गतिविधि पर एनजीटी ने दिसंबर 2022 में रोक लगाई थी, अप्रैल 2023 तक उसे अतिक्रमणमुक्त नहीं कराया जा सका था. तो ये हैं, हांडी के चंद दाने, बाकी दानों का हिसाब आप खुद लगा सकते हैं.


जल से जीवन या..?


दरअसल, पूरे बिहार में हजारों तालाब ऐसे हैं, जो आज अतिक्रमण के शिकार हैं. दूसरी तरफ, हिमालय की तरफ से आने वाले आर्सेनिकजन्य तत्व बिहार के पानी में मिल कर बिहार के पानी को कैंसरकारी बना रहे है. मार्च 2023 में नेचर मैगजीन में बिहार स्थित महावीर कैंसर रिसर्च सेंटर का एक अध्ययन प्रकाशित हुआ. इस अध्ययन के मुताबिक़, बिहार के 20 जिलों यानी तकरीबन आधे बिहार के जलस्रोतों में आर्सेनिक मिला हुआ है. स्टडी कहती  है कि इस वजह से बिहार के इन जिलों में गॉल ब्लाडर का कैंसर बड़ी संख्या में हो रहा है. महावीर कैंसर संस्थान एंड रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार का कहना है कि रिसर्च में पाया गया कि आर्सेनिक इंसान के शरीर में आरबीसी कोशिकाओं के साथ मिल जाता है, और फिर सिस्टीन, टॉरिन और चेनोडॉक्सिकोलिक एसिड जैसे अन्य कंपाउंड्स के साथ मिलकर गॉल ब्लाडर तक पहुंच जाता है. पहले यह पथरी बनाता है और बाद में यह कैंसर में तब्दील हो जाता है.



बिहार के पटना, बक्सर, भोजपुर, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, मुंगेर और भागलपुर आर्सेनिक से सर्वाधिक पीड़ित जिले हैं. ऐसे में बिहार के जलस्त्रोतों को बेहतर बनाने के महत्व को समझा जा सकता है. यह अच्छी बात है कि पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर ही बिहार के सरकारी तालाबों को अतिक्रमणमुक्त कराने की कवायद चल रही है, लेकिन अभी भी इस काम को पूर्ण करने में काफी समय लगेगा.  


सबसे खराब एक्यूआई वाले शहर की झील


फिलहाल, यहां चूंकि दरभंगा के सैकड़ों तालाबों, मधुबनी के दर्जनों पोखरों और बक्सर-आरा के सैकड़ों जलस्रोतों की बात एक साथ नहीं की जा सकती, तो बात उत्तर बिहार के एक महत्वपूर्ण झील की. उसके फिर से ज़िंदा होने की उम्मीद अगर जगी है तो बस अदालती हस्तक्षेप के कारण. बिहार में है शहर मोतिहारी. इसने गांधी का सत्याग्रह भी देखा और भारत के सबसे खराब वायु-गुणवत्ता (एक्यूआई) वाले शहर में भी तब्दील हो गया. यहीं है एक झील जिसका नाम भी खूब है- मोतीझील. यह चौतरफा अतिक्रमण से घिरा, एक महीने पहले तक जलकुंभी से पता हुआ अपनी अंतिम अवस्था तक जा पहुंचा. राजनीतिक-प्रशासनिक दावे खूब किए जा रहे थे इसे बचाने को ले कर, लेकिन इस झील के मुख्य स्त्रोत पर किसी का ध्यान तक नहीं था. यह सुंदर “मोतीझील” ऐतिहासिक-धार्मिक मान्यताओं की गवाह तो थी ही, शहर की लाइफ-लाइन भी था. आज यह लाइफ लाइन खुद को बचाने की जद्दोजहद में है. पहली बार इस मोतीझील से संबंधित एक जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय पटना में 04 मार्च 2022 को दायर की गई. इसमें मोतीझील के प्राकृतिक प्रवाह पर अतिक्रमण, नाला का अनट्रीटेड पानी, नर्सिंग होम का मेडिकल कचरा, झील में बढ़ते गाद की ओर माननीय न्यायालय का ध्यान आकृष्ट कराया गया. माननीय न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार किया और गंभीरतापूर्वक इस पर सुनवाई शुरू हुई. माननीय मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा दिनांक 2 दिसंबर 2022 को एक अंतरिम आदेश दिया गया. 5 मई 2023 को माननीय न्यायालय ने मुख्य सचिव, बिहार को निर्देशित किया कि मोतीझील के पुनरुत्थान कार्य की निगरानी के लिए एक पदाधिकारी को प्राधिकृत करें और ऐसे प्राधिकृत पदाधिकारी हर तीन माह पर प्रगति प्रतिवेदन मुख्य सचिव को समर्पित करेंगे.


मोतीझील के सन्दर्भ में अदालत ने जो संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाई है, उससे उम्मीद की एक किरण दिखती है. मसलन, इस आदेश में मोतीझील के स्त्रोत रतनपुर नहर को भी अतिक्रमणमुक्त कराने की बात है, जिस पर पहले से ही स्थानीय प्रशासन द्वारा अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करा दिए गए है. जिला पदाधिकारी द्वारा दायर इस शपथ पत्र में इस बात को स्वीकार किया गया है कि रतनपुर चैनल जो झील को जल पहुंचाने का मुख्य श्रोत है, को अतिक्रमण मुक्त कराने के पश्चात ही पौधारोपण कर इसका सौंदर्यीकरण किया जा सकता है. बहरहाल, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि पटना उच्च न्यायालय का यह आदेश आने वाले दिनों में बिहार में जला-जीवन-हरियाली अभियान को एक मुकम्मल स्वरुप देने में कारगर साबित होगा. अन्यथा, यह पूरा कापूरा अभियान महज एक कॉस्मेटिक सर्जरी बन कर रहा जाएगा.


बिहार में जलजीवन अभियान हो या जलस्रोतों की मुक्ति का सवाल, जब तक सरकार इस पर कड़ाई से काम नहीं करेगी, जलस्रोतों पर अतिक्रमण होता रहेगा. इसी तरह पूरा शहर जहरीला पानी पीने को विवश होगा और कभी जहां जलस्रोतों की विविधता पर गर्व किया जाता था, वहां सूखे और अकाल की स्थिति आते देर नहीं लगेगी. 


 


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)